Skand Shashti story: स्कंद षष्ठी पर आज करें, संतान को कष्ट मुक्त करने के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा

Skand Shashti 2020 : स्कंद षष्ठी का व्रत 19 दिसंबर यानी आज है। यह व्रत भगवान कार्तिकेय के लिए रखा जाता है। तो चलिए स्कंद षष्ठी व्रत का मुहूर्त, पूजा विधि एवं धार्मिक महत्व बताएं।

Skand Shashti 2020, स्कंद षष्ठी 2020
Skand Shashti 2020, स्कंद षष्ठी 2020 
मुख्य बातें
  • स्कंद षष्ठी पर भगवान कार्तिकेय की पूजा करनी चाहिए
  • संतान सुख और संतान के कष्ट मुक्ति के लिए व्रत करना चाहिए
  • हर मास व्रत करने से इसके पुण्यालाभ तुरंत मिलते हैं

Skand Shashti story : मार्गशीर्ष मास की शुक्ल षष्ठी को स्कंद षष्ठी का व्रत होता है। हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी को स्कंद षष्ठी का व्रत रखा जाता है। दिसंबर माह में यह व्रत शनिवार 19 को रखा जाएगा। भगवान कार्तिकेय भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र हैं और इनकी पूजा से मनुष्य को धन-वैभव और सुख की प्राप्ति होती है। इस व्रत को उन लोगों को भी करना चाहिए जिनकी संतान नहीं है या संतान के जीवन में कष्ट हो। इस व्रत को करने के कई अन्य पुण्य लाभ भी मिलते हैं। तो चलिए जानें की स्कंद षष्ठी की पूजा किस विधि से करनी चाहिए और इसका महत्व क्या है।

जानें, स्कंद षष्ठी व्रत का मुहूर्त, पूजा विधि एवं धार्मिक महत्व

स्कंद षष्ठी व्रत के दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान कर लें और इसके बाद व्रत-पूजन का संकल्प लें। इसके बाद पूजा स्थल पर आसन रख कर मां गौरी और शिव जी के साथ भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा को स्थापित करें। इसके बाद एक कलश में जल भर लें और फल, फूल, मेवा, कलावा, दीपक, अक्षत, हल्दी, चंदन, दूध, गाय का घी, इत्र आदि भगवान को अर्पित करें। इसके बाद आरती करें। प्रसाद वितरित करें और भगवान का ध्यान कर अपनी कामना उनके समक्ष रखें। इसके बाद शाम के समय फिर से आरती करें और कीर्तन-भजन आदि करें और इसके बाद फलाहार करें।

स्कंद षष्ठी का धार्मिक महत्व

स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत-पूजन से मनुष्य को जीवन में हर तरह की कठिनाइंयों से मुक्ति मिलती है। साथ ही उसे सुख और वैभव की प्राप्ति होती है। यह व्रत संतान के कष्टों को कम करने और उसके सुख की कामना के लिए भी किया जाता है। भगवान का इस दिन उनका प्रिय पुष्प चंपा जरूर अर्पित करें। स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर नामक राक्षस का वध किया था।

ऐसे हुआ था भगवान कार्तिकेय का जन्म

कुमार कार्तिकेय के जन्म का वर्णन हमें पुराणों में ही मिलता है। जब देवलोक में असुरों ने आतंक मचाया हुआ था, तब देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ा था। लगातार राक्षसों के बढ़ते आतंक को देखते हुए देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से मदद मांगी थी। भगवान ब्रह्मा ने बताया कि भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही इन असुरों का नाश होगा, परंतु उस काल च्रक्र में माता सती के वियोग में भगवान शिव समाधि में लीन थे।

इंद्र और सभी देवताओं ने भगवान शिव को समाधि से जगाने के लिए भगवान कामदेव की मदद ली और कामदेव ने भस्म होकर भगवान भोलेनाथ की तपस्या को भंग किया। इसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया और दोनों देवदारु वन में एकांतवास के लिए चले गए। उस वक्त भगवान शिव और माता पार्वती एक गुफा में निवास कर रहे थे। उस वक्त एक कबूतर गुफा में चला गया और उसने भगवान शिव के वीर्य का पान कर लिया परंतु वह इसे सहन नहीं कर पाया और भागीरथी को सौंप दिया। गंगा की लहरों के कारण वीर्य 6 भागों में विभक्त हो गया और इससे 6 बालकों का जन्म हुआ। यह 6 बालक मिलकर 6 सिर वाले बालक बन गए। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म हुआ।

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