नई दिल्ली. हमारे देश में सूर्य पूजा का बहुत महत्व है। सूर्य भगवान की पूजा वैदिक काल से की जाती है। ऐसा कहा जाता है, कि यदि सूर्य भगवान की उपासना सच्चे मन से की जाए तो सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं।
सूर्य भगवान एक ऐसे भगवान है, जिसे हम साक्षात हर दिन दर्शन करते हैं। रविवार का दिन सूर्य भगवान का दिन माना जाता है। जिंदगी में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और दुश्मनों से रक्षा करने के लिए रविवार का व्रत बहुत ही उत्तम माना जाता है।
ऐसी मान्यता है, कि रविवार की कथा सुन लेने से भी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यदि आप रविवार की उपासना करते है। तो आइए जाने संपूर्ण मनोकामनाएं को देने वाले सूर्य भगवान की व्रत कथा और पूजा विधि।
सूर्य भगवान की पूजा विधि
सूर्य भगवान की पूजा कथा
एक बुढ़िया थी। उसका नियम था, कि वह प्रत्येक रविवार को सुबह में स्नान करके घर को गोबर से लीप कर भगवान का भोजन तैयार कर उन्हें भोग लगाने के बाद, स्वयं भोजन ग्रहण करती थी। ऐसा करने से उसका घर धन-धान्य से भर गया था।
श्री हरि की कृपा से घर में किसी प्रकार का दुख- दरिद्रता नहीं थी। उसका घर खुशी से भरा पड़ा था। कुछ दिन बीत जाने के बाद उसकी एक पड़ोसन यह देखकर सोचने लगी कि रोज दिन मेरे गाय के गोबर को ले जाती है। इसलिए वह अपने गाय को वह एक दिन अंदर बाध दिया।
बुढ़िया को गोबर नहा मिला। इसलिए उसने ना तो भोजन बनाया ना भगवान को भोग लगाया ना स्वयं ही भोजन ग्रहण किया। उसने निराहार व्रत रखकर रात में भूखी ही सो गई। इसे देखकर रात में भगवान ने उसे स्वप्न दिया और भोजन ना बनाने और भोग ना लगाने का कारण पूछा।
बुढ़िया ने गोबर ना मिलने का कारण भगवान को बताया। तब भगवान ने कहा ठीक है, मैं तुम्हें ऐसी गाय देता हूं, जो तुम्हारी हर मनोकामना को पूर्ण करेंगी। क्योंकि तुमने हमेशा रविवार को गाय के गोबर से घर पर लीप कर मुझे भोग लगाने के बाद ही भोजन ग्रहण किया है।
मैं इससे प्रसन्न होकर तुम्हें यह वरदान देता हूं। निर्धन को धन, बांझ को पुत्र, दुखियों का दुख दूर करना है और अंत समय में मोक्ष प्रदान करना यही मेरा कर्तव्य है। ऐसा वरदान देकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए।
जब बुढ़िया की आंखें खुली तब उसने देखा कि उसके आंगन में एक खूबसूरत गाय और बछड़ा खड़ा है। वह यह देखकर बहुत ही प्रसन्न हुई। उसने उसे घर के बाहर बांध बांध दिया और खाने का चारा भी साथ में दिया।
उसके घर के बाहर एक खूबसूरत गाय और बछड़े को देखें उसकी पड़ोसन को गुस्सा आ गया। दूसरे सुबह उसने देखा कि उसकी गाय सोने का गोबर दी है। यह देखकर उसने वह गोबर चुरा लिया और अपने गाय के गोबर को लेकर वहां रख दी।
इस प्रकार वह नित्य प्रतिदिन ऐसा ही करती रही। बुढ़िया को इसका पता बिल्कुल नहीं चला और वह नित्य प्रतिदिन उसी गोबर ले जाकर अपने घर को लिपती रही। यह देखकर भगवान ने सोचा कि चला पड़ोसन के कर्म से बुढ़िया ठगी जा रही है।
ईश्वर ने तब संध्या के समय अपनी माया से बड़े जोर की आंधी चला दी। बुढ़िया ने अंधेरे के भय से अपने गाय को भीतर बांध कर सो गई। सुबह जब बुढ़िया उठी, तो उसने देखा कि उसके गाय ने सोने का गोबर दिया है। यह देखकर वह आश्चर्यचकित रह गए।
अब रोज बुढ़िया गाय को घर में ही बांधने लगी। यह देखकर उसकी पड़ोसन को गुस्सा आ गया। तब उसने उस देश के राजा को जा कर यह सारी बात कह दी। राजा यह सुनकर अपने मंत्रियों से बुढ़िया के घर गाय को लाने की आज्ञा दे दी।
भगवान को भोग लगाने के बाद बुढ़िया भोजन करने ही जा रही थी, कि राजा के सेवक गाय को खोल कर ले गए। यह देखकर बुढ़िया काफी रोने लगी। लेकिन उसकी बात किसी ने नहीं सुनी।
उस दिन बुढ़िया गाय के वियोग में भोजन न कि रात भर रो-रो कर ईश्वर से गाय को वापस मांगने के लिए प्रार्थना करती रही। इधर गाय को देखकर राजा बहुत खुश हुआ। लेकिन सुबह जैसे ही वह उठा, उसने अपने महल को गोबर से भरा देखा।
यह देखकर वह घबरा गया। भगवान ने रात में राजा को स्वप्न दिया। भगवान ने कहा, राजा गाय बुढ़िया को लौटा देने में ही भलाई है। भगवान ने राजा को बताया कि मैं उसके रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर उसे यह गाय दिया है।
स्वप्न में भगवान की बात सुनकर सुबह होते ही राजा ने बुढ़िया को गाय दे दी। राजा ने बुढ़िया को सम्मान के साथ धन भी दिया। इतना करते ही राजा के महल से सारे गोबर गायब हो गए।
उस दिन से राजा ने नगरवासियों को आदेश दिया कि सभी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए रविवार का व्रत करें। व्रत करने से नगर के लोग सुखी जीवन व्यतीत करने लगें। कोई भी बीमार या प्रकृति प्रकोप उस नगर में नहीं होती थी। इस प्रकार से सारी प्रजा सुखी संपन्न रहने लगी।
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