Sawan 2022: जानिए सावन के शुरुआत की पहली तिथि, शिव शंकर के गले में क्यों विराजमान होते हैं वासुकी

Secrets of Lord Shiva's Jewelery: भगवान शिव को पशुपतिनाथ भी कहा जाता है क्योंकि मनुष्य के समान पशुओं के प्रति भी शिव के हृदय में अगाध वात्सल्य था। उनका अस्त्र शस्त्र भी पशुओं से संबंधित है। शरीर पर बाघ की खाल धारण किया है, वहीं गले में नाग का श्रृंगार किया है।

Sawan 2022 Bhog
sawan 2022  |  तस्वीर साभार: Instagram
मुख्य बातें
  • इस बार सावन के महीने में चार सोमवार पड़ रहे हैं
  • पहला सोमवार 18 जुलाई को है और इस पहले सोमवार में भगवान शिव के परम भक्त सावन का व्रत रखते हैं
  • सावन के महीने में भगवान के भक्त भगवान शिव की आराधना में लीन हो जाते हैं

Lord Shiva Nagraj Vasuki: भगवान शिव का सबसे प्रिय सावन 14 जुलाई से शुरू हो चुका है। सावन के महीने की शुरुआत होते ही शिव भक्तों का मंदिरों में तांता लग जाता है। सावन का महीना 12 अगस्त तक चलेगा। इस बार सावन के महीने में चार सोमवार पड़ रहे हैं। पहला सोमवार 18 जुलाई को है और इस पहले सोमवार में भगवान शिव के परम भक्त सावन का व्रत रखते हैं। सावन के महीने में भगवान के भक्त भगवान शिव की आराधना में लीन हो जाते हैं। भगवान शिव को देवों का देव महादेव भी कहा जाता है। भगवान शिव के अस्त्र, शास्त्र व वस्त्र सभी देवी देवताओं से अलग हैं। भगवान शिव ने शरीर पर बाघ की खाल धारण किया है, वहीं गले में नाग का श्रृंगार किया है, लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान भोलेनाथ ने आभूषण के रूप में नाग को अपने गले में क्यों विराजमान किया है? आइए जानते हैं आखिर इसके पीछे क्या है बड़ा कारण।

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भगनाव शिव ने प्रसन्न हो कर दिया था वरदान

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार वासुकी को नाग लोक का राजा माना गया है। वासुकी भगवान शिव के परम भक्त थे। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव की आराधना सबसे पहले नाग जाति के लोगों ने ही शुरू किया था। उनकी भक्ति और श्रद्धा से भगवान शिव बेहद खुश हुए थे। जिस वजह से उन्होंने वासुकी को अपने गले में आभूषण के रूप में शामिल कर लिया था। बताया जाता है कि वासुकी भगवान शिव की भक्ति में इतने लीन थे कि जब तक भी प्रसन्न नहीं हुए तब तक वासुकी उनकी सेवा और आराधना में लगे रहें। भगवान शिव के प्रसन्न होने के बाद शिवजी ने वासुकी को वरदान देते हुए अपने गले से लिपटा लिया। इसके बाद नागराज वासुकी अमर हो गए।

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 यह भी है कथाएं

ऐसा भी कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान वासुकी नाग को मेरू पर्वत के चारों ओर रस्सी की तरह लपेटकर मंथन किया गया था। एक तरफ उन्हें देवताओं ने पकड़ा था तो एक तरफ दानवों ने। इससे वासुकी का पूरा शरीर लहूलुहान हो गया था। इससे शिव शंकर बेहद प्रसन्न हुए थे। इसके अतिरिक्त जब वासुदेव कंस के डर से भगवान श्री कृष्ण को जेल से गोकुल ले जा रहे थे तब रास्ते झमाझम बारिश हुआ थी। इस बारिश में भी वासुकी नाग ने ही श्री कृष्ण की रक्षा की थी। मान्यता तो यह भी है कि वासुकी के सिर पर ही नागमणि विराजित है।


(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
 

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