नई दिल्ली. हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यताओं और कथाओं के अनुसार देवी-देवताओं का वास पहाड़ों में होता है। इसी कारण पहाड़ी राज्य उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है। यहां पर कई मंदिर है जिसके रहस्य आज तक कोई सुलझा नहीं सका है। ऐसा ही एक है रुद्रप्रयाग में सिद्धपीठ कालीमठ मंदिर।
स्कन्द पुराण के केदारखंड के 62वें अध्याय में मां काली के कालीमठ मंदिर का जिक्र है। इस मंदिर से आठ किलोमीटर की ऊंचाई पर एक दिव्य शिला है। इस शीला को कालीशिला के नाम से जाना जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दानव शुंभ और निशुंभ और रक्तबीज का वध करने के लिए मां काली ने इस स्थान पर 12 साल की बालिका के रूप में जन्म लिया था।
आज भी है पैरों के निशान
कालीशिला में आज भी मां काली के पैरों के निशान मौजूद है। कालीशिला में देवी-देवता के 64 यंत्र हैं। कहते हैं इन्हीं यंत्रों से मां दुर्गा को दैत्यों का संहार करने की शक्ति मिली थी।
कालीमठ मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। इसके अंदर स्थित एक कुंड है, जिसकी पूजा की जाती है। कुंड को साल में एक दिन शारदीय नवरात्रि की अष्टमी के मौके पर खोला जाता है।
ऐसी होती है पूजा
कालीमठ मंदिर में पूजा भी विशेष रूप से होती है। अष्टमी की आधी रात की पूजा के दौरान इस जगह केवल मंदिर के ही पुजारी मौजूद रहते हैं। महाकाली के अलावा यहां महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली के मंदिर है।
तीनों देवियों की पूजा दुर्गासप्तशति के वैकृति रहस्य में बताए गए विधान से होती है। इसके बाद साल के बाकी के दिनों में इसे रजतपट श्री यंत्र से ढका जाता है।
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