Dandvat Pranam Rules for Woman: सनातन हिन्दू धर्म में भगवान के समक्ष प्रणाम करने और उनकी उपासना करने के लिए अलग-अलग समय पर अलग-अलग विधियां और नियम बताए गए हैं। इन्हीं में से एक है दंडवत प्रणाम या साष्टांग प्रणाम की विधि। धार्मिक शास्त्रों में भगवान के समक्ष दंडवत प्रणाम करने की विधि को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। हालांकि स्त्रियों के लिए दंडवत प्रणाम करना वर्जित बताया गया है। इसके कई कारण है, जिस बारे में हम आपको इस लेख में बताएंगे। लेकिन छठ पूजा के दौरान महिलाओं को दंडवत प्रणाम करने की छूट होती है। छठ पूजा में व्रती भगवान भास्कर को दंडवत प्रणाम करती है।
स्त्रियों को क्यों नहीं करना चाहिए दंडवत
हिंदू परंपराओं में स्त्रियों को पूजनीय माना गया है। धार्मिक ग्रंथों में भी स्पष्ट किया गया है कि महिलाओं को किसी के सामने दंडवत नहीं होना चाहिए। धर्मसिंधु नाम के ग्रंथ में महिलाओं को दंडवत प्रणाम क्यों नहीं करना चाहिए इसके बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है। धर्मसिंधु में एक श्लोक है "ब्राह्मणस्य गुदं शंखं शालिग्रामं च पुस्तकम् , वसुन्धरा न सहते कामिनी कुच मर्दनं" अर्थात ब्राह्मणों का पिछला हिस्सा शंख, शालिग्राम, धार्मिक पुस्तकें और स्त्रियों का वक्षस्थल यानी स्तन अगर सीधे धरती से स्पर्श करता है तो धरती इस भार को सहन नहीं कर पाती है।
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इस कारण स्त्रियों को नहीं करना चाहिए दंडवत प्रणाम
हिंदू परंपराओं में स्त्रियों को देवी और पूजनीय माना गया है। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि स्त्रियों को किसी के सामने दंडवत प्रणाम नहीं करना चाहिए। ग्रंथों के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि स्त्रियों का गर्भ और वक्षस्थल यानी स्तन जमीन में टच नहीं होना चाहिए। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि स्त्रियों का गर्भ एक जीवन को अपने भीतर सहेजे रखता है और और वक्ष उस जीवन को पोषण प्रदान करता है। अर्थात स्त्रियां जीवनदायिनी है इसलिए पूजनीय है। इसलिए स्त्रियों का दंडवत प्रणाम करना शास्त्रों में वर्जित बताया गया है।
छठ पूजा के दौरान स्त्रियों को दंडवत की है छूट
छठ पूजा अर्थात भगवान भास्कर की आराधना हिंदू धर्म में काफी महत्वपूर्ण माना गया है। इस दौरान व्रती भगवान भास्कर के सम्मुख साष्टांग या दंडवत प्रणाम करती हैं। इस दौरान बड़ी संख्या में स्त्रियां भी भगवान सूर्य नारायण को पूजा कर दंडवत प्रणाम करती हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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