Hanumanji's longest jumps: हनुमान जी को अष्ट सिद्धियां प्राप्त है और वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए इन सिद्धियों का प्रयोग किए। इसी क्रम में हनुमान जी ने पांच बार सबसे लंबी छलांग लगाई थी। क्यों? आइए जानें।
बजरंगबली को जो सिद्धियां मिली थी उससे वह मक्खी से भी छोटा और पहाड़ से भी बड़ा रूप धारण कर सकते थे। अष्ट सिद्धियों में सबसे ज्यादा प्रयोग उन्होंने अपने विशालकाय रूप का ही लिया और वह भी परोपकार के लिए। हनुमान जी ने पांच बार सबसे लंबी छलांग लगाई है और इस छलांग के पीछे कई वजह शामिल रही है। हनुमान जी को आकाश मार्ग में विचरण के लिए किसी वाहन की जरूरत नहीं, जबकि बाकी देवगण को किसी न किसी वाहन की जरूरत होती है।
हालांकि मान्यता है कि देवलोक में हनुमानजी के अलावा केवल नारदमुनी और सनतकुमार ही ऐसे देवता है जिन्हें अपनी शक्ति के बल पर आकाश में विचरण करने का सामर्थ्य है। हनुमान सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ माने गए है और मान्यता है कि कलयुग के अंत तक वह धरती पर ही रहेंगे।
जानें, हनुमान जी ने 5 सबसे लंबी छलांग कब-कब लगाई
पहली छलांग: हनुमानजी ने सबसे पहली छलांग बालकाल में तब लगाई थी जब माता अंजनी हनुमानजी को कुटिया में सुलाकर बाहर किसी काम से निकली थीं। इसी बीच हनुमानजी की नींद खुल गई और उन्हें तेज भूख लगी और जब वह बाहर आए तो आसमान में चमकते सूर्य को देख कर उसे खाने वाली चीज समझ कर उसे लपक कर अपने मुंह में रख लिया था। यह छलांग उनकी सबसे लंबी मानी गई थी।
दूसरी छलांग : माता सीता की खोज के लिए जब समुद्र लांघने की बारी आई तो सबसे पहले इसके लिए बाली के पुत्र अंगद को चुना गया। तब अंगद ने समुद्र लांघकर लंका जाने के लिए तैयार तो हो गए लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मैं लंका जा तो सकता हूं लेकिन वापस लौटने की शक्ति उनके पास नहीं होगी, इसलिए लौटने का वचन नहीं दे सकता। तब जामवंत को हनुमान जी की याद आई और हनुमानजी को उनकी शक्ति याद दिलाई गई। हनुमानजी ने दो छलांग में समुद्र को पार कर लिया। हनुमान जी ने ये दूसरी लंबी छलांग मारी थी।
तीसरी छलांग: रावण से युद्ध के समय जब मेघनाद ने शक्तिबाण चला कर लक्ष्मण सहित वानरी सेना को मूर्छित कर दिया था तब जामवंत के कहने पर हनुमानजी संजीवनी बूटी लेने द्रोणाचल पर्वत पर गए। पर्वत तक पहुंचने के लिए उन्होंने ये तीसरी बड़ी छलांग लगाई थी, लेकिन जब संजीवनी पहचान नहीं सके तो वह पूरा पर्वत ही उठा कर चलने लगे तो रास्ते में कालनेमि राक्षस ने उन्हें रोक लिया और युद्ध के लिए ललकारने लगा, लेकिन हनुमान जी उसके छल को समझ गए और उसे वहीं मार दिया। उसके छल को जान गए और उन्होंने तत्काल उसका वध कर दिया।
चौथी छलांग : अहिरावण रावण का मित्र था और वह पाताल में रहता था। उसने भगवान राम के युद्ध शिविर में उतरकर राम और लक्ष्मण दोनों का अपहरण कर उन्हें पाताल लोक ले गया। तब विभीषण ने हनुमान को यह बात बताई थी और हनुमान जी पाताल पुरी पहुंचे थे। ये उनकी चौथी बड़ी छलांग थी पाताल लोक में। हनुमान जी जब पाताल में पहुंचे थे तब उन्होंने देखा कि उनके ही रूप जैसा बालक पहरेदार है और उसका नाम मकरध्वज था। मकरध्वज हनुमानजी का ही पुत्र था। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया और मकरध्वज को पाताल लोक का राजा नियुक्त कर दिया।
पांचवीं छल्लांग : पांचवी छलांग हनुमानजी ने लंका से अयोध्या में तब लगाई थी जब भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक हो रहा था। इसके बाद ही वह श्रीराम की सेवा के लिए वहीं नियुक्त हो गए।
तो ये थी हनुमान जी की पांच प्रमुख और लंबी छलांग के पीछे की कथाएं। भगवान की लीलाएं पुराणों में भी वर्णित है।
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