When is baisakhi: बैसाखी किसानों और सिखों का मुख्य त्योहार होता है लेकिन इसे मनाता पूरा देश भर है। खुशिहाली के इस त्योहार में सभी शामिल होना चाहते हैं और यही कारण है कि हर कोई इसे अपने तरीके से ही मनाता है लेकिन बैसाखी मनाने का विधिवत तरीका आज बताएंगे। इस बार बैसाखी 14 अप्रैल को यानी रविवार को पड़ रही है। बहुत ही कम होता है जब बैसाखी 14 तारीख को पड़े। इसके पीछे भी एक वजह है। दरअसल 36 साल बाद ही बैसाखी का संयोग 14 अप्रैल को होता है। इसलिए हर साल बैसाखी 13 अप्रैल ही होती है और हर 36 साल बाद ये 14 अप्रैल को मनाई जाती है।
अप्रैल माह में नई फसल जब आती है तो किसानों के लिए ये किसी त्योहार से कम नहीं होता। इसलिए उनके लिए भी बैसाखी बड़ा त्योहार होता है वहीं इस दिन सिखों के दसवें गुरु ने खालसा पंथ की नींव भी रखी थी इसलिए उनके लिए भी ये त्योहार सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण होता है। बैसाखी को मेष संक्राति भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन सूर्य का मेष राशि में प्रवेश होता है। यह त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है लेकिन इसके नाम हर राज्यों में बदल जाते हैं, लेकिन त्योहार मनाने की वजह कहीं न कहीं एक ही होती है। असम में बीहू, बंगाल में नब बर्षा, तमिलनाडू में पुथांडू, केरल में पूरन विशु और बिहार में वैसाख के रूप में ये त्योहार मनाया जाता है।
बैसाखी का विधिवत तरीका जानिए
बैसाखी गुरुद्वारे या फिर किसी खुले मैदान में मनाई जाती है। यहां लोग एकत्र होते हैं और भांगड़ा गिद्दा पाते हैं। कई जगह गरुद्वारे या आसपास मेला भी लगता है। तो आइए जानें कैसे होती है बैसाखी के दिन की शुरुआत
1. सुबह ही लोग नहा धो कर गरुद्वारे मथ्था टेकने जाते हैं और वहां प्रार्थना करते हैं।
2. गुरुद्वारे में ही सभी लोग गुरुग्रंथ साहिब जी के स्थान को जल और दूध से शुद्ध करते हैं।
3. इसके बाद पवित्र किताब को ताज के साथ उसके यथास्थान पर रखा जाता है।
4. इस प्रक्रिया के बाद किताब को पढ़ना होता है और गरु वाणी सुनी जाती है।
5. गरुद्वारे में इस दिन भक्तों के लिए विशेष अमृत तैयार होता है और बसको बांटा जाता है।
6. अनुयायी एक पंक्ति में करीब पांच बार अमृत को ग्रहण करते हैं।
7. अपराह्न में अरदास के बाद प्रसाद को गरु को प्रसाद चढ़ाया जाता है और फिर उसे वहां बैठे भक्तों के बीच बांटा जाता है।
8. आखिरी में भक्त लंगर चखते हैं।
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