नई दिल्ली. देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह उत्सव भी कहा जाता है। इस दिन पूरे विधि विधान से तुलसी पूजा करने पर घर में खुशहाली आती है। इस दिन से ही शादी-विवाह का लग्न शुरू हो जाता है। भगवान विष्णु 4 महीने सोने के बाद इस दिन उठते हैं। इसीलिए इसे देवउठनी एकादशी कहते हैं।
ये है कहानी
तुलसी विवाह के दिन तुलसी का विशेष पूजन किया जाता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान श्री शालिग्राम का विवाह तुलसी से हुआ था। तुलसी का विवाह शालिग्राम रूपी भगवान श्रीकृष्ण से किया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण भगवान विष्णु जी के आठवें अवतार हैं। इस दिन लोग अपने घरों में प्रबोधनी एकादशी का व्रत करते है। तुलसी का विवाह भगवान श्रीकृष्ण से करवाते हैं। विवाह के बाद प्रसाद के रूप में चरणामृत बांटा जाता है।
आंगन में रखें तुलसी
तुलसी विवाह के समय शाम को तुलसी के पौधे को घर के आंगन या छत के बीचों-बीच में रखा जाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि जैसे किसी कन्या की शादी में चुनरी का महत्व होता है ठीक उसी तरह से तुलसी विवाह में लाल चुनरी का प्रयोग महत्वपूर्ण होता है। तुलसी विवाह में सुहाग की सारी चीजों के साथ लाल चुनरी जरूर चढ़ानी चाहिए।
ये है महत्व
तुलसी को धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष महत्व दिया जाता है। तुलसी के पौधे का प्रयोग यज्ञ, हवन, पूजन, कर्मकांड, साधना और उपासना आदि में होता है। तुलसी का इस्तेमाल पवित्र भोग में किया जाता है। इस दिन मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण की विशेष पूजा होती है। आयुर्वेद के अनुसार, तुलसी के नियमित सेवन से व्यक्ति के विचार में पवित्रता, मन में एकाग्रता आती है। क्रोध पर नियंत्रण होता है। आलस्य दूर हो जाता है। शरीर में दिन भर स्फूर्ति बनी रहती है। औषधीय गुणों की दृष्टि से तुलसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है।
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | अध्यात्म (Spirituality News) की खबरों के लिए जुड़े रहे Timesnowhindi.com से | आज की ताजा खबरों (Latest Hindi News) के लिए Subscribe करें टाइम्स नाउ नवभारत YouTube चैनल