महर्षि वाल्मीकि को आदि भारत का प्रमुख ऋषि माना जाता है। उनको संस्कृत भाषा के आदि कवि होने का गौरव भी प्राप्त है। वहीं आदि काव्य 'रामायण' के रचयिता के तौर पर भी जाने जाते हैं। उनके द्वारा रचित रामायण को सबसे ज्यादा सही माना गया है। हालांकि इसकी कई बातें तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामायण से अलग हैं।
भील समुदाय में जन्में महर्षि वाल्मीकि का असली नाम रत्नाकर बताया जाता है। हालांकि एक और कथा के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नवम पुत्र वरुण से हुआ था। इनकी माता का नाम चर्षणी था और भृगु को इनका भ्राता बताया गया है। उपनिषद में मौजूद विवरण के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि को अपने भाई भृगु की तरह ही परम ज्ञान प्राप्त हुआ था।
महर्षि वाल्मीकि और नारद की कथा
महर्षि वाल्मीकि और नारद को लेकर एक पौराणिक कथा कही जाती है। दरअसल, वाल्मीकि बनने से पूर्व उनका नाम रत्नाकर था और वह अपने परिवार को पालने के लिये लोगों को लूटा करते थे। एक बार उनकी मुलाकात नारद जी से हो गई। जब वह उन्हें लूटने लगे तो नारद जी ने सवाल किया कि जिन परिवार के लिए वह ये काम कर रहे हैं, क्या वह उनके पाप में भागीदार बनेगा?
लुटेरे से ऐसे बनें महर्षि वाल्मीकि
जब रत्नाकर ने यह सुना तो वह अचरज में पड़ गए और तुरंत अपने परिवार के पास जाकर ये सवाल किया। उनको यह जानकर झटका लगा कि कोई भी उनका अपना उनके पाप में हिस्सेदार नहीं बनना चाहता है। इसके बाद उन्होंने नारद जी से क्षमा मांगी और साथ ही राम-नाम के जप का उपदेश भी दिया। लेकिन वाल्मीकि राम नाम नहीं बोल पा रहे थे जिस पर उन्होंने उनका 'मरा मरा' जपने की सीख दी। यही जाप उनका राम नाम हो गया और वह एक लुटेरे से महर्षि वाल्मीकि हो गए।
बता दें कि ये जब श्री राम ने जनता की बातें सुनकर माता सीता को त्याग दिया था, तब वह महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रही थीं। उनके पुत्रों लव-कुश के गुरु भी महर्षि वाल्मीकि ही थे।
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