सावन महीने के प्रमुख व्रत त्योहारों में से एक वरलक्ष्मी का व्रत भी है। इस व्रत को श्रावण मास के आखिरी शुक्रवार को रखा जाता है और यह राखी व श्रावण पूर्णिमा से कुछ दिन पहले ही आता है। इस व्रत को खासतौर पर विवाहित महिलाएं परिवार की समृद्धि और सुख के लिए रखती हैं। माना जाता है कि इस एक व्रत को रखने से एक साथ अष्टलक्ष्मी, मां लक्ष्मी के आठों रूपों को प्रसन्न किया जा सकता है। साल 2020 में ये व्रत 31 जुलाई को रखा जा रहा है।
Maa Varalakshmi : कौन हैं मां वरलक्ष्मी, देवी का कौन सा रूप हैं
देवी वर लक्ष्मी, खुद ही महालक्ष्मी का ही एक रूप हैं। वरलक्ष्मी के अवतरण के बारे में माना जाता है कि वह दूधिया महासागर से प्रकट हुईं थी, जिसे क्षीर सागर के नाम से भी जाना जाता है। इस वजह से उनका रंग उजला है और इसी रंग के वस्त्र भी धारण करती हैं।
Varalakshmi Vratham Katha : वरलक्ष्मी व्रत की कथा
एक समय पर चारुमती नामक महिला थी जो माता की बहुत बड़ी भक्त थी। वह प्रत्येक शुक्रवार को लक्ष्मी जी की विधिपूर्वक पूजा करती थी। एक रात्रि स्वप्न में माता ने इस व्रत के बारे में विस्तार से बताया। चारुमती ने इस व्रत को माता के बताए गए तरीके से नियम पूर्वक रखा । साथ उसने इसके बारे में अपनी सहेलियों को भी बताया। सभी ने कलश की विधिवत स्थापना करके उसकी परिक्रमा की। व्रत के उपरांत सभी स्त्रियों को मनचाहा वरदान मिला। उन सबको धन, धान्य और संतान की प्राप्ति हुई। यह भी प्रचलित है कि माता पार्वती जी ने भी यह पूजा की है। मान्यता ये भी है कि भगवान शिव ने ही ये कथा माता पार्वती को सुनाई थी।
Varalakshmi Vratham Puja Samagri : वरलक्ष्मी पूजा की सामग्री
वरलक्ष्मी व्रत की पूजा के लिए आपको रोजाना की पूजा की चीजें नहीं इस्तेमाल करनी चाहिए। इस पूजा में अलग से आप वरलक्ष्मी जी की प्रतिमा, फूल माला, कुमकुम, हल्दी, चंदन पाउडर, विभूति, शीशा, कंघी, आम पत्र, फूल, पान के पत्ते, पंचामृत, दही, केला, दूध, पानी, अगरबत्ती, मोली, धूप, कपूर, प्रसाद, तेल दीपक, अक्षत आदि चीजों का प्रयोग किया जाता है।
Varalakshmi Vratham Puja Vidhi : वरलक्ष्मी व्रत की पूजन विधि
व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई कर लें और स्नान आदि से निवृत्त होकर घर के पूजन स्थल को गंगाजल से साफ कर पवित्र कर लें। इसके बाद व्रत का संकल्प लें। मां वरलक्ष्मी को नए वस्त्र पहना कर जेवर और कुमकुम से सजाएं। इसके बाद एक पाटे पर गणेश जी की मूर्ति के साथ मां लक्ष्मी की मूर्ति को पूर्व दिशा में स्थापित करें और पूजन स्थल पर थोड़ा सा सिंदूर फैलाएं। एक कलश में जल भरकर उसे तांदूल पर रख दें और इसके बाद कलश के चारों तरफ चंदन लगाएं।
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