Shanivar Vrat Katha, Puja Vidhi: ऐसे ‌करें शनिदेव को प्रसन्न, जानें शनिवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती और महत्व

Shanivar Vrat Katha, Puja Vidhi, Aarti in Hindi (शनिवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती) शनि महाराज को शनिवार के अधिष्ठाता देव माना गया है। शनिवार के दिन व्रत रखने से भक्तों को कई‌ लाभ मिलते हैं। जिस पर शनिदेव की कुदृष्टि होती है उन्हें शनिवार का व्रत अवश्य करना चाहिए।

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शनिवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती 
मुख्य बातें
  • शनिवार के दिन रखा जाता है शनि देव के लिए व्रत।
  • शनिवार का व्रत रखने से शनि की कुदृष्टि से मिलती है मुक्ति।
  • शनिदेव की कृपा से दूर हो जाते हैं सभी दुख-दर्द।

Shanivar Vrat Katha, Puja Vidhi, Aarti in Hindi (शनिवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती): शनिवार के दिन विधिवत रूप से भगवान शनि की पूजा की जाती है। उन्हें शनिवार का अधिष्ठाता देव माना गया है। सनातन धर्म में शनिदेव को न्याय का देवता कहा गया है जो कर्मों के अनुसार व्यक्ति को फल देते हैं। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन व्रत करना सबसे लाभदायक माना गया है। मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त शनिवार के दिन भगवान शनि देव की पूजा करता है उसके जीवन में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है तथा वह हर एक प्रकार के कष्टों से दूर रहता है। जिस व्यक्ति के ऊपर शनि की महादशा होती है उसे भी इससे मुक्ति पाने के लिए शनिवार का व्रत करना चाहिए। यहां जानें शनिवार के व्रत के लिए पूजा विधि, आरती, महत्व और कथा।

Shanivar Vrat Puja Vidhi (शनिवार व्रत पूजा विधि) 

शनिवार का व्रत रखने वाले लोगों को सुबह जल्दी उठकर नित्यकर्म और स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प लेने के बाद घर में शनिदेव की प्रतिमा स्थापित कीजिए। अगर लोहे की प्रतिमा हो तो यह उत्तम माना जाता है। प्रतिमा स्थापित करने के बाद भगवान शनि को पंचामृत से स्नान करवाएं और चावलों से बनाए 24 दल के कमल पर इस मूर्ति को स्थापित करें। इसके बाद शनिदेव को काला वस्त्र, फूल, काला तिल, धूप आदि अर्पित करें फिर तेल का दीपक जलाकर उनकी पूजा करें। अंत में कथा का पाठ करके आरती करें। 

Shanivar Vrat Puja Aarti (शनिवार व्रत पूजा आरती)

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।

सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥

जय जय श्री शनि देव....

श्याम अंग वक्र-दृ‍ष्टि चतुर्भुजा धारी।

नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥

जय जय श्री शनि देव....

क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।

मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥

जय जय श्री शनि देव....

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।

लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥

जय जय श्री शनि देव....

देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।

विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥

जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।

Shanivar Vrat Importance (शनिवार व्रत महत्व)

मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त शनिवार का व्रत रखते हैं उन्हें शनि ग्रह के दोष से मुक्ति मिलती है। शनिवार का व्रत रखने से जीवन में आने वाले प्रकोप से बचा जा सकता है। ऐसा कहा जाता है कि साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति पाने के लिए भी शनिवार का व्रत रखना चाहिए। शनिवार का व्रत रखने से नौकरी और व्यापार में भी सफलता मिलती है और जीवन में हमेशा सुख-समृद्धि और मान-सम्मान बना रहता है। 

Shanivar Vrat Katha (शनिवार व्रत कथा)

