बैसाखी सिखों के लिए नया साल का पहला दिन होता है और इस दिन को वे बैसाखी त्यौहार की तरह सेलिब्रेट करते हैं। बसंत ऋृतु में फसलों की कटाई की खुशी में भी बैसाखी मनाई जाती है इसके अलावा गुरु गोबिंद सिंह के द्वारा खालसा पंथ के निर्माण किए जाने के उपलक्ष्य में इस दिन को सेलिब्रेट किया जाता है। 1699 में सिखों के गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ का निर्माण किया था।
हर साल 13 अप्रैल को बैसाखी मनाई जाती है और हर 36 सालों के बाद इसे 14 अप्रैल को सेलिब्रेट किया जाता है। बैसाखी शब्द हिंदू कैलेंडर वैशाख से लिया गया है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैशाख साल का दूसरा महीना होता है, पहला महीना चैत्र होता है जबकि इस कैलेंडर के मुताबिक साल का अंतिम महीना फाल्गुन होता है जिसे फागुन भी कहा जाता है। इस मौसम में उत्तर भारत में किसान फसलों की कटाई करते हैं इसके बाद आने वाले फसलों की तैयारी करते हैं।
इस दिन गुरुद्वारे को सजाया जाता है और बड़ी संख्या में यहां सिख श्रद्धालु मत्था टेकने आते हैं। तालाब में या झील में वे सिख श्रद्धालु पवित्र स्नान करते हैं फिर गुरुद्वारे में प्रार्थना करते हैं इस दिन नगर कीर्तन का भी आयोजन किया जाता है साथ ही फूड चैरिटी व लंगर का भी आयोजन किया जाता है।
गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ पढ़ा जाता है इसे ही नगर कीर्तन कहा जाता है। सिख श्रद्धालु इसमें गीत गाते हैं और मंत्रोच्चारण करते हैं। नगर कीर्तन हमेशा पंज प्यारे (खालसा समूह के पांच सदस्य) के द्वारा किया जाता है ये सभी नारंगी रेग के पोशाक में होते हैं। सड़कों पर सेवादार होते हैं जो जरूरतमंदों व गरीबों की सेवा करते हैं उन्हें भोजन करवाते हैं। इसके बाद गुरुद्वारे मे अरदास की जाती है।
केवल सिखों के लिए ही नहीं गैर सिख समुदायों के लिए भी ये एक पवित्र दिन माना जाता है। बैसाखी के इस पावन मौके पर वे नदी में या लेक में पवित्र डुबकी लगाते हैं और इसके बाद मंदिर में जाकर भगवान की पूजा करते हैं। बैसाखी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। बंगाल में और असम में इसे बिहू कहा जाता है। इसके अलावा बिहार में भी इसे धूमधाम से मनाया जाता है।
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