नई दिल्ली: पूरी दुनिया में आज यानी 21 जून को योग दिवस मनाया जा रहा है। ऐसे मौके पर जब कोरोना जैसी महामारी का भारत और दुनिया के कई देश सामना कर रहे हैं, ऐसे समय में योग की सार्थकता और बढ़ जाती है। योग इम्यून सिस्टम को मजबूत और काया को निरोग रखने के लिए कितना जरूरी है इस पर सैकड़ों अनुसंधान हो चुके हैं और सबमें यही बात सामने आई है कि योग तन और मन को सशक्त, स्वस्थ रखने का अद्धभुत माध्यम है। अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर हमने योग, कोरोना महामारी को लेकर ऋषिकेश स्थित स्वामी चिदानंद सरस्वती से खास बातचीत की। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश-
प्रश्न: स्वामी जी, विश्व योग दिवस 21 जून को मनाया जाता है लेकिन देश में ऐसी स्थिति क्यों नहीं है जब योग रोजाना देशवासियों के लिए एक ऐसे दिवस के रूप में हो जो स्वस्थ मन और तन की बुनियाद रखने में सहायक हो।
इसी की शुरुआत है यह गौरवशाली दिन। माननीय प्रधानमंत्री जी ने इसकी शुरुआत कर दी है। बस हमें इस दिशा में शुरू हो जाना है। चूंकि योग सब के लिये है योग। भारत की ओर से विश्व के लिये एक अनुपम देन है; एक उपहार है; वरदान है। योग भारत की विधा है परन्तु मैं तो उसे जीवन शैली कहता हूं। भारतीयों की जीवन पद्धति है योग। योग हमारे ऋषियों की तो जीवन पद्धति ही थी। वे योग सीखने के लिये किसी योग इंस्टीट्यूट में नहीं जाते थे और न ही ज्यादा किताबें पढ़ते थे बल्कि वे योग को जीते थे, वे ध्यान करते नहीं थे बल्कि वे ध्यान में ही जीते थे।
हमारी तो संस्कृति ही है सूर्य उदय से पहले उठो, 30 मिनट टहलो, योगाभ्यास, प्रभु का भजन, प्रार्थना, सूर्य को अर्घ्य देना और फिर शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करना, यही तो हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है, और यही तो योगी की दिनचर्या भी है। हमारा तो हर दिन ही योगमय हो, हमारी दिनचर्या ही योगमय हो।
संतुलित जीवन और संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखने के लिये योग तो बुनियादी जरूरत है इसलिये भारत वासियों के लिये एक दिन क्यों? हर दिन ही योग दिवस हो। हमारी संस्कृति तो वसुधैव कुटुम्बकम् की संस्कृति है। मानवता के कल्याण की संस्कृति है। देना और देते रहना ही भारतीय संस्कृति का मोटो है। माननीय प्रधानमंत्री जी के अथक प्रयासों से यूनाइटेड नेशन ने अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में योग को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचाने का प्रयास किया जो अपने आप में एक अद्भुत शुरुआत है। योग के माध्यम से केवल एक राष्ट्र नहीं बल्कि पूरी दुनिया स्वस्थ औरअधिक सक्रिय हो सकती है।
योग में समग्र स्वास्थ्य और समग्र कल्याण निहित है। योग हमारे ऋषियों द्वारा सदियों तक की गयी तपस्या का परिणाम है। योग हमारी उपलब्धियों में से एक है। यह सभी के लिये अमूल्य उपहार है जिसके द्वारा शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति की जा सकती। योग, जोड़ने और जुड़ने का प्रतीक है। योग सार्वभौमिक है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का तो उद्देश्य ही है, योग का अभ्यास व इससे होने वाले लाभों के बारे में देश और दुनिया को जागरूक करना परन्तु हाँ! भारत में अभी भी इस ओर और अधिक कार्य करने की जरूरत है।
प्रश्न: कोरोना-काल में योग हमारे जीवन की रक्षा के लिए किस प्रकार सहायक सिद्ध हो सकता है? योग इम्यूनि सिस्टम की मजबूती में कितना कारगर है?
