हर साल अहोई अष्टमी बहुत हर्षोल्लास के साथ मनायी जाती है। इस तिथि का बहुत ही अधिक महत्व है। यह व्रत संतान के लिए रखा जाता है। इस दिन निःसंतान दंपत्ति निर्जला व्रत रखते हैं और संतान प्राप्ति की कामना करते हैं। अहोई अष्टमी देश के विभिन्न हिस्सों में मनायी जाती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार संतान की चाह रखने वाले पति पत्नी अहोई अष्टमी का व्रत रखकर मध्य रात्रि को राधाकुंड में स्नान करते हैं और अहोई माता से अपनी सूनी गोद भरने की कामना करते हैं। अहोई अष्टमी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पड़ती है। इस दिन माताएं अपने पुत्र की लंबी उम्र और उसके जीवन में समृद्धि की भी कामना करती हैं। इस वर्ष अहोई अष्टमी 21 अक्टूबर को है।
राधा कुंड कहां है
उत्तर प्रदेश के मथुरा में गोवर्धन गिरिधारी की परिक्रमा मार्ग में राधा कुंड स्थित है। मान्यता है कि अहोई अष्टमी की मध्य रात्रि इस कुंड में डुबकी लगाने से सूनी गोद भर जाती है। यही कारण है कि यहां भारी भीड़ जुटती है और देश के विभिन्न स्थानों से निःसंतान दंपत्ति यहां आकर अहोई अष्टमी का व्रत रखकर इस पवित्र कुंड में स्नान करते हैं।
राधा कुंड से जुड़ी कथा
पुराणों के अनुसार एक बार कंस ने कृष्ण को मारने के लिए अरिष्टासुर नामक राक्षस को भेजा। अरिष्टासुर नन्हें बछड़े का रुप धारण करके कृष्ण के गायों के बीच छिप गया और उन्हें मारने का प्रयत्न करने लगा। भगवान कृष्ण ने बछड़े का रुप धारण किए उस दैत्य को पहचान लिया और जमीन पर पटक कर उसका वध कर दिया। तब राधा ने कृष्ण से कहा कि उन्होंने बछड़े को मारा इसलिए गौ हत्या के पाप से छुटकारा पाने के लिए उन्हें सभी तीर्थों के दर्शन करने चाहिए।
कृष्ण को नारद ने दी ये सलाह
तब श्रीकृष्ण ने नारद से गौ हत्या पाप से मुक्ति पाने का उपाय पूछा। देवर्षि ने कहा कि सभी तीर्थों के जल को एक कुंड में इकट्ठा करके उसमें स्नान करने से पाप से छुटकारा मिल जाएगा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने सभी तीर्थों का आह्वान करके एक कुंड में जल इकट्टा किया और स्नान करके पाप मुक्त हो गए। इस कुंड को कृष्ण कुंड कहा जाता है। देवर्षि नारद के कहने पर श्रीकृष्ण ने अपनी बांसरी से कुंड खोदा था और उसमें सभी तीर्थों के जल का जल भरा था।
राधा ने अपने कंगन से खोदा था कुंड
भगवान श्री कृष्ण के कुंड को देखकर राधा ने भी उसी कुंड के पास अपने कंगल से एक छोटा सा कुंड खोदा था। तब भगवान श्री कृष्ण ने उस कुंड को प्रसिद्धि का वरदान दिया था। राधा द्वारा खोदे गए उस कुंड को राधा कुंड कहते हैं। कृष्ण कुंड की अपेक्षा राधा कुंड में लोग रोजाना स्नान करते हैं। अहोई अष्टमी के दिन इस कुंड में स्नान करने के लिए भारी भीड़ जमा होती है।
राधा कुंड में भरा है सफेद जल
कृष्ण द्वारा निर्मित कृष्ण कुंड का जल काला जबकि राधा कुंड का जल सफेद वर्ण का है। यह कृष्ण के काले और राधा के गोरे रंग का प्रतीक है। कृष्ण के वरदान के कारण ही राधा कुंड को इतनी प्रसिद्धि मिली।
संतान की चाह रखने वाले सभी दंपत्ति अहोई अष्टमी के दिन आधी रात को राधा कुंड में स्नान करते हैं और माता अहोई की कृपा से उन्हें मनचाहे फल की प्राप्ति होती है।
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | अध्यात्म (Spirituality News) की खबरों के लिए जुड़े रहे Timesnowhindi.com से | आज की ताजा खबरों (Latest Hindi News) के लिए Subscribe करें टाइम्स नाउ नवभारत YouTube चैनल