Ekadashi Vrat Katha: पद्मिनी एकादशी के दिन जरूर सुनें यह कथा, जानें पारण विधि और मूहुर्त

Padmini Ekadashi Vrat Katha: चातुर्मास में पुरुषोत्तम मास में एकादशी का आना अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है। जानें पद्मिनी एकादशी से जुड़ी कथा और पारण विधि।

Padmini Ekadashi Vrat Katha, पद्मिनी एकादशी व्रत कथा
Padmini Ekadashi Vrat Katha, पद्मिनी एकादशी व्रत कथा 
मुख्य बातें
  • पद्मिनी एकादशी का महत्व पुरुषोत्तम मास में और अधिक होता है
  • एकादशी पर व्रत कथा सुनने के बाद ही पूजा का फल मिलता है
  • एकादशी का पारण हमेशा मीठी चीज को खा कर करना चाहिए

अधिकम मास को पुरुषोत्तम मास कहा जाता है, क्योंकि ये भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इस मास में एकादशी का पड़ना बहुत ही पुण्यफल देने वाली होती है। पद्मिनी एकादशी रविवार को है और इस एकादशी पर यदि आप सच्चे मन से व्रत और पूजन करें तो आपकी कोई भी मनोकामना पूर्ण हुए बिना नहीं रहेगी।

शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी या कमला एकादशी होती है। एकादशी पर भगवान विष्णु के पूजन का विधान होता है, लेकिन पूजा तभी पूर्ण मानी जाती है जब पद्मिनी एकादशी की व्रत कथा जरूर सुनी जाएं। कथा वाचन के बिना व्रत को अधूरा माना जाता है। तो आइए व्रत कथा के साथ पारण का शुभ मूहुर्त भी आपको बताएं।

महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को स्वयं ही एकादशी व्रत करने और उसके महत्व के बारे में बताया था। तो आइए सर्वप्रथम पद्मिनी एकादशी की कथा का वाचन करें।

पद्मिनी एकादशी व्रत कथा
त्रेयायुग में हैहय वंशक महिष्मती पुरी के राजा कृतवीर्य थे और उनकी एक हजार पत्नियां थीं, लेकिन इसके बाद भी उनकी कोई संतान नहीं थी। राजा को इस बात की चिंता थी कि उनके बाद महिष्मती पुरी का शासन कौन संभालेगा। हर प्रकार के उपाय के बाद भी संतान सुख से वह वंचित थे। तब राजा कृतवीर्य ने तपस्या करने की ठान ली और उनके साथ तप पर उनकी पत्नी पद्मिनी भी साथ चलने को तैयार हो गईं। तब राजा ने अपना पदभार मंत्री को सौंप दिया और योगी का वेश धारण कर पत्नी पद्मिनी के साथ गंधमान पर्वत पर तप करने निकल पड़े।


तप करते हुए महारानी पद्मिनी और राजा कृतवीर्य को 10 साल बीत गए, लेकिन फिर भी उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हुई। इसी बीच अनुसूया ने महारानी पद्मिनी को पुरुषोत्तम मास में पड़ने वाली एकादशी के बारे में बताया। उसने कहा कि अधिकमास अथवा पुरुषोत्तम मास 32 मास के बाद आता है और सभी मासों में महत्वपूर्ण माना जाता है। उसमें शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने से तुम्हारी मनोकामना जरूर पूरी हो जाएगी। भगवान विष्णु तुम्हें जरूर संतान सुख देंगे।

इसके बाद पद्मिनी ने पुरुषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत विध- विधान से किया और जो फल उन्हें हजारों सालों के व्रत और तप से नहीं मिला वह एकादशी व्रत करने से मिल गया। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर संतान प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। उस आशीर्वाद के कारण पद्मिनी के घर एक बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम कार्तवीर्य रखा गया और एकादशी का नाम पद्मिनी एकादशी पड़ गया। माना जाता है कि कार्तवीर्य जितना बलशाली और ताकतवर पूरे संसार में कोई न था।

पारण मूहुर्त
अधिक आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 26 सितंबर को होगा। इस दिन शनिवार है। इस दिन तिथि का प्रारंभ सुबह 06 बजकर 29 मिनट पर हो रहा है। यह 27 सितंबर दिन रविवार सुबह 7 बजकर 16 मिनट तक रहेगी। ऐसे में पद्मिनी एकादशी का व्रत 27 सितंबर को किया जाना चाहिए।

पद्मिनी एकादशी व्रत का पारण अगले दिन किया जाएगा। पारण का समय 28 सितंबर दिन सोमवार को सुबह 06 बजकर 19 मिनट से सुबह 08 बजकर 28 मिनट के बीच है। पारण् हमेशा किसी मीठी चीज को खा कर करना चाहिए और दिन में एक बार ही आहार ग्रहण करना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो भी अधिकमास की पद्मिनी एकादशी की व्रत कथा सुनेगा उसे बैकुंठ की प्राप्ति होगी।

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