नई दिल्ली: वट पूर्णिमा व्रत हिंदू धर्म की महिलाओँ के लिए अपने पति के प्रति प्यार, त्याग और समर्पण का पर्व है, जो हर वर्ष ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि पर रखा जाता है। बहुत से लोग वट सावित्री व्रत और वट पूर्णिमा के बीच भेद नहीं पहचान पाते हैं।
वट सावित्री व्रत और वट पूर्णिमा व्रत पति के लंबी उम्र के लिए किया जाता है मगर उत्तर भारत के कई राज्यों में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि पर किया जाता है वहीं वट पूर्णिमा व्रत भारत के दक्षिणी राज्यों में ज्येष्ठ पूर्णिमा पर किया जाता है।
वट सावित्री व्रत पर्व पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश और ओडिशा समेत अन्य उत्तरी राज्यों में श्रद्धा-भाव से मनाया जाता है जबकि वट पूर्णिमा व्रत महाराष्ट्र, गुजरात और अन्य दक्षिणी राज्यों में किया जाता है।
पति की लंबी उम्र की कामना का है व्रत
इस दिन महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर व्रत का संकल्प लेती हैं और भगवान की पूजा करती हैं। वट पूर्णिमा पर व्रत में वृक्ष की पूजा की जाती है। इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने का विशेष महत्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, वट वृक्ष के नीचे ही यमराज ने सावित्री के पति को जीवनदान दिया था। वट सावित्री व्रत और वट पूर्णिमा पर व्रत के नियमों का खास तौर से पालन किया जाता है।
कब है वट पूर्णिमा की तिथि/vat purnima vrat 2021 date and time
इस वर्ष वट पूर्णिमा 24 जून के दिन पड़ रही है। यहां जानिए, इस दिन आपको कैसे पूजा करनी चाहिए और किस मुहूर्त पर करनी चाहिए।
वट पूर्णिमा तिथि और मुहूर्त
वट पूर्णिमा पूजा विधि/vat purnima puja vidhi
वट पूर्णिमा पर ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नानादि कर लें। इस दिन लाल या पीले कपड़े पहने रें। पूजा घर को साफ करके सभी आवश्यक सामग्री एकत्रित कर लें। फिर सावित्री और सत्यवान की मूर्ति स्थापित करने के बाद वट वृक्ष को जल अर्पित करें।
इसके बाद वट वृक्ष पर फूल, मिठाई, अक्षत, भीगा चना और गुड़ का भोग अर्पित करें । अब एक सूत लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा करते हुए वृक्ष पर लपेटते जाएं। ध्यान रखें कि आपको कुल सात बार वट वृक्ष की परिक्रमा करनी है। परिक्रमा करने के बाद हाथ में चने के दाने ले लें और सावित्री की कथा का पाठ करें। पूजा खत्म होने के बाद अपने इच्छानुसार किसी जरूरतमंद या ब्राह्मण को फल और कपड़े दान करें। पूजा के अंतर में आरती करें और एक दिया जरूर जलाएं।
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