एक बार की बात है जब ब्रह्मांड के सभी नवग्रहों के बीच विवाद हो गया था। वह सब यह जानना चाहते थे कि उनमें से सबसे बड़ा कौन है जिसके लिए वह देवराज इंद्र के पास गए। इंद्र ने उन्हें राजा विक्रमादित्य के पास जाने के लिए कहा। यह सभी नवग्रह राजा विक्रमादित्य के पास अपनी समस्या लेकर गए। राजा विक्रमादित्य जानते थे कि अगर वह इन नवग्रहों में से किसी एक को छोटा बताएंगे तो वह कुपित हो जाएगा। लेकिन वह अन्याय नहीं करना चाहते थे। इस समस्या का हल निकालने के लिए राजा विक्रमादित्य ने नव धातुओं से नौ सिंहासन बनाया और हर एक सिंहासन के सामने एक-एक ग्रह को खड़ा कर दिया। 

शनि देव ने दी राजा विक्रमादित्य को चेतावनी

ऐसे में शनिदेव को राजा विक्रमादित्य ने अंतिम स्थान दिया जिसकी वजह से शनिदेव गुस्सा हो गए और उन्हें चेतावनी देकर चले गए। धीरे धीरे राजा विक्रमादित्य की कुंडली में साढ़ेसाती का प्रकोप बढ़ने लग गया। एक दिन घोड़े का सौदागर बनकर शनिदेव राजा के पास गए। कई घोड़ों में राजा विक्रमादित्य को एक घोड़ा पसंद आया। जैसे ही वह उस घोड़े पर बैठे वैसे ही वह घोड़ा उन्हें जंगल में लेकर चला गया। जंगल में राजा विक्रमादित्य कहीं खो गए और भटकते-भटकते नए देश में चले गए। यहां राजा को एक सेठ मिला। राजा के आने से सेठ का सामान बिकना शुरू हो गया जिससे सेठ बहुत खुश हो गया। वह राजा को भोजन करवाने ले गया। सेठ के घर में एक खूंटी थी जिस पर हार लटका हुआ था। राजा ने देखा कि वह खूंटी उस हार को निगल रही है। जैसे ही राजा ने अपना खाना खत्म किया वैसे ही वह खूंटी ने हार को पूरा निगल लिया। जब सेठ को वह हार नहीं मिला तब उसने राजा विक्रमादित्य को अपने राजा के पास कैद करवा दिया। 

कट गए राजा विक्रमादित्य के हाथ 

सेठ के राजा ने राजा विक्रमादित्य को दोषी बताया और उनके हाथ काट दिए। जिसके बाद राजा विक्रमादित्य को एक तेली अपने घर ले गया और उन्हें बैल हांकने का काम दे दिया। धीरे-धीरे करके साढ़े सात साल पूरे हो गए और शनि की महादशा भी समाप्त हो गई। साढ़े साती पूरे होने के बाद राजा विक्रमादित्य ने एक राग छेड़ा जिसके बाद राज्य की राजकुमारी ने राजा से शादी करने के लिए प्रण लिया। राजकुमारी को खूब समझाया गया लेकिन वह किसी की बात नहीं मानी और राजा विक्रमादित्य से उसकी शादी हो गई। रात में जब राजा विक्रमादित्य सो रहे थे तब उनके सपने में शनिदेव आए। शनिदेव ने कहा कि तुमने मुझे सबसे छोटा ठहराया था अब देखो मेरा ताप और‌ प्रकोप। 

उज्जैन वापस आए राजा विक्रमादित्य

राजा विक्रमादित्य ने शनिदेव से माफी मांगी जिसके बाद शनिदेव ने उन्हें माफ कर दिया। सुबह तक सबको राजा और शनि देव की बात पता चल गई थी जिसकी वजह से व्यापारी उनसे माफी मांगने लगा। व्यापारी ने राजा को वापस अपने घर आने का निमंत्रण दिया। जैसे ही राजा ने खाना खाना शुरू किया वैसे ही खूंटी ने हार उगल दिया। जिसकी वजह से सब को यह पता चल गया कि राजा विक्रमादित्य ने चोरी नहीं की थी। व्यापारी ने अपनी बेटी की शादी राजा विक्रमादित्य से करवाई जिसके बाद राजा विक्रमादित्य अपनी दोनों रानियों के साथ उज्जैन वापस आ गए।


 

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