Nirjala Ekadashi 2022: भगवान विष्णु को समर्पित है निर्जला एकादशी व्रत, जानिए इस व्रत में कब पीना चाहिए पानी?

Shubh Muhurat Vrat Katha 2022: इस साल निर्जला एकादशी का व्रत 10 जून को पड़ रहा है। इस एकादशी व्रत में पानी पीना वर्जित माना जाता है, इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं।

 Nirjala Ekadashi Vrat
water in nirjala ekadashi 2022  |  तस्वीर साभार: Instagram
मुख्य बातें
  • निर्जला एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है
  • 10 जून को पड़ने वाली एकादशी यानी निर्जला एकादशी में पानी पीना वर्जित माना जाता है
  • बिना जल के उपवास रहने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है

Nirjala Ekadashi 2022 Date: हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी का बहुत महत्व है। शास्त्रों में एकादशी का व्रत सभी व्रतों में सबसे श्रेष्ठ और उत्तम फल देने वाला व्रत होता है। यह जेष्ठ माह के शुल्क पक्ष में हर साल पड़ता है। इस साल एकादशी का व्रत 10 जून को पड़ रहा है। साल में 24 एकादशी पड़ती है। कहा जाता है कि पूरे साल की सभी 24 एकादशी व्रत का फल यह जेष्ठ माह में पड़ने वाली निर्जला एकादशी का व्रत रखने से मिलता है। 10 जून को पड़ने वाली एकादशी यानी निर्जला एकादशी में पानी पीना वर्जित माना जाता है। यह व्रत बिना पानी पिए रखा जाता है। इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। हिंदू धर्म में मान्यता है कि निर्जला एकादशी के दिन बिना जल के उपवास रहने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं निर्जला एकादशी व्रत में कब पानी ग्रहण करना चाहिए।

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जानिए, कब ग्रहण करना चाहिए जल

ज्योतिष के अनुसार, निर्जला एकादशी में पानी पीना मना होता है। केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए ही पानी मुंह में डाल सकते हैं। वहीं पानी को अंदर नहीं ग्रहण किया सकता है। ऐसा करने से व्रत टूट जाता है। व्रत रखने वाले के दिमाग में यह बात रहती है कि निर्जला एकादशी व्रत में पानी कब पीना चाहिए। बता दें सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक जल का त्याग करना चाहिए और अगले दिन सूर्योदय के बाद पूजा करके जल ग्रहण करना चाहिए।

भगवान विष्णु को समर्पित है निर्जला एकादशी व्रत 

निर्जला एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के साथ महालक्ष्मी की पूजा करने से सारी मनोकामना पूरी होती है। एकादशी का दिन भगवान विष्णु को अति प्रिय है। इसके अलावा पांडवा भ्राता भीम ने एकमात्र इसी उपवास को रखा था और मूर्छित हो गए थे, इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।) 

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