नई दिल्ली: पुनर्जन्म की अवधारणा सिर्फ हिंदू धर्म में ही है। सनातम धर्म और उसके शास्त्रों के मुताबिक एक आत्मा अपने जीवन चक्र में कई शरीर को धारण करती है जबतक कि उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो जाती है। मृत्यु के विषय में दुनियाभर में अलग-अलग तरह की बातें और मान्यताएं प्रचलित हैं। लेकिन सनातन धर्म के धर्म शास्त्रों के मुताबिक आत्मा अजर अमर होती है और शरीर का अस्तित्व बिना आत्मा कुछ भी नहीं होता है। हिंदू धर्म के कई शास्त्रों में कहा गया है कि आत्मा 84 लाख योनियों में भ्रमण करती है। शरीर की मृत्यु से पहले आत्मा की नियति निर्धारित होती है।
शास्त्रों के मुताबिक जीवन के बाद आत्मा की दो गति होती है। या तो वह जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाती है । दूसरी स्थिति में वह एक निश्चित अंतराल के बाद नया शरीर धारण करती है। यानी वह संसार में जन्म मरण के चक्र में फंसी रहती है। यह भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति शरीर उत्तराययन में छोड़ता है वह संसार में नहीं आता है । यानी जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। दूसरी तरफ जो दक्षिणायन में शरीर छोड़ता है वह संसार में जन्म मरण के चक्र से फंसा रहता है
गौर हो कि उत्तरायण को हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र समय माना गया है। महाभारत में भी इस शब्द की चर्चा कई बार हुई है। महाभारत में बाणों की शय्या पर लेटे भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु को उस समय तक टाल दिया , जब तक कि सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण नहीं हो गए। सूर्य के उत्तरायण होते ही उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। श्रीमदभगवदगीता में भी भगवान कृष्ण ने उत्तरायण में शरीर त्यागने की महिमा बताई है और कहा है कि इस अवधि में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता और वह मोक्ष को प्राप्त होता है। दूसरी तरफ सूर्य के दक्षिणायण होने पर धरती अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनर्जन्म लेना पड़ता है।
गरुड़ पुराण के मुताबिक जब शरीर की मृत्यु हो जाती है तब आत्मा को यमदूत 24 घंटों के लिए ही ले जाते हैं। आत्मा को इस दौरान उसके पाप और पुण्य की जानकारी दी जाती है जो उसने त्यागे गए शरीर में रहते हुए किए हैं। फिर 13 दिनों तक आत्मा उसी स्थान पर रहती है जहां उसने शरीर का त्याग किया था। सनातन धर्म में अंतिम संस्कार की सभी रस्म 13वें दिन खत्म होती है। इसके बाद आत्मा को यमलोक की यात्रा करनी होती है।
अगर आत्मा को सदगति नहीं मिलती है तो उसका धरती पर दोबारा जन्म होता है। गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं कि आत्मा अमर है उसका अंत नहीं होता, वह सिर्फ शरीर रूपी वस्त्र को बदलती है। हालांकि विदेशों में इस विषय पर कई शोध हुए हैं लेकिन किसी भी शोध में यह साफ नहीं हो सका है कि शरीर के मृत होने के बाद आत्मा की क्या गति होती है? वह मरने के बाद कहां जाती है? गीता के दूसरे अध्याय में आत्मा की सबसे सटीक व्याख्या की गई है।
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