नई दिल्ली: ललिता सप्तमी व्रत एक देवी को समर्पित है जो वृंदावन की एक गोपी है और ऐसी मान्यता है कि जिनके आशीर्वाद से संतान प्राप्ति के योग बनते हैं इसलिए नवविवाहित जोड़े इनकी पूजा-अर्चना बड़ी श्रद्धा से करते हैं।
ललिता सप्तमी भाद्र मास के शुक्ल पक्ष में पड़ता है जो इस साल 25 अगस्त 2020 को पड़ रहा है इस दिन ही ललिता सप्तमी मनाई जाएगी। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन ललिता देवी प्रकट हुई थीं। इस दिन मुख्य रूप से वैष्णव समुदाय के लोग बहुत श्रद्धा से ललिता देवी की पूजा अर्चना और अनुष्ठान करते हैं तथा इसे एक त्यौहार के रूप में मनाते हैं। आइए जानते हैं ललिता सप्तमी व्रत करने के कुछ महत्वपूर्ण नियम-
ललिता सप्तमी का महत्व
ललिता सप्तमी व्रत देवी ललिता को समर्पित है जो वृंदावन की एक गोपी हैं। इस व्रत को पहली बार श्री कृष्ण द्वारा बताए जाने पर रखा गया था। इस व्रत को रखने पर ऐसा माना जाता है कि नवविवाहित जोड़ों को स्वस्थ और सुंदर बच्चा होने का आशीर्वाद मिलता है तथा जिनके बच्चे हो गए हैं वह अपने बच्चों के स्वास्थ्य, बुद्धि और लंबे जीवन के लिए इस व्रत को रखते हैं।
राधा की सबसे प्रिय सखी
राधा की प्यारी गोपी माता ललिता को माना जाता है कि ललिता देवी वृंदावन की सबसे महत्वपूर्ण गोपियों में से एक थीं। वह देवी राधा की प्रिय मित्र थीं जिन्हें देवी राधा बहुत प्रेम करती थीं। मथुरा के ब्रज में ललिता देवी को समर्पित एक मंदिर भी है।
ललिता सप्तमी व्रत का पालन कैसे करें?
इस व्रत का पालन करने के लिए आपको प्रातः काल उठकर स्नान करके भगवान श्री गणेश का ध्यान करना चाहिए। उसके बाद दिन भगवान गणेश, देवी ललिता, माता पार्वती, देवी शक्ति शिव और शालिग्राम की विधिवत तरीके से पूजा करनी चाहिए।
नारियल, चावल, हल्दी, चंदन का पेस्ट, गुलाल, फूल और दूध देवताओं को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। हालांकि ज्यादातर लोग केवल फूल चढ़ाते हैं। कुछ क्षेत्रों में तांबे का एक बर्तन पूजा कक्ष में रखा जाता है जिससे जल अर्पण किया जाता है। पूजा स्थान पर लाल धागा या मौली रखी जाती है। जिसे पूजा के बाद यह दाहिने हाथ कि कलाई पर बांधा जाता है।
यह व्रत पूरे दिन का होता है, अर्थात 25 अगस्त को सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक आपको उपवास करना होता है। इसलिए कामकाजी महिलाओं और चिकित्सा समस्याओं वाले लोगों को इस उपवास को करने की सलाह नहीं दी जाती उन्हें सिर्फ आज के दिन पूजा-पाठ और प्रार्थना ही करनी चाहिए। पूजा के अगले दिन व्रत पूरा होने पर घर वालों में और अपने आस-पड़ोस में इस प्रसाद को वितरित कर दें।
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