जवाब : यस। कोरोना काल में योग का नियमित अभ्यास करने से प्रभावी परिणाम प्राप्त होते हैं। इससे इम्यून सिस्टम मजबूत होता है, शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है। योग, शरीर में ऊर्जा के स्तर को बढ़ाता है। तनाव को कम करता है और मन में सकारात्मकता का संचार करता है। आल इन वन,देखा जाये तो योग एक प्राकृतिक प्रतिरक्षा बूस्टर है नेचुरल इम्यूनिटी बूस्टर है। जिससे तन निरोग और मन स्वस्थ बनता है। शरीर से विषाक्त तत्वों को, सारे टाक्सिक्स को बाहर निकालने में मदद मिलती है। योग मन को शांत करता है, नींद गहरी आती है। स्वस्थ रहने के लिये नींद का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है। अच्छी नींद-अच्छा स्वास्थ्य। योग केवल शरीर को घुमाने,मोड़ने, सांस लेने और छोड़ने की एक्सरसाइज से कहीं अधिक है।
इससे शरीर में मजबूती आती है,मन स्थिर होता है। योग वास्तव में शरीर को संक्रमण से लड़ने और हमारी समग्र प्रतिरक्षा प्रणाली,हमारे पूरे इम्यून सिस्टम को मजबूत करने में मदद करता है परन्तु कब? जब आप नियमित रूप से योग करते हैं। ऐसा नहीं कि दो दिन किया फिर छोड़ दिया। जो लोग अक्सर तनाव में रहते हैं, उन्हें हृदय रोग, डाइबिटीज, मोटापा, अल्जाइमर आदि रोगों का जोखिम बना रहता है। अगर आपका इम्यून सिस्टम मजबूत रहेगा तो कोई भी वायरस या बैक्टीरिया शरीर में व फेफड़ों में प्रवेश नहीं कर सकता।
प्राणायाम हमारे रेस्पिरेट्री सिस्टम, श्वसन तंत्र के स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा हमारे लग्ंस, फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ जाती है। आपने कभी सोचा कि हम थक क्यों जाते हैं?क्योंकि हमारे अंगों को पर्याप्त आक्सीजन नहीं मिल पाती तथा उपयुक्त मात्रा में रक्त का प्रवाह नहीं हो पाता या फिर रक्त प्रवाह में कहीं न कहीं रुकावटें हो या विषाक्त पदार्थों का निर्माण हमारे शरीर में हो रहा हो ऐसे में शरीर थका-थका सा रहता है।
नियमित रूप से योग करने से शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं। सभी छोटे-बड़े अंगों तक ऑक्सीजन युक्त रक्त का प्रवाह बना रहता है। साथ ही योग का अभ्यास करने से हम अपनी प्रतिरक्षा, तंत्रिका, पाचन और अंतःस्रावी तंत्र और ग्रंथियों को सक्रिय कर सकते हैं जिससे हमारा पूरा इम्यून सिस्टम और शरीर मजबूत बना रहता है, इसलिये तो मैं कहता हूँ योग करो, रोज करो, और मौज करो।
प्रश्न: वैज्ञानिक देश में कोरोना की तीसरी लहर की आशंका जता रहे हैं ऐसे में आप हमें सरल भाषा में समझाए कि योग-प्राणायाम जैसी पुरानी पद्धति आत्म रक्षा हेतु कितनी कारगर हो सकती है। वो कौन से ऐसे प्रयास है जो हमें तत्काल प्रभाव से किए जाने चाहिए।
जवाब : मेरा तो मानना है कि कोरोना की तीसरी लहर से बचने के लिये वैक्सीन लगवायें और दूसरा विचारों की वैक्सीन भी बहुत जरूरी है। तीसरी लहर के भय को भाव में बदलें और इस विषाद को प्रसाद में बदलें। देखने में आया है कि कोरोना संक्रमण के साथ-साथ लोगों के अन्दर कोरोना का जो डर बैठ गया था वह और भी ज्यादा खतरनाक था। तनाव, डर और भय से स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल लंबे समय तक रक्त में रहता। अगर रक्त में इसका स्तर बढ़ता है तोकई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, इसलिये योग, ध्यान और प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने सेन केवल कोर्टिसोल बल्कि अन्य सभी हार्मोन्स का बेलेंस भी बना रहता है।
