छठ पूजा दीपावली के 6 दिन बाद मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं भगवान सूर्य को अर्घ्य देती हैं और छठी मइया की पूजा करती हैं। उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार जैसे राज्यों में यह त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्योहार का महत्व आप इसी बात से लगा सकते हैं कि लोग इस त्योहार को मनाने के लिए विदेशों से भी अपने घर पहुंच जाते हैं। इस लिए छठ के दिनों में ट्रेनों और हवाई जहाजों तक में टिकट मिलना मुश्किल हो जाता है।
छठ पूजा 2020 का पर्व 20 नवंबर से शुरू होगा। बता दें कि छठ पूजा 4 दिनों तक चलने वाला एक लोक पर्व है। यह कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होता है और कार्तिक शुक्ल सप्तमी को समाप्त होता है।
छठ पूजा मुहूर्त (Chhath Puja Arghay time)
20 नवंबर को शाम के अर्घ्य का समय: 5 बज के 25 मिनट और 26 सेकेंड का निर्धारित किया गया है।
21 नंबर को सुबह के अर्घ्य का समय 6 बज कर 48 मिनट 52 सेकेंड निर्धारित किया गया है।
छठ पूजा का महत्व (Chhath Puja Ka Mahatva)
छठ पूजा सूर्य देव को समर्पित है जो इस संसार के सभी जीवों को अपने प्रकाश से जीवन देने का काम करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, छठी मइया या छठ माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं।
हिन्दू धर्म में षष्ठी देवी को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री के रूप में भी जाना जाता है। पुराणों में, उन्हें माँ कात्यायनी भी कहा जाता है, जिनकी षष्टी तिथि को नवरात्रि पर पूजा की जाती है। षष्ठी देवी को बिहार-झारखंड की स्थानीय भाषा में छठ मैया कहा जाता है।
छठ पूजा की पूरी विधि (Chhath Puja Vidhi)
छठ से जुड़ी पौराणिक कथा (Chhath Puja Vrat Katha)
छठ पर्व का उल्लेख पुराणों में मिलता है। वैवर्त पुराण की एक कथा के अनुसार, महाराज मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत की कोई संतान नहीं हो रही थी। इस बात से प्रियव्रत बहुत दुखी रहते थे। एक दिन उन्हें महर्षि कश्यप ने यज्ञ करने को कहा, महर्षि के आदेश अनुसार उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया। जिसके बाद रानी मालिनी ने एक बेटे को जन्म दिया लेकिन दुर्भाग्यवश बच्चा मृत पैदा हुआ। राजा प्रियव्रत और उनके परिवार के सभी सदस्य इस बात से बेहद दुखी हो गए। तभी आसमान में एक पत्थर दिखाई दिया, जहां माता षष्ठी बैठी हुई थीं।
जब राजा प्रियव्रत ने उनसे प्रार्थना कर उनका परिचय पूछा, तब उन्होंने बताया कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं मैं इस संसार के सभी बच्चों की रक्षा करती हूं और नि:संतान माता-पिता को पुत्र/पुत्री प्राप्त करने का आशीर्वाद देती हूं। जिसके बाद देवी ने राजा के मृत बच्चे को अपने आशीर्वाद से जीवित कर दिया। माना जाता है कि उसी के बाद से यह त्योहार पूरी दुनिया में मनाया जाने लगा।
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