रणथंभौर के किले में विराजित गणपति के पास भक्त सबसे पहले अपनी मंशा और शुभ कार्य की सूचना देते हैं और ये सूचना गणपति जी तक चिट्ठियों के माध्यम से पहुंचाई जाती है। रणथंभौर के किले में स्थित मंदिर में तीन आंखों वाले गणपति जी स्थापित हैं। मान्यता है कि इस अति प्राचीन मंदिर में जो भी मनोकामना भगवान के सामने रखी जाती है, वह पूरी जरूर होती है। यहां भक्त अपने घरों में होने वाले शुभ कार्य का निमंत्रण चिट्ठियों के जरिये गणपति जी को देते हैं। साथ ही जिसकी कोई मनौती होती है वह भी उसे चिट्ठियों में लिख कर गणपति जी को भेजता है। बकायदा यहां रोज डाक आती है।
दिल की बात चिट्ठियों में भक्त लिखते हैं
आस्था और विश्वास के साथ भक्त यहां अपने दिल की बात चिट्ठियों में लिख कर गणपति जी को भेजा करते हैं। राजस्थान के रणथंभौर के किले में बना इस मंदिर में प्राचीन काल से लोग ऐसे ही अपनी मनोकामना और शुभ कार्य गणपति जी तक पहुंचाते रहे हैं। यहां हर शुभ कार्य से पहले गणपति जी को चिट्ठी भेजकर निमंत्रण देने का ही रिवाज रहा है।
राजा हमीर ने बनवाया था मंदिर
गणपति जी के इस मंदिर की निर्माण रणथंभौर के राजा हमीर ने 10वीं सदी में कराया था। बताया जाता है कि युद्ध के समय गणेश जी राजा के सपने में आए और उन्हें विजयी होने का आशीर्वाद दिया था और राजा विजयी हुए भी। इसके बाद राजा हमीर ने किले में मंदिर की स्थापना कराई।
सपरिवार विराजित हैं यहां गणपति जी
इस मंदिर में जहां भगवान गणपति की तीन आंखे हैं वहीं वह सपरिवार भी विराजित हैं। भगवान गणपति के साथ उनकी पत्नी रिद्धि, सिद्धि और पुत्र शुभ-लाभ भी विराजमान हैं। हर गणपति उत्सव यहां बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।
जानें क्या है गणपति जी का पता
इस मंदिर में लोग डाक द्वारा चिट्ठियां भेजते हैं और बकायदा यहां डाकिया डाक लेकर भी आता है। इस मंदिर का पता भी है। 'श्री गणेश जी, रणथंभौर का किला, जिला- सवाई माधौपुर (राजस्थान)। डाकिया चिट्ठियों को पवित्रता और सम्मान के साथ मंदिर में पहुंचाता है।
पुजारीी पढ़ कर सुनाते हैं प्रभु को चिट्ठियां
मंदिर के पुजारी चिट्ठियों को भगवान गणपति के समक्ष पढ़कर उनके चरणों में रख देते हैं। ऐसा कहा जाता ही कि है कि इस मंदिर में भेजे जाने वाली चिट्ठियों की मनोकामना कभी अधूरी नहीं रहती है।
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