हर वर्ष वरुथिनी एकादशी वैशाख माह के कृष्ण पक्ष में पड़ती है। इस वर्ष वरुथिनी एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार, 7 मई को पड़ रही है। विष्णु पुराण के अनुसार वैशाख का महीना भगवान विष्णु को अति प्रिय है और नारद मुनि के अनुसार एकादशी व्रत सभी व्रत में सर्वश्रेष्ठ है। इसीलिए वैशाख माह में एकादशी व्रत करने का लाभ 2 गुना बढ़ जाता है। कहा जाता है कि जो भक्त वरुथिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं तथा अगर उस इंसान के जीवन में मृत्यु का कष्ट है तो यह व्रत करने से उस इंसान को मृत्यु के कष्ट से मुक्ति मिलती है।
वरुथिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के मधुसूदन स्वरूप की पूजा करना बेहद सौभाग्यशाली माना जाता है। भगवान विष्णु के साथ इस दिन भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा की पूजा भी करनी चाहिए। इस दिन रात्रि जागरण करना मंगलमय होता है। यह कहा जाता है कि इस दिन श्री वल्लभाचार्य का जन्म हुआ था।
वरुथिनी एकादशी व्रत कथा हिंंदी में, वरुथिनी एकादशी व्रत की कहानी
बहुत समय पहले एक राज्य में मांधाता नाम के एक राजा राज्य करता थे। कहा जाता है कि वह राजा दान-पुण्य में विश्वास रखते थे और बेहद तपस्वी थे। राजा मांधाता बहुत प्रतापी और प्रख्यात राजा थे। एक दिन वह जंगल गए और वहां तपस्या करने लगे। तपस्या करने के दौरान जंगल में से एक भालू आया और राजा मांधाता के पैरों को खाने लगा।
राजा मांधाता तपस्या में इतने लीन थे कि उन्होंने भालू को कुछ नहीं कहा और ना ही उसे भगाया। जब राजा मांधाता को पीड़ा होने लगी तब वह भगवान विष्णु को याद करने लगे। राजा की पुकार से भगवान विष्णु प्रकट हुए और राजा के प्राण बचाए। जब राजा मांधाता ने अपने पैरों को देखा तब वह बेहद उदास हुए।
राजा मांधाता को ऐसे मिली पापों से मुक्ति
राजा मांधाता की उदासीनता को देखकर भगवान विष्णु ने कहा कि यह तुम्हारे पिछले जन्म में किए गए पापों का फल है। इसके साथ भगवान विष्णु ने राजा मांधाता को पैर ठीक करने का रास्ता बताया।
भगवान विष्णु ने कहा कि तुम्हें मथुरा जाकर वरुथिनी एकादशी व्रत करना होगा। भगवान विष्णु की बात मानकर राजा मांधाता ने ठीक वैसा ही किया और व्रत के फल स्वरुप राजा मांधाता के सभी पाप मिट गए और उनका पैर ठीक हो गया।
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