वट सावित्री व्रत को उत्तर भारत में ज्येष्ठ अमावस्या पर मानाने की परंपरा है। इस व्रत को सुहागिनें अपने पति की लंबी उम्र और अच्छी सेहत के लिए रखती हैं। इस व्रत को सावित्री से जोड़ा जाता है जो यमराज से अपने पति के लिए जीवन छीन लाई थी। धार्मिक रूप से ये दिन काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन शनि जयंती भी मनाई जाती है।
इस साल वट सावित्री व्रत को 22 मई को मनाया जाएगा।
हिंदू कलैंडर के अनुसार, अमावस्या तिथि 21 मई को रात 9:35 पर शुरू हो जाएगी और 22 मई रात 11:08 तक रहेगी।
वट सावित्री व्रत कथा
वट सावित्री व्रत करने के पीछे एक कथा भी है। कहा जाता है कि नवविवाहिता सावित्री के पति सत्यवान के प्राण हरकर जब यमराज जाने लगे तो अपने पति सत्यवान का जीवन वापस पाने के लिए वो यमराज के पीछे पड़ गई और तब लगी रही जब तक कि यमराज ने उसके पति सत्यवान की जान उसके हाथों में न सौंप दी।
वहीं शास्त्रों के मुताबिक, ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) तीनों देवों का बरगद के पेड़ में वास होता है। इसलिए कहा जाता है कि सौभाग्य की प्राप्ति बरगद के पेड़ की आराधना करने से मिलती है।
वट सावित्री व्रत पूजन विधि
इस व्रत बरगद के पेड़ की पूजा होती है। फिर सुबह नहाने के बाद पूरे 16 शृंगार करके महिलाएं इस पूजा को करती हैं। पूजा की थाली में गुड़, भीगे हुए चने, आटे से बनी हुई मिठाई, कुमकुम, रोली, मोली, 5 प्रकार के फल, पान का पत्ता, धूप, घी का दीया, एक लोटे में जल और हाथ का एक पंखा लेकर बरगद पेड़ के नीचे जाएं।
फिर पेड़ की जड़ में पानी और प्रसाद चढ़ाएं और धूप व दीपक जलाएं। उसके बाद पूजा करते हुए भगवान से पति के लिए लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करें। फिर सावित्री मां से आशीर्वाद लें और पेड़ के चारों ओर कच्चे धागे से या मोली को 7 बार बांधे। फिर पति के पैर धो कर आशीर्वाद लें।
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