मेरा मानना है कि किसी भी तरह की बीमारी से लड़ने के लिए शरीर में प्राकृतिक प्रतिरक्षा तंत्र, नेचुरल इम्यून सिस्टम विकसित होना चाहिये, जो योग के द्वारा सम्भव है। महर्षि पतंजलि योगसूत्रम् में कहते हैं, ‘हेयं दुःखं अनागतं’ अर्थात दुःख का भाव क्लेश उत्पन्न करता है, अतः मन दुख से ग्रसित हो उससे पहले ही उससे छुटकारा पा लो। वैसे ही शरीर में बीमारी के लक्षण दिखाई दे उससे पहले ही योग, ध्यान और प्राणायम करना शुरू कर दीजिये। ईश्वर न करे तीसरी लहर आये परन्तु कोरोना वायरस तो अभी भी है इसलिये अपने आप को मजबूत तो करना ही होगा। योग, ध्यान और प्राणायाम के माध्यम से मन को शांत करने के साथ-साथ शरीर में प्राण तत्व, जीवन शक्ति, ओज और ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ाना होगा। योग के माध्यम से शरीर, मन और आत्मा में संतुलन बना रहता है।
योग के माध्यम से शरीर के अन्दर के विषाक्त तत्व, टाक्सिक बाहर आते हैं, प्राणायाम, ब्रीदिंग एक्सरसाइज के माध्यम से रेस्पिरेट्री सिस्टम की विषाक्तता बाहर निकलती है और ध्यान के माध्यम से विषाक्त विचारों से छुटकारा मिलता है। योग से शरीर के सारे टॉक्सिक बाहर और सारे टॉनिक अन्दर। टाक्सिक आउट-टॉनिक इन।
प्रश्न: ऐसी स्थिति में जब कोरोना वायरस संक्रमण के रुप में लोगों पर जानलेवा हमला कर रहा है क्या इसके लिए आध्यात्मिक रुप से कोई ऐसी शक्ति या स्थिति हो सकती है जिससे इसका मुकाबला किया जा सके और बचा जा सके। क्या पूजा-पाठ जप-तप इस संदर्भ में उपयोगी हो सकते है?
जवाब : इससे पहले कि हम इस चर्चा पर आगे बढ़ें एक छोटे से उदाहरण से समझते हैं- हमारे शरीर की रक्त वाहिकाओं में जब कोलेस्ट्राल जम जाता है, तो रक्त का प्रवाह पूरे शरीर में ठीक से नहीं हो पाता तब हमें इसके लिये मेडिसिन लेनी पड़ती है, है ना? रक्त है हमारे शरीर में, परन्तु शरीर के छोटे-छोटे पार्टस तक नहीं पहुंच रहा। वैसे ही इस ब्रह्माण्ड में ऊर्जा का अनंत प्रवाह है और हम जुड़े हुये हैं उस दिव्य प्रवाह से पर हमने अपने विचारों, भावनाओं और भावों में इतना मलबा जमा कर लिया है कि उस अनन्त सत्ता के दर्शन नहीं कर पाते, उस दिव्य सत्ता पर विश्वास नहीं कर पाते।
कहने का तात्पर्य आध्यात्मिक प्रेक्टिसेस हमारे उन अवरोधों को दूर करने में मदद करती है; शुद्ध चेतना जाग्रत करती है। यह प्रोसेस एक दिन या कुछ क्षणों का नहीं है, यह तो सतत चलने वाली है। जाग कर दिन रात जीवन मूर्ति, घड़ना है, उसे गढ़ना है। इससे आप अपनी मूल स्थिति में, अर्थात बच्चों की तरह निर्मल, शान्त मन और शुद्ध चित्त की प्राप्ति की ओर बढ़ने लगते है। जब आपका जीवन क्रिस्टल-क्लियर हो जाता है। जीवन में क्लेरिटी होती है, फिर आप और आपकी दुनिया शांतिमय और आनन्दमय हो जाती है। यह संसार भी शांति का सागर दिखायी देने लगता है जिसे आप बुद्धत्व की स्थिति भी कह सकते हैं।फिर वहां किसी चीज से मुकाबला करना या बचना नहीं बल्कि समर्पण की भावना जागृत हो जाती है। मेरा तो यह भी मानना है कि प्रकृति के कण-कण में ईश्वर का वास है
"ईशावास्यमिदं सर्वम्" यदि हम प्रकृति के अनुरूप जीवन जियें तो आवश्कता ही नहीं पड़ेगी कुछ और करने की। एक बात याद रखें प्रकृति और परमात्मा ने हमें सशक्त बनाया हैं बस हमें तो उन अवरोधों को दूर करने की आवश्यकता है! जो हमारे जीवन को शान्त, सुखी और निरोगी बनाने में आड़े आते हैं। निश्चित माने ध्यान से यह सम्भव है। दूसरी बात प्रार्थना, ध्यान और जप से मन को शान्ति मिलती है, मन सकारात्मकता से भर जाता है। शान्ति और सकारात्मकता का प्रत्यक्ष प्रभाव आप अपने शरीर पर, अपने शरीर में हार्मोंस के स्राव पर और विचारों में देख सकते हैं।
