सनातन हिंदु धर्म में अमावस्या का विशेष महत्व है। सूर्य औऱ चंद्रमा के एक साथ होने से अमावस्या की तिथि होती है, जब सूर्य और चंद्रमा के बीच का अंतर शून्य हो जाता है तो अमावस्या का शुभ संयोग बनता है। वहीं ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मंगलवार को जब सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में या एक-दूसरे के पास वाली राशि में प्रवेश करते हैं तो भौमावस्या का योग बनता है। इस बार यह संयोग वैशाख माह में 11 मई को बन रहा है। शास्त्रों के अनुसार भौमावस्या की तिथि मानी जाती है। इस दिन पूर्वजों और पितरों के लिए किए गए श्राद्ध और पूजा से सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मंगलवार को पड़ने वाली इस अमावस्या पर पितरों के साथ राहू-केतू की भी पूजा की जाए तो परिवार के रोग, दोष खत्म हो जाते हैं और विशेष फल की प्राप्ति होती है। तथा मंगलवार को अमावस्या का शुभ संयोग होने के कारण इस दिन मंगल दोष से बचने के लिए व्रत और पूजा भी की जाती है।
स्नान और दान का विशेष महत्व
भौमावस्या के अवसर पर स्नान, दान और उपवास का विशेष महत्व है। इस दिन स्नान और दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। वैशाख माह में पड़ने के कारण इस दिन दान और पुण्य करने से इसका लाभ औऱ भी बढ़ जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भौमवती अमावस्या पर किसी पवित्र नदीं में गंगा स्नान कर दान करने से हजार गायों के दान का पुण्य प्राप्त होता है।
स्नान दान का शुभ संयोग
मंगलवार को भौमवास्या पर स्नान दान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस दिन सूर्योदय से लेकर दोपहर करीब 2:30 बजे तक की अवधि में स्नान और दान का शुभ संयोग है। साथ ही इस दिन पितरों का श्राद्ध करना चाहिए, जिससे पितृ पूरी तरह संतुष्ट हो जाते हैं।
गुड़-घी का धूप करने से प्राप्त होता है पितरों का आशीर्वाद
वैशाख महीने की अमावस्या पर जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाना चाहिए, साथ ही जलदान भी करना चाहिए। ऐसा करने से स्वर्ण दान करने जितना पुण्य प्राप्त होता है। साथ ही आज के दिन उपलों की आग पर गुड़-घी का धूप करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही इस दिन रात को किसी कुएं में एक चम्मच दूध और एक रुपये का सिक्का डालने से आय के साधन में वृद्धि होती है।
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