Srimad Bhagwat Pravachan : श्रीमद् भगवत गीता के विषय में तो आपने सुना ही होगा आज उसी श्रीमद भगवत गीता में से हम आपको कुछ अहम लिखा हुआ बता रहे हैं। वास्तव में श्रीमद् भगवत माहात्मय का वर्णन करने के लिए किसी की भी सामर्थ्य नहीं है क्योंकि यह एक परम रहस्यमई ग्रंथ है इसमें संपूर्ण वेदों का सार संग्रह किया गया है। इसका आशय इतना गंभीर है कि निरंतर अभ्यास करते रहने पर भी उसका अंत नहीं होगा प्रतिदिन नए-नए भाव उत्पन्न होंगे इससे यह सदैव नवीन बना रहेगा एवं एकाग्रचित्त होकर श्रद्धा भक्ति सहित विचार करने पर इसके पद-पद में परम रहस्य भरा हुआ है जो कि प्रत्यक्ष प्रतीत होता है।
जब कुरुक्षेत्र में कौरव और पांडवों का युद्ध चल रहा था, तब धृतराष्ट्र और संजय की बात हो रही थी। तब धृतराष्ट्र संजय से बोले हे संजय! जरा मुझे बताओ धर्म भूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित युद्ध की इच्छा वाले मेरे और पांडु के पुत्रों ने क्या किया है। तब संजय ने धृतराष्ट्र को बताया कि राजा दुर्योधन ने व्यूह रचना युक्त पांडवों की सेना को देखकर और द्रोणाचार्य के पास जाकर यह कहा है, हे आचार्य! आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपद पुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पांडू पुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को देखिए।
जब संजय ने युद्धभूमि में शूरवीरों के नाम बताए
इसके पश्चात सेना में बड़े-बड़े धनुषों वाले तथा युद्ध में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान काशीराज पुरुजित कुन्तिभोज ओर मनुष्यों में श्रेष्ठ शैव्य पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान उत्तमौजा सुभद्रपुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पांचों पुत्रों सहित यह सभी महारथी युद्धभूमि में उपस्थित है।
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दुर्योधन ने द्रोणाचार्य से कहा
राजा दुर्योधन द्रोणाचार्य से कह रहे हैं, हे ब्राह्मण श्रेष्ठ! अपने पक्ष में भी जो प्रधान है उनको आप समझ लीजिए, आपकी जानकारी के लिए मेरी सेना के चारों सेनापति हैं, मैं उन सब को बता देता हूं, आप और पितामहभीष्म तथा कर्ण और संग्रामविजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा और भी मेरे लिए जीवन की आशा त्याग देने वाले बहुत से शूरवीर अनेक प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित और सब के सब युद्ध में चतुर इस युद्ध में शामिल हैं।
द्रोणाचार्य से जब द्रोयोधन ने कहा
भीष्म पितामह द्वारा रक्षित हमारी सेना सब प्रकार से अजेय है और भीम द्वारा रक्षित इन लोगों की यह सेना जीतने में सुगम नहीं है। इसीलिए सब मोर्चों पर अपनी-अपनी जगह स्थित रहते हुए आप लोग सभी निसंदेह पितामह भीष्म की सब तरफ से से रक्षा करेंगे।
संजय ने बताया धृतराष्ट्र को युद्ध छेत्र के बारे में
कौरवों में वृद्ध बड़े प्रतापी पितामह भीष्म ने राजा दुर्योधन के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वर से सिंह की दहाड़ के समान गरज कर शंख बजाया है, इसके पश्चात शंख और नगाड़े तथा ढोल मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे है। सफेद गुणों से युक्त उत्तम रथ में बैठे हुए श्री कृष्ण महाराज और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाए हैं।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्सी नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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