Tulsidas Jayanti (तुलसीदास जयंती) 2020: प्रेमी तुलसी से रामभक्त और महाकवि तुलसीदास बनने की अनसुनी कहानी

आध्यात्म
श्वेता सिंह
श्वेता सिंह | सीनियर असिस्टेंट प्रोड्यूसर
Updated Jul 27, 2020 | 12:25 IST

Tulsidas Jayanti 2020 : तुलसीदास के जीवन में अकेलापन था, इसलिए जब उनका विवाह हुआ तो अपनी पत्नी से वो बहुत प्रेम करने लगे। आइए जानें रामभक्त और महाकवि तुलसीदास बनने की अनसुनी कहानी...

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Tulsidas Jayanti 2020  |  तस्वीर साभार: Instagram
मुख्य बातें
  • आधी रात शव को नाव समझ पार की नदी।
  • पैदा होते ही रोया नहीं बल्कि राम बोलने लगे।
  • पत्नी से मिला रामभक्ति के मार्ग का द्वार।

श्रावण मास की अमावस्या के सातवें दिन रामचरित मानस के रचयिता तुलसीदास की जयंती मनायी जाती है।  

होईहि सोई जो राम रचि राखा।   

को करि तर्क बढ़ावै साखा।।   

रामचरित मानस की इस चौपाई में जीवन का पूरा सार छुपा है। विधि का विधान तो देखिए, स्वयं तुलसीदास के जीवन में इन दो लाइनों का बहुत योगदान है। पहले वो केवल तुलसीदास थे। एक साधारण मनुष्य, जो अपने परिवार से बहुत प्रेम करता है। तुलसीदास के जीवन में अकेलापन था, इसलिए जब उनका विवाह हुआ तो अपनी पत्नी से वो बहुत प्रेम करने लगे। एक प्रेमी तुलसी से रामभक्त और महाकवि तुलसीदास बनने की अनसुनी कहानी आज हम आपको बताएंगे। 

रामबोला कहकर बुलाते थे लोग

ऐसी मान्यता है कि जब तुलसीदास पैदा हुए थे, तो रोने की बजाय वो अपने मुख से राम बोले थे। तभी से लोग इन्हें रामबोला कहकर पुकारने लगे। बचपन में इनके जन्म के समय मां की मृत्यु होने से इन्हें लोग अशुभ मानने लगे थे। कहा ये भी जाता है कि इनका पालन-पोषण एक दाई ने किया।  

विवाह के बाद पत्नी से करने लगे अनंत प्रेम  

बचपन से ही माता-पिता के प्रेम के वियोग ने रामबोला के ह्रदय में एकाकीपन पैदा कर दिया था। जब उनका विवाह रत्नावली नाम की अतिसुंदर कन्या से हुआ, तो रामबोला अपना सारा एकाकी जीवन भूलकर अपने ह्रदय में अपनी पत्नी को बसा लिए। वो उनसे अत्यंत प्रेम करते थे. वैवाहिक जीवन सुखद बीत रहा था। रामबोला एक साधारण व्यक्ति की जीवनशैली व्यतीत कर रहे थे।  

नदी में बहती लाश के सहारे पहुंचे ससुराल  

विवाह के कुछ दिनों बाद जब तुलसीदास की पत्नी अपने मायके पहुंची, तो रामबोला विक्षिप्त हो गए। वो पत्नी का वियोग सह नहीं सके और आधी रात को ही ससुराल के लिए निकल पड़े। रास्ते में नदी पार करके उन्हें ससुराल जाना था। आधी रात को वो पत्नी प्रेम में इस कदर डूबे थे कि नदी की धारा में बहती लाश को नाव समझकर नदी पार गए।  

सामने देख जब पत्नी ने उन्हें धिक्कारा  

आधी रात को पानी में भीगे जब तुलसीदास जी अपने ससुराल पहुंचे तो उन्हें देखकर ससुराल वाले आवाक रह गए। स्वयं तुलसीदास की पत्नी उन्हें देखकर ठिठक गईं और हैरान रह गई। पत्नी जब उन्हें कमरे में ले गईं और आने का कारण पूछा, तो तुलसीदास ने अपनी विरह पीड़ा कह सुनाई। उनकी पत्नी रत्नावली को बहुत क्रोध आया और उन्होंने तुलसीदास को कड़े वचन कहे।  

हाड़ मांस को देह मम, तापर जितनी प्रीति। 

तिसु आधो जो राम प्रति, अवसी मिटिहि भवभीति ।।    

इसका अर्थ ये है कि जितना प्रेम इस हाड़ मास के शरीर से है, अगर उतना भगवान राम से किया होता तो भवसागर पार हो गए होते। पत्नी द्वारा कही ये बात तुलसीदास के ह्रदय में जैसे आघात कर दिया। इन दो वाक्यों ने रामबोला को त्वरित परिवर्तित कर दिया। पत्नी द्वारा कही बात को सुनकर तुलसीदास के जीवन का लक्ष्य ही बदल गया। अब वो अधिक से अधिक रामकथा में रम गए। एक दिन आया जब ये रामबोला एक प्रेमी तुलसी से रामभक्त और महाकवि तुलसीदास बन गया।  

जब धर्म पर आयी आंच तब तुलसी ने लिखा मानस  

भारत को उस समय तुलसीदास ने रामचरित मानस दिया, जब धर्म परिवर्तन का काम चरम पर था। कहते हैं कि हिन्दू धर्म को बचाने के लिए और जन-जन तक रामकथा पहुंचाने के लिए तुलसीदास ने रामचरित मानस लिखा। 

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