मजनू का टीला गुरुद्वारे की क्या है कहानी, स्वयं गुरु नानक देव ने दिया था ये नाम

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक ईरानी सूफी अब्दुल्ला जो मजनू (प्रेम में दीवाना) कहलाता था उसकी भेंट 20 जुलाई 10 को यहां सिखों के गुरु गुरु नानक देव से हुई थी। तभी से इसका नाम मजनू का टीला पड़ गया।

majnu ka tilla gurudwara
मजनू का टीला गुरुद्वारा 
मुख्य बातें
  • दिल्ली स्थित मजनू का गुरुद्वारा इन दिनों सुर्खियों में है
  • मजनू का टीला गुरुद्वारा अपने आप में कई रहस्य समेटे हुए है
  • इससे जुड़ी बेहद रोचक कहानी है जिसे आप जानना चाहेंगे

दिल्ली स्थित मजनू का टीला गुरुद्वारे में सैकड़ों की संख्या में लोग लॉकडाउन के कारण फंसे हुए थे जिन्हें बुधवार को वहां से निकाला गया। निजामुद्दीन मरकज के एक धार्मिक कार्यक्रम के बाद कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होने के बाद गुरुद्वारे में फंसे लोगों को वहां से निकाला गया। निजामुद्दीन में घटी इस घटना के बाद दिल्ली में अचानक से कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 200 के पार चली गई है। मजनू का टीला गुरुद्वारा दिल्ली का एक बेहद पुराना सिख गुरुद्वारा है।

मजनू का टीला जिसका मतलब होता है मजनूओं का जहां जमावड़ा लगता है। पुराणिक मान्यताओं के मुताबिकईरानी सूफी अब्दुल्ला जो मजनू (प्रेम में दीवाना) कहलाता था उसकी भेंट 20 जुलाई 1505 को यहां सिखों के गुरु गुरु नानक देव से हुई थी। गुरुद्वारा के बारे में अब भी कई बातें लोगों को नहीं पता है। जानते हैं इससे जुड़ी अन्य रोचक बातें-

मजनूं का टीला गुरुद्वारा किसने बनवाया
मजनू का टीला गुरुद्वारा सिख मिलिट्री लीडर बघेल सिंह धालीवाल ने इसकी शुरुआत की थी। मुगल बादशाह शाह आलम ने उनसे समझौता किया था और उन्हें ये काम सौंपा था जिसके बाद उन्होंने इसे बनवाया था। 

गुरुद्वारे का नाम मजनू का टीला क्यों पड़ा
स्वयं गुरु नानक ने ये घोषणा की थी कि ये जगह मजनूं का टीला के नाम से जाना जाएगा। दुनिया के अंत होने तक लोग इस जगह को मजनूं का टीला के नाम से जानेंगे। चूंकि बड़ी संख्या में प्रेम के दीवाने मजनू इस जगह पर आशीर्वाद लेने आते थे। जिसके बाद में जब इस जगह पर गुरुद्वारा बना तो इसे नाम भी मजनू का टीला दे दिया गया। 

कब बना गुरुद्वारा
मार्बल गुरुद्वारा जो दिल्ली में आज स्थित है उसे 1980 में बनवाया गया था। कॉम्प्लेक्स के अंदर पहला गुरुद्वारा बघेल सिंह के द्वारा बनवाया गया था। जब वे अपने 40,000 सैनिकों के साथ मार्च 1783 में लाल किले में प्रवेश किया था और दीवान-ए-आम को कब्जा कर लिया था। मुगल शासक शाह आलम द्वितीय ने बघेल सिंह के साथ मिलकर एक समझौता किया जिसमें उन्हें शहर में सिखों के ऐतिहासिक जगहों पर गुरुद्वारा बनवाने का आदेश दिया। सिंह इसके बाद सब्जी मंडी के पास ही अपने सैनिकों के साथ कैंप लगाकर रुक गए और वहीं से सात जगहों की पहचान की जो सिख गुरुओं से जुड़ी हुई थी इसके बाद उन्होंने वहां गुरुद्वारा बनवानी शुरू कर दी। एंटरटेनमेंट टाइम्स में रीना सिंह के द्वारा लिखी गए लेख से ये जानकारी सामने आई है।

मजनू का टीला गुरुद्वारा के आसपास क्या है
मजनू का टीला गुरुद्वारा नॉर्थ दिल्ली में स्थित है जहां से इंटर-स्टेट बस टर्मिनस पास पड़ता है। यहां से तिब्बतियों का रिफ्यूजी कैंप भी पास में है जिसके अपोजिट में तीमारपुर कॉलोनी है। यह यमुना नदी के किनारे पर बना हुआ है। पूरनमासी के दिन गुरुद्वारा में बैसाखी सेलिब्रेट किया जाता है।

मजनू का टीला की क्या है कहानी
जब गुरु नानक देव ज अपने भक्तों के साथ बैठे हुए थे उसी समय उन्होंने एक महावत को रोते हुए सुना था जो अपने बादशाह के हाथी की मौत पर रो रहा था। इसके बाद गुरु नानक ने उस हाथी को जिंदा कर दिया जिसके बाद वह महावत भी उनका भक्त बन गया।

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