विज्ञान में चंद्र ग्रहण का कारण भले ही खगोलीय घटना मानी जाती हो लेकिन पुराणों में चंद्र ग्रहण लगने का कारण राहु-केतु की नाराजगी मानी गई है। दरअसल इन दो ग्रहों की दुश्मनी चंद्र और सूर्य से बताई गई है और यही कारण है कि चंद्र और सूर्य ग्रहण लगता है। इसे पीछे एक पौराणिक कथा है।
स्वर्भानु दानव के अमृत पीने से जुड़ी कथा में यह उल्लेख है कि सूर्य और चंद्र के भेद खोलने से राहु और केतु इतने नाराज हुए कि उन्होंने दोनों ग्रहों पर अपनी छाया डाल दी। इसी कारण से ग्रहण लगता है। इस कथा के माध्यम से आइए जानें कि ग्रहण लगने का क्या कारण होता है।
ये है चंद्र ग्रहण की कथा
जब देव और दैत्यों के बीच अमृत मंथन के समय लड़ाई हुई थी तब स्वर्भानु नामक दैत्य ने मोहनी का रूप धारण कर लिया और अमृत पीने के लिए देवताओं के समूह में बैