Chhath Puja 2021: छठ पूजा में क्यों किया जाता है बांस के सूप का इस्तेमाल, जानें क्या है इसका महत्व

आज महापर्व छठ पूजा का तीसरा दिन है। आज के दिन व्रती सूर्यास्त के समय सूर्य देवता को अर्घ्य देते हैं। इस पर्व में बांस से बने सूप का इस्तेमाल होता है जानें क्या है इसका महत्व।

Chhath Puja 2021
Chhath Puja 2021  
मुख्य बातें
  • छठ पूजा का आज तीसरा दिन है।
  • शास्त्रों में बांस को शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।
  • छठ पूजा के दिन सूप से अर्घ्य देने से भगवान सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं।

लोकास्था के महापर्व छठ पूजा की शुरुआत हो चुकी है। नहाय खाय से शुरू होने वाले इस पर्व का आज यानी 10 नवंबर को तीसरा दिन है। इससे एक दिन पहले खरना था, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार खरना पूजा के साथ छठी मइया का घर में आगमन होता है। इस त्योहार के चलते शहरों में छठ पूजा का बाजार सज गया है, हर तरफ बांस से बने सामान सूप, टोकरी, दउरा, डगरा, कोनी की बिक्री शुरू हो चुकी है। 

सुख समृद्धि का प्रतीक 

छठ पूजा में इस्तेमाल होने वाले बांस से बने सूप का शास्त्रों में विशेष महत्व है। बांस को शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। बांस धरती पर पाई जाने वाली एकमात्र ऐसी घास है, जो सबसे तेज बढ़ती है। बांस को सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में इस लेख के माध्यम से आइए जानते हैं छठ पूजा में बांस से बने सूप का महत्व। 

छठ पूजा में सूप का महत्व

चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में सूप का विशेष महत्व है, इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। भगवान सूर्यदेव को अर्घ्य देने के लिए सूप और दउरा का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें फल व प्रसाद को सजाकर घाट ले जाया जाता है और इससे सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार छठ पूजा के दिन सूप से अर्घ्य देने से भगवान सूर्यदेव और भास्कर परिवार की रक्षा करते हैं व वंश में वृद्धि होती है। मान्यता है कि जिस प्रकार बांस बिना किसी रुकावट के तेजी से बढ़ता है उसी प्रकार वंश भी तेजी से वृद्धि होती है।

रामायण और महाभारत काल में भी है छठ का उल्लेख

कार्तिक मास की षष्ठी को मनाया जाने वाला यह महापर्व वैसे तो पूरे भारत देश में मनाया जाता है, लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में छठ पूजा की एक अलग ही धूम देखने को मिलती है। संतान की सुख, समृद्धि और दीर्घायु की कामना के लिए इस दिन छठी मइया की पूजा अर्चना की जाती है। इस पर्व का उल्लेख रामायण और महाभारत काल में भी किया गया है।
 

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