ये मंदिर है कैथल जिले में पेहवा के नजदीक अरूणाय स्थित श्री संगमेश्वर महादेव मंदिर। यहां साल में एक बार यहां नाग-नागिन का जोड़ा शिवलिंग पर आता है। यहां पूजा करने वाले श्रद्धालुओं को यह कोई नुकसान नहीं पहुंचाता और कुछ देर बाद यहां से खुद चला जाता है।बताया जाता है कि नाग-नागिन का यह जोड़ा शिव प्रतिमा की परिक्रमा करता है।
शिवरात्रि के अवसर पर इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगता है। पुराणों के अनुसार यहां भगवान शिव स्वंय लिंग रूप में प्रकट हुए थे, जो स्वंयभू लिंग के रूप में मुख्य मंदिर में आज भी विराजमान हैं।
मान्यता है कि यहां शिवलिंग पर जलाभिषेक व पूजन करवाने और यहां स्थित बेल वृक्ष पर धागा बांधने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मन्नत पूरी होने के बाद यहां पूजा करवाने व धागा खोलने के लिए श्रद्धालुओं को दोबारा आना पड़ता है। कहते हैं कि देवी सरस्वती ने श्राप मुक्ति के लिए की यहां शिव-आराधना की थी।
मंदिर की परिचय पुस्तिका के मुताबिक यहां दूध बिलोकर मक्खन नहीं निकाला जाता। यदि कोई प्रयास करता है तो दूध खराब होकर कीड़ों में बदल जाता है। मंदिर परिसर में खाट अर्थात चारपाई का प्रयोग नहीं किया जाता। यदि कोई व्यक्ति यहां अशुद्धि फैलाने का प्रयास करता है तो उसे दंड अवश्य मिलता है।
महंत वासुदेव गिरि बताते हैं कि पूरा वर्ष यहां राजनीति व व्यापार से जुड़े लोगों का तांता लगा रहता है। चुनाव लड़ने से पूर्व बहुत से नेता यहां मन्नत मांगते हैं और पूरी होने पर यहां पूजन व धागा खोलने के लिए आते हैं। मंदिर मनोविज्ञान का केंद्र भी है। मानसिक रूप से परेशान व्यक्ति यहां जल चढ़ाते हैं और दिमाग को तनावमुक्त महसूस करते हैं।
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