प्रश्न: अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर आप बुजुर्गों,युवाओं और बच्चों के लिए योग को लेकर क्या संदेश देना चाहेंगे।
जवाब : अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर मेरे प्यारे देशवासियों के लिये यही संदेश है कि अपने और अपने देश के स्वास्थ्य के लिये योग करें। योग हर आयुवर्ग के लिये है इसलिये योग को अपने जीवन का अंग बनायें। व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखं। आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम् ॥इसका मतलब है वन इन आल, योग से मिलता है स्वास्थ्य, लोंगेविटी, लम्बी आयु, बल और सुख की प्राप्ति होती है। निरोगी होना परम भाग्य है क्योंकि पहला सुख निरोगी काया और फिर स्वास्थ्य से, हेल्थ से ही सारे कार्य सिद्ध होते हैं । बॉडी फिट तो आल हिट, सब जगह बल्ले-बल्ले अपने स्वास्थ्य में सुधार लाने,शारीरिक और मानसिक बीमारी से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं को कम करने हेतु योग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
स्वास्थ्य हमारा वास्तविक धन है इसलिये ध्यान और योग को अपनाकर स्वस्थ और मजबूत रहें । ध्यान और योग के नियमित अभ्यास से बढ़ती हुई उम्र का असर शरीर और मस्तिष्क पर धीरे-धीरे होता है। इससे मस्तिष्क के कार्य करने की क्षमता और ऊर्जा के स्तर में बहुत ही सुधार हो सकता है।
अध्ययन में पाया गया कि प्रतिदिन केवल 20 से 25 मिनट मेडिटेशन का अभ्यास करने से मस्तिष्क के ग्रहण करने की क्षमता और नियंत्रित करने की क्षमता में अद्भुत वृद्धि होती है। योग और ध्यान से मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह में वृद्धि होती है जिससे बच्चों में एकाग्रता की क्षमता विकसित होती है। सबसे बड़ी बात योग से बच्चों के अन्दर नैतिक दृष्टिकोण विकसित होता है। सामंजस्य स्थापित करने में मदद करता है। अन्तिम संदेश वही राष्ट्र प्रगति करता है जिसमें रहने वाले सभी नागरिक स्वस्थ और निरोगी हों। व्यस्त हों पर स्वस्थ हों, इसलिये मैं सभी आयुवर्ग के मेरे प्यारे देशवासियों का आह्वान करता हूँ कि आईये करें योग रहें निरोग।
प्रश्न: भारत में योग के प्रचार प्रसार पर आप क्या कहना चाहेंगे, हर घर और युवा-बच्चों तक योग पहुंचे इसके लिए हमें क्या करना होगा। आपको क्या लगता है कि योग के प्रचार प्रसार में कहां चूक रह गई है।
जवाब : अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस का उद्देश्य ही यही है कि हर व्यक्ति और हर घर तक पहुंचे और प्रत्येक व्यक्ति केवल योग करे नहीं बल्कि योग को जियें। काफी हद तक हम इसमें सफल भी हुये हैं परन्तु अभी इस ओर बहुत कुछ करना बाकी है। हमारे देश में अभी भी एक बड़ी आबादी ऐसी है जिनकी पहुंच बेसिक मौलिक सुविधाओं तक नहीं है। ऐसे में स्वाभाविक है कि उनकी पहली जरूरत है, बेसिक सुविधाओं को जुटाना। मेरा मानना है कि योग को प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक घर तक पहुंचाने के लिये घर और स्कूल सबसे बेहतर माध्यम है।
अभी तो लगभग सभी शिक्षण संस्थायें बंद हैं परन्तु इसे नर्सरी से लेकर हायर एजूकेशन तक पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिये। देखा जाये तो इस समय अनेकों युवाओं के लिये स्वस्थ रहना सेकेन्डरी जरूरत है। सब की अपनी प्रायरिटीज़ है। पहले गुरूकुलों में योग कम्पलसरी था, स्वस्थ रहना हमारी प्रायरिटीज़ में था। इसे हम योग के प्रचार-प्रसार में चूक तो नहीं कह सकते परन्तु हाँ युवाओं को जागरूक करना होगा कि स्वस्थ रहने के लिये योग एक बुनियादी जरूरत है।
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