नई दिल्ली: हिंदू कैलेंडर में कार्तिक मास का विशेष महत्व है। इसमें सूर्य की किरणों एवं चन्द्र किरणों का पृथ्वी पर पड़ने वाला प्रभाव मनुष्य के मन मस्तिष्क को स्वस्थ रखता है। इसीलिए शास्त्रों में कार्तिक स्नान पर विशेष जोर दिया गया है। साथ ही कार्तिक मास के दौरान विशेष तौर पर तुलसी पूजा को महत्वपूर्ण बताया गया है।
जानें कार्तिक माह का महत्व
कार्तिक शुक्ल प्रबोधिनी एकादशी पर तुलसी विवाह किया जाता है। तुलसी के पौधे को सजा कर भगवान शालिग्राम के पूजन के साथ उनका विवाह संपन्न कराया जाता है।
इसके साथ ही माह के अंतिम दिन में आने वाली बैकुंठ चतुर्दशी पर हरिहर मिलन और चातुर्मास की समाप्ति कार्तिक पूर्णिमा पर होती है।
विशेष कर कार्तिक माह के आखिरी पांच दिनों, जो कि भीष्म पंचक कहलाता है, उसमें की गई तपस्या का फल पूरे साल की तपस्या के बराबर है।
पुराणों के अनुसार इस मास को चारों पुरुषार्थों-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला माना गया है। स्वयं नारायण ने ब्रह्मा को, ब्रह्मा ने नारद को और नारद ने महाराज पृथु को कार्तिक मास के माहात्म्य के संदर्भ में बताया है।
क्यों होती है कार्तिक में तुलसी की पूजा
कार्तिक माह की अमावस्या को तुलसी जी की जन्म तिथि माना गया है। पद्मपुराण में तुलसी के जन्म की एक कथा इस प्रकार बताई गई है- तुलसी पूर्व जन्म में वृंदा थीं और जालंधर राक्षस की पत्नी थीं। उसके अत्याचारों की वजह से भगवान विष्णु ने जालंधर का वध किया था। इससे दुखी वृंदा को भगवान विष्णु ने वरदान दिया था कि वह उनकी प्रिया बनेंगी।
अपने सतीत्व और पतिव्रता धर्म के कारण ही तुलसी विष्णुप्रिया बनती हैं और श्रीहरि की पूजा में उनको विशेष स्थान दिया जाता है।
वृंदावन में थे तुलसी के वन
ऐसा माना जाता है कि जहां श्रीकृष्ण ने लीला रची थी, उस जगह का नाम तुलसी के वृंदा रूप के कारण ही वृंदावन कहलाता है। यहां कभी तुलसी के वन हुआ करते थे। वैसे आज भी यहां तुलसी के पौधे खूब देखे जा सकते हैं।
इन उपायों से करें तुलसी जी को प्रसन्न
-तुलसी के पौधे के चारों तरफ स्तंभ बनाकर उस पर तोरण सजायें।
-रंगोली से अष्टदल कमल बनायें। साथ ही शंख,चक्र और गाय के पैर बनायें।
-तुलसी के साथ आंवले का गमला लगायें। तुलसी का पंचोपचार सर्वांग पूजा करें।
-दशाक्षरी मंत्र से तुलसी का आवाह्न करें। ये है मंत्र : श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वृन्दावन्यै स्वाहा।
-घी का दीप और धूप दिखाने के साथ ही सिंदूर,रोली,चंदन और नैवेद्य चढ़ायें।
-तुलसी जी को वस्त्र चढ़ाने के बाद फिर लक्ष्मी अष्टोत्र या दामोदर अष्टोत्र पढ़ें।
-तुलसी के चारों ओर दीपदान करें।
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