खुल गए यमुनोत्री और गंगोत्री के कपाट, जानें क्या है इसका पौराणिक महत्व

आध्यात्म
Updated Apr 19, 2018 | 22:39 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

अक्षय तृतीया के साथ उत्‍तराखंड की चारधाम यात्रा भी शुरू हो गई है। इस द‍िन से प्रथम दो तीर्थ यमुनोत्री और गंगोत्री के कपाट खुल गए हैं। इन दोनों स्‍थानों का खास पौराण‍िक महत्‍व बताया गया है।

यमुनोत्री को चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव कहा जाता है। Pic: http://uttarakhandtourism.gov.in/ 

नई दिल्ली: अक्षय तृतीया के मौके पर 18 अप्रैल को चार धाम यात्रा के प्रथम दो तीर्थ यमुनोत्री और गंगोत्री के कपाट बुधवार को श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोल दिए गए। गंगोत्री व यमुनोत्री धाम के कपाट बुधवार को खुलने के साथ ही चारधाम यात्रा की विधिवत शुरुआत हो गई। अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर पारंपरिक रीति-रिवाजों और पूजा-पाठ के साथ यमुनोत्री धाम और गंगोत्री धाम के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोल दिए गए। इस दौरान श्रद्धालुओं की भारी भीड़ थी और उन्होंने जयकारा लगाते हुए मंदिर में प्रवेश किया। इस अवसर पर हजारों तीर्थयात्रियों ने इन पवित्र तीर्थों के दर्शन किए। गौरतलब है कि 12 ज्योतिर्लिंगों में शुमार केदारनाथ धाम के कपाट 29 अप्रैल और बदरीनाथ धाम के कपाट 30 अप्रैल को खोले जाएंगे।  

यमुनोत्री को चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक यमुना सूर्यदेव पुत्री है। पुराणों में यमुनोत्री को आसित मुनि की तपो- स्थली के रूप में वर्णित किया गया है। आसित ऋषि की उम्र ज्यादा हो जाने की वजह से वह अपनी कुटिया से बाहर नहीं जा सकते थे। एक दिन उनकी कुंड नें नहाने का मन हुआ और वह तपस्या करने बैठ गए। उनकी तपस्या देख माता यमुना ऋषि से प्रसन्न होकर कुटिया में ही प्रकट हो गईं। तभी से इस स्थान को यमुनोत्री रख दिया गया।  यमुना नदी यमुनोत्री से निकलती हैं। यहां देवी यमुना का मंदिर स्थित है। ये अपने उदगम से विशाल हिमगारों और हिम मंडित कंदराओं से बहती हुई पहाड़ों से उतरती हुई यमुनोत्तरी पर्वत से प्रकट होती हैं। यमुना को  कालिंदजा अथवा कालिंदी भी कहा जाता है। यमुनोत्री में प्राकृतिक नजारों के अतिरिक्त गर्म पानी का कुंड भी है। जिसे सूर्य कुंड कहते हैं। 

गंगोत्री की महिमा 
चारधाम का दूसरा पड़ाव गंगोत्री को माना जाता है। यमुनोत्री के दर्शन कर श्रद्धालु और तीर्थयात्री गंगोत्री में गंगा मां के दर्शन व पूजा के लिए पहुंचते हैं। राजा भागीरथ ने गंगा को धरती पर लाने  के लिए इसी स्थान पर हजारों साल तक तपस्या की थी।

मंदिर के बारे में एतिहासक तथ्य यह है कि इस मंदिर को 18वीं शताब्दी में सेना एक जर्नल ने बनवाया था। अक्षय तृतीया को यह तीर्थस्थल खुलता है तथा दीपावली के बाद बंद हो जाता है। गंगा का प्राकृतिक स्रोत गोमुख ग्लेश्यिर है जो गंगोत्री तीर्थ से 18 किलोमीटर की दूरी पर है।  गोमुख गंगोत्री से 18 किलोमीटर की दूरी पर है। इस गुफा का मुख्य द्वार गाय के मुख जैसा है इसलिए इसे गोमुख कहते हैं। गोमुख यानी गाय का मुख। गोमुख ही गंगा नदी के जल का स्रोत है। 

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