Peacock Feather Krishna: भगवान श्री कृष्ण को विष्णु के आठवें अवतार माना गया हैं। भगवान श्री कृष्ण को कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव व मोर मुकुट धारी नामों से जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण को मोर मुकुट धारी इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह अपने मुकुट पर मोर पंख धारण करते हैं। यह सवाल भी हर किसी के मन में जरूर आता होगा कि भगवान कृष्ण अपने मुकुट में मोर पंख क्यों धारण करते हैं? इसके पीछे कई वजह हैं।
कई प्राचीन कथाओं में इस बात का जिक्र किया गया कि भगवान कृष्ण को मोर पंख बहुत पसंद है इसलिए वह सदैव मोर पंख अपने मुकुट में धारण करते हैं, वहीं कुछ ज्योति शास्त्रों ने मोर पंख धारण करने की वजह कृष्ण के कुंडली में मौजूद दोष को मानते हैं। कुंडली में अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए श्री कृष्ण मोर पंख लगाते हैं। ऐसी तमाम वजह बताई गई है, लेकिन इनमें से एक कारण और बताया गया है। आइए जानते हैं श्री कृष्ण के मुकुट में मोर पंख धारण करने के पीछे क्या है वजह..
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राधा जी के प्रेम में लगाते थे मोरपंंख
पुराणों के अनुसार महारास लीला के समय राधा ने उन्हें वैजयंती माला पहनाई थी। कहते हैं कि एक बार श्री कृष्ण राधा के साथ नृत्य कर रहे थे। तभी उनके साथ एक मोर भी नृत्य कर रहा था। उस दौरान मोर का पंख भूमि पर गिर गया तो प्रभु श्री कृष्ण उठाकर उसे अपने मुकुट पर धारण कर लिया था। इसके बाद जब राधा जी ने श्री कृष्ण से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि इन मोरों के नाचने में उन्हें राधा जी का प्रेम दिखता है। हिंदू शास्त्रों के मुताबिक राधा जी के वहां बहुत सारे मोर थे। यह भी कहा जाता है कि बचपन से ही माता यशोदा भगवान कृष्ण के सिर में मोर पंख को सजाती थी।
कालसर्प दोष को दूर करने के लिए धारण किया था मोरपंख
वहीं ज्योतिष विद्वान मानते हैं कि भगवान श्री कृष्णा मोर पंख इसलिए धारण करते थे क्योंकि उनके कुंडली में कालसर्प दोष था। मोर पंख लाने से हर तरह का दोष दूर हो जाता है। कालसर्प दोष को दूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने मोर पंख धारण किया था।
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यह भी है मुख्य वजह
इसके अलावा भगवान राम को जोड़ कर भी इसके पीछे वजह बताई जाती है। कहा जाता है कि वनवास के दौरान माता सीताजी को प्यास लगी, तभी श्रीरामजी ने चारों ओर देखा, तो उनको दूर-दूर तक जंगल ही जंगल दिख रहा था। फिर उन्होंने प्रकृति से प्रार्थना की, हे वन देवता आसपास जहां कहीं पानी हो, वहां जाने का मार्ग कृपा कर सुझाइए। तभी वहां एक मयूर ने आकर श्रीरामजी से कहा कि आगे थोड़ी दूर पर एक जलाशय है। चलिए मैं आपके मार्ग का पथ प्रदर्शक बनता हूं, किंतु मार्ग में हमसे भूल-चूक होने की संभावना है।
भगवान राम ने मयूर से पूछा कि आप ऐसा क्यों कह रहे हैं ? तब मयूर ने उत्तर दिया कि मैं उड़ता हुआ जाऊंगा और आप चलते हुए आएंगे, इसलिए मार्ग में, मैं अपना एक-एक पंख बिखेरता हुआ जाऊंगा। उसके सहारे आप जलाशय तक पहुंच ही जाओगे। जबकि ऐसा माना जाता है कि मोर के पंख एक विशेष समय में एवं एक विशेष ऋतु में ही गिरते हैं। मोर यदि अपनी इच्छा विरुद्ध पंखों को बिखेरेगा, तो उसकी मृत्यु हो जाती है। भगवान को मार्ग दिखाने वाले मोर के साथ भी ऐसा ही हुआ। अंत में जब मयूर अपनी अंतिम सांस ले रहा होता है, तब उसने मन ही मन में कहा कि वह कितना भाग्यशाली है, कि वे प्रभु जो जगत की प्यास बुझाते हैं।
तभी भगवान श्रीराम ने मयूर से कहा कि मेरे लिए तुमने जो मयूर पंख बिखेरकर, अपने जीवन का त्यागकर मुझ पर जो ऋण चढ़ाया है, मैं उस ऋण को अगले जन्म में जरूर चुकाऊंगा। कहा जाता है कि जब भगवान राम ने कृष्णजी के रूप में अगला अवतार लिया और अपने सिर पर मोर पंख धारण किया और अपने वचन अनुसार उस मयूर का ऋण उतारा था।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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