हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, मौनी अमावस्या बहुत अनुकूल मानी गई है। हर वर्ष माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या के तौर पर मानाया जाता है। माघ मास में पड़ने के वजह से इसे माघी अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। माना जाता है कि पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन दान करने से पापों से मुक्ति मिलती है और ग्रह दोष दूर हो जाते हैं। मौनी अमावस्या के दिन विधि अनुसार पूजा करना बहुत फायदेमंद माना गया है।
यहां जानिए मौनी अमावस्या की पूजा विधि और कथा।
कैसे करनी चाहिए मौनी अमावस्या के दिन पूजा?
मौनी अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहुर्त में उठ कर और नित्य क्रियाओं से निवृत्त हो कर गंगा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए। स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा विधि अनुसार करनी चाहिए। पूजा करते समय भगवान विष्णु को पीले फूल, केसर, घी, दिपक और चंदन अर्पित कीजिए। इस दिन विष्णु चालीसा या विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। मौनी अमावस्या के दिन ब्राह्मणों को दान देने से विशेष फल प्राप्त होता है। मौनी अमावस्या के दिन जरूरतमंदों को दान दीजिए और शाम को भगवान विष्णु की पूजा कीजिए।
मौनी अमावस्या व्रत कथा हिंदी में
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कांचीपूरी में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी धनवती, सात बेटों और बेटी गुणवती के साथ रहा करता था। उस ब्राह्मण का नाम देवस्वामी था। देवस्वामी के सातों बेटों की शादी हो गई थी लेकिन उसकी बेटी अभी कुवांरी थी। उसने अपने बड़े बेटे को लड़का ढूंढने का काम सौंपा था। एक दिन एक पंडित ने गुणवती की कुंडली देखी और बताया कि देवस्वामी के कुंडली में मौजूद दोष के वजह से गुणवती विधवा हो जाएगी। सब उस पंडित से इस समस्या से निपटने का हल पूछने लगे। इस समस्या का हल बताते हुए पंडित ने कहा कि सिंहल द्वीप में एक सोमा नाम की धोबिन रहती है उसे यहां ले आओ, उसके पूजा में इतनी ताकत है कि वह गुणवती को विधवा होने से बचा लेगी।
पंडित के कहने पर देवस्वामी का छोटा बेटा और गुणवती सोमा को लाने के लिए चले गए। रास्ते में सागर पार करने के बाद थके-हारे उन्हें एक पेड़ मिला। वह दोनें उस पेड़ के नीचे आराम करने लगे। उस पेड़ पर एक गिद्ध का घोसला भी था। उस घोसले में गिद्ध के बच्चे थे जो गुणवती और उसके भाई की बातों को सुन रहे थे। जब गिद्ध ने अपने बच्चों को खाना खिलाने की कोशिश की तो वह बच्चे खाना खाने से मना कर दिए और बोले कि पहले इन इंसानों की मदद की कीजिए तभी हम खाना खाएंगो। अपने बच्चों की जिद मान कर उस गिद्ध ने गुणवती और उसके भाई को सिंघल छोड़ दिया जहां सोमा का घर था। अब दोनों भाई-बहन सोमा को खुश करने के लिए तरकीब सोचते रहे। हर सुबह दोनों भाई-बहन सोमा का घर साफ करके लीपा-पोती करते थे। सोमा ने अपनी बहुओं से इस बारे में पूछा लेकिन उसकी बहुओं ने उससे झूठ बोला की वह यह साफ-सफाई करती हैं। सोमा चलाक थी उसने अगली सुबह जल्दी उठकर गुणवती और उसके भाई को साफ-सफाई करते हुए पकड़ लिया। वह दोनों के काम से बहुत खुश हुई और दोनों के साथ उनके गांव चलने के लिए तैयार हो गई।
जाते समय सोमा ने अपने बहुओं से बोला कि अगर किसी की मौत हो जाएगी तो उसके शरीर को जलाना नहीं है और जब तक वह नहीं आती, तब तक इंतजार करना है। जब सोमा गुणवती के गांव पहुंची तो अगले दिन गुणवती की शादी होनी थी। अगले दिन सप्तपदी होने के बाद गुणवती का पति मर गया। सोमा ने तुरंत भगवान विष्णु की पूजा करना शुरू कर दिया और पूजा करने के बाद पीपल के पेड़ की 108 बार परिक्रमा करने लगी। यह उपाय करते ही गुणवती का पति वापस जिंदा हो गया था। जब सोमा अपने घर वापस लौटी तब उसे पता चला कि उसका पुत्र जामाता और उसका पति मर गया है। सोमा ने ठीक वैसा ही किया जैसा उसने गुणवती के शादी में किया था। भगवान विष्णुजी की पूजा करने के बाद वह पीपल के पेड़ की 108 बार परिक्रमा करने लगी। ऐसा करने से उसका पति और पुत्र दोनों जिंदा हो गए थे।
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