पौष माह में पड़ने वाली सफला एकादशी नए वर्ष में यानी 9 जनवरी को पड़ रही है। मान्यता है कि ये एकादशी मनुष्य को सफलता प्रदान करने वाली होती है। इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के कोई काम नहीं रुकते हैं। इसलिए इसे सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान अच्युत की पूजा-अर्चना का विधान होता है। मान्यता है कि इस दिन यदि मनुष्य पूजा-पाठ के साथ दान-पुण्य करें तो उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं रहती है और उसे बैकुण्ड की प्राप्ति होती है। तो आइए सफला एकादशी मुहूर्त और पूजा विधि के साथ इससे जुड़ी कथा को जानें।
सफला एकादशी 2021 तिथि व मुहूर्त (Safala Ekadashi 2021 tithi and shubh muhurat)
एकादशी तिथि प्रारम्भ - जनवरी 08, 2021 को रात 9:40 बजे
एकादशी तिथि समाप्त - जनवरी 09, 2021 को शाम 7:17 बजे तक
सफला एकादशी पूजा विधि (Safala Ekadashi Puja Vidhi)
सफला एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान का सूर्यदेव को जल दे और इसके बाद व्रत-पूजन का संकल्प लें। सुबह भगवान अच्युत की पूजा-अर्चना करें और इसके लिए भगवान को धूप, दीप, फल और पंचामृत आदि अर्पित करें। इसके बाद नारियल, सुपारी, आंवला अनार और लौंग आदि से भगवान अच्युत को अर्पित करें। इस दिन रात्रि में जागरण कर श्री हरि के नाम के भजन करने का बहुत पुण्य माना गया है। व्रत के दिन और व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।
सफला एकादशी का महत्व (Safala Ekadashi Significance)
सफला एकादशी की महत्ता ब्रह्मां्ड पुराण में भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताई थी। साल में सफला एकादशी दो बार आती है। सफला एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और इस व्रत के प्रभाव से अगले जन्म का रास्ता साफ होता है और जीवन में खुशियां आती हैं। इस व्रत को रखने से भक्त को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। इस व्रत को करने से माना जाता है कि 1 हजार अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य मिलता है।
सफला एकादशी पर ये कार्य ना करें (Safala Ekadashi Rituals)
सफला एकादशी की पौराणिक कथा
प्राचीन काल में चंपावती नगर में राजा महिष्मत राज्य करते थे। राजा के 4 पुत्र थे, उनमें ल्युक बड़ा दुष्ट और पापी था। वह पिता के धन को कुकर्मों में नष्ट करता रहता था। एक दिन दुःखी होकर राजा ने उसे देश निकाला दे दिया लेकिन फिर भी उसकी लूटपाट की आदत नहीं छूटी। एक समय उसे 3 दिन तक भोजन नहीं मिला। इस दौरान वह भटकता हुआ एक साधु की कुटिया पर पहुंच गया। सौभाग्य से उस दिन सफला एकादशी थी। महात्मा ने उसका सत्कार किया और उसे भोजन दिया। महात्मा के इस व्यवहार से उसकी बुद्धि परिवर्तित हो गई। वह साधु के चरणों में गिर पड़ा। साधु ने उसे अपना शिष्य बना लिया और धीरे-धीरे ल्युक का चरित्र निर्मल हो गया। वह महात्मा की आज्ञा से एकादशी का व्रत रखने लगा। जब वह बिल्कुल बदल गया तो महात्मा ने उसके सामने अपना असली रूप प्रकट किया। महात्मा के वेश में स्वयं उसके पिता सामने खड़े थे। इसके बाद ल्युक ने राज-काज संभालकर आदर्श प्रस्तुत किया और वह आजीवन सफला एकादशी का व्रत रखने लगा।
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