मत्स्य द्वादशी पर भगवान नारायण की पूजा का विधान होता है। मत्स्य द्वादशी के दिन ही भगवान ने मस्तय रूप धारण किया था और ये भगान विष्णु का प्रथम अवतार था। मान्यता है कि इस दिन विष्णु भगवान ने मत्स्य का रूप धारण कर वेदों की रक्षा की थी और यही कारण है कि मत्स्य द्वादशी का विशेष महत्व माना जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए और इससे मनुष्यक समस्त कष्ट दूर होते हैं और उसके जीवन के हर कार्य सिद्ध होते हैं। बता दें कि मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की द्वादशी को भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में दैत्य हयग्रीव का वध किया था। मत्स्य द्वादशी 26 दिसंबर को मनाई जाएगी।
व्रत पूजा विधि
सुबह सूर्योदय के साथ स्नान कर सूर्यदेव को जल अर्पित करें और व्रत पूजन का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु को एक चौकी पर पीला आसन देकर विराजमान करें। याद रखें भगवान के साथ साथ में देवी लक्ष्मी भी जरूर रखें। इसके बाद भगवान के समक्ष पीले फूल अर्पित करें और गाय के घी का दीप जलाएं। धूप-अगरबत्ती की सुगंध दें। इसके बाद तुलसी के पत्ते अर्पित कर मिष्ठान का भोग। पूजा के बाद प्रसाद का वितरण करें और जरूरतमंदों को दान दें।
इसके बाद इस मंत्र का करें यथा शक्ति जाप
मंत्र: ॐ मत्स्यरूपाय नमः॥ इस मंत्र का जाप करें।
इस दिन करें ये अचूक उपाय
मत्स्य द्वादशी के दिन जलाशय या नदियों में मछलियों को आटे की गोली खिलाना बहुत ही पुण्यकारी माना गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य के कुंडली के दोष दूर होते हैं।
मत्स्य अवतार का महत्व
भगवान विष्णु जी के 12 अवतार में प्रथम अवतार मत्स्य अवतार है। मत्स्य द्वादशी के दिन भगवान श्री विष्णु जी भक्तो के संकट दूर करते है तथा भक्तों के सब कार्य सिद्ध करते हैं।
मत्स्य अवतार की कथा
सनातन धर्म के धार्मिक ग्रंथो के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी की असावधानी से दैत्य हयग्रीव ने वेदो को चुरा लिया। हयग्रीव द्वारा वेदों को चुरा लेने के कारण ज्ञान लुप्त हो गया।
समस्त लोक में अज्ञानता का अंधकार फ़ैल गया। तब भगवान विष्णु जी ने धर्म की रक्षा के लिए मत्स्य अवतार धारण कर दैत्य हयग्रीव का वध किया और वेदो की रक्षा की तथा भगवान ब्रह्मा जी को वेद सौप दिया।
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