नई दिल्ली : किसी भी शुभ मौके की पूजा के दौरान हाथ में मौली बांधने की परंपरा है। कच्चे सूत से तैयार इस धागे को कलावा या रक्षा सूत्र भी कहा जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि हाथ में मौली बांधने से त्रिदेव और तीनों महादेवियों की कृपा प्राप्त होती है। माना जाता है कि कलाई पर इसे बांधने से जीवन पर आने वाले संकट से रक्षा होती है।
मौली का वस्तुतः अर्थ है सबसे ऊपर। यही वजह है कि भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा के विराजमान होने पर इनको चन्द्रमौलि भी कहा जाता है। मौली बांधने के लिए मंगलवार और शनिवार का दिन शुभ माना जाता है।
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कहां से शुरू हुई थी परंपरा
शास्त्रों के अनुसार कलावा यानी मौलि बांधने की परंपरा की शुरुआत देवी लक्ष्मी और राजा बलि ने की थी। इसे बांधने से महालक्ष्मी की कृपा से धन-संपत्ति, महासरस्वती की कृपा से विद्या-बुद्धि और महाकाली की कृपा से शक्ति प्राप्त होती है। साथ ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेवों की कृपा भी मिलती है।
मौली का धागा कच्चे सूत से तैयार किया जाता है। मौली कई रंगों - लाल, काला, पीला, सफेद या नारंगी आदि में आती है और इसे लोग हाथ, गले, बाजू, कमर आदि पर बांधते हैं।
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मौली बांधने का मंत्र :
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
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मौली बांधने के वैज्ञानिक कारण
वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो मौली बांधने के कई फायदे भी हैं। विज्ञान के अनुसार शरीर के कई प्रमुख अंगों तक पहुंचने वाली नसें कलाई से होकर गुजरती हैं। अगर हाथ में कलावा बांधा जाए तो इन नसों की क्रिया नियंत्रित रहती है। इस तरह शरीर में वात, पित्त और कफ का सामंजस्य बना रहता है।
माना जाता है कि इससे रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और लकवा जैसी बीमारियों को रोकने में भी मदद मिलती है।
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मौली बांधने के ये हैं नियम
शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए। कलावा बंधवाते समय हाथ की मुट्ठी बंद होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए। विवाहित महिलाओं को मौली बाएं हाथ में बंधवानी चाहिए।
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