नई दिल्ली. सिख धर्म का भारतीय धर्मों में अपना एक पवित्र स्थान है। सिख धर्म के पहले गुरु गुरु नानकदेव ने इस धर्म की शुरुआत 15वीं शताब्दी में की। कुछ शिष्यों के साथ शुरु हुआ यह कुनबा आज सात समंदर पार तक फैला हुआ है। सिख धर्म में गुरुद्वारे का विशेष महत्व है। ऐसे में आइए जानते हैं दिल्ली के कुछ मशहूर गुरुद्वारों के बारे में। जो आज भी गुरुओं के गाथाओं को बयां कर रहे हैं।
दिल्ली के बंगला साहिब गरुद्वारे को लेकर अनेको मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि यह गुरुद्वारा पहले जयपुर के महाराजा जय सिंह का बंगला था। यहां पर सिखों के आठवें गुरु हर किशन सिंह अपने दिल्ली प्रवास के वक्त यहां पर रहते थे।
आपको बता दें उस वक्त हैजा और चिकनपॉक्स जैसी महामारियों ने अपना विकराल रूप धारण कर रखा था। उस वक्त गुरु हरकिशन महाराज ने लोगों को अपने आवास से पानी और दूसरी सेवाएं उपलब्ध करा कर लोगों की मदद की।
इस गुरुद्वारे को लेकर मान्यता है कि यहां का पानी रोगनाशक है और इसे पवित्र माना जाता है। देश दुनिया के सिख और गुरु हरकिशन महाराज के अनुयायी यहां से पानी भरकर ले जाते हैं। यहां पर साल के 365 दिन लंगर चलता रहता है।
यह गुरुद्वारा दिल्ली के कनॉट प्लेस पर स्थित है। यह गोल डाक खाना के पास है। यहां का नजदीक मेट्रो स्टेशन राजीव चौक या पटेल चौक मेट्रो स्टेशन है। यदि आप लोकल ट्रेन से सफर करना चाहते हैं तो यहां पर गुरुद्वारे से थोड़ी दूर पर शिवाजी ब्रिज रेलवे स्टेशन है।
गुरुद्वारा शीशगंज साहिब
यह वही जगह हैं जहां गुरु जी ने अपने देश और धर्म के लिए अपने प्रांणो की आहुति दी थी। यह गुरुद्वारा दिल्ली में मौजूद नौ ऐतिहासिक गुरुद्वारों में से एक है। इस गुरुद्वारे का निर्माण 1783 में बघेल सिंह ने गुरु तेगबहादुर जी के शहादत के उपलक्ष्य में करवाया था।
इस गुरुद्वारे को लेकर और गुरु तेगबहादुर के शहादत के रूप में इतिहास में अनेकों कथाएं मौजूद हैं। मान्यता है कि जिस जगह पर औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर का सिर कटवा दिया था, उसी जगह पर शीशगंज गुरुद्वारे का निर्माण उनके अनुयाइयों ने करवाया है।
आपको बता दें गुरुद्वारा शीशगंज साहिब दिल्ली की पुरानी मार्केट चांदनी चौक में स्थित है। यह लाल किले के पास है। यहां का नजदीकी मेट्रो स्टेशन चांदनी चौक है।
यदि आप लोकल ट्रेन से सफर करना चाहते हैं तो आप पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से उतरकर थोड़ी दूर पैदल चलकर गुरुद्वारा शीशगंज साहिब पहुंच सकते हैं।
गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब
गुरुद्वारा श्री रकाबगंज साहिब वह स्थान है जहां पर गुरु तेग बहादुर जी का अंतिम संस्कार किया गया। बताया जाता है कि गुरु तेग बहादुर की हत्या करने के बाद औरंगजेब ने उनका शव देने के लिए मना कर दिय था।
गुरु तेग बहादुर के चेले लखा शाह वंजारा ने तब अंधेरे की आड़ में उनके शव को लेकर चले गए और इस स्थान पर दाह संस्कार किया। यह स्थान आज गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब के नाम से मशहूर है। आज भी यहां पर लाखों की संख्या में सिख धर्म के लोग और गुरु तेग बहादुर के अनुयाई गुरु जी को श्रद्धांजलि देने आते हैं।
गुरुद्वारा दमदमा साहिब
गुरुद्वारा दमदमा साहिब दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित है। यह गुरुद्वारा गुरु गोबिंद सिंह और बहादुर शाह के बीच बैठक के रूप में जाना जाता है।
आपको बता दें यह हुमायूं के मकबरे के पास स्थित है। इसका निर्माण साल 1783 में किया गया था। आपको बता दें गुरुद्वारा दमदमा साहिब पंजाब में भी स्थित है। यह गुरुद्वारा साहिब सिख धर्म के पांच तख्तों में से एक है।
गुरुद्वारा मोती बाग साहिब
दिल्ली के गुरुद्वारा मोती बाग साहिब को लेकर मान्यता है कि गुरु गोबिंद सिंह जब 1707 में पहली बार दिल्ली आए थे तो यहां पर अपने सैनिकों के साथ रुके थे। यह गुरुद्वारा दक्षिणी दिल्ली के मोतीबाग में स्थित है।
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