Shani Pradosh Vrat 2021: शनि प्रदोष व्रत पर काले कुत्ते को खिलाएं मीठी चुपड़ी रोटी, जानें पूजा विधि और कथा

Shani Pradosh Vrat Puja Vidhi: त्रयोदशी को प्रदोष कहते हैं। वर्ष में कुल 24 और हर तीसरे वर्ष अधिकमास होने से 26 प्रदोष होते हैं। आइए जानते हैं प्रदोष व्रत करने के 5 फायदे

Shani Pradosh Vrat Katha
Shani Pradosh Vrat Katha 
मुख्य बातें
  • प्रत्येक माह में जिस तरह दो एकदशी होती है उसी तरह दो प्रदोष भी होते हैं।
  • वर्ष में कुल 24 और हर तीसरे वर्ष अधिकमास होने से 26 प्रदोष होते हैं।
  • हर महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है।

नई दिल्ली. हर महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। अलग-अलग दिन पड़ने वाले प्रदोष की महिमा अलग-अलग होती है। सोमवार के प्रदोष को सोम प्रदोष, मंगल के प्रदोष को भौम प्रदोष और शनि के दिन आने वाले प्रदोष को शनि प्रदोष करते हैं। अन्य वार को आने वाला प्रदोष सभी का महत्व और लाभ अलग अलग है।

प्रदोष रखने से आपका चंद्र ठीक होता है। अर्थात शरीर में चंद्र तत्व में सुधार होता है। माना जाता है कि चंद्र के सुधार होने से शुक्र भी सुधरता है और शुक्र से सुधरने से बुध भी सुधर जाता है। मानसिक बैचेनी खत्म होती है।

शनि प्रदोष के दिन काले कुत्ते को तेल से चुपड़ी मीठी रोटी को खिलाने से आपकी सोई हुई किस्मत जाग जाती है। मान्यता है प्रदोष व्रत के करने से जीवन में हर तरह के सुख की प्राप्ति होती है और संतान प्राप्ति में आ रही बाधा भी दूर होती है।

पढ़नी चाहिए शनि चालिसी
शनि प्रदोष वाले दिन तेल में अपना चेहरा देखकर डाकोत को तेल का दान करें। ऐसा करने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है और शनिदेव का आशीर्वाद मिलता है।

शनि प्रदोष तिथि के दिन भगवान शिव के साथ-साथ शनिदेव की भी पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इसके साथ ही शनि चालीसा के साथ-साथ शनि स्त्रोत का पाठ करना उत्तम माना गया है। ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

प्रदोष व्रत में क्या खाएं और क्या नहीं
प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग पृथ्‍वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है। प्रदोष व्रत में लाल मिर्च, अन्न, चावल और सादा नमक नहीं खाना चाहिए। हालांकि आप पूर्ण उपवास या फलाहार भी कर सकते हैं।

प्रदोष व्रत की विधि
व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले उठें। नित्यकर्म से निपटने के बाद सफेद रंग के कपड़े पहने। पूजाघर को साफ और शुद्ध करें। गाय के गोबर से लीप कर मंडप तैयार करें। 

मंडप के नीचे 5 अलग अलग रंगों का प्रयोग कर के रंगोली बनाएं। फिर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और शिव जी की पूजा करें। पूरे दिन किसी भी प्रकार का अन्य ग्रहण ना करें।

प्रदोष कथा
प्रदोष को प्रदोष कहने के पीछे एक कथा जुड़ी हुई है। संक्षेप में यह कि चंद्र को क्षय रोग था, जिसके चलते उन्हें मृत्युतुल्य कष्टों हो रहा था।

भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन पुन:जीवन प्रदान किया था अत: इसीलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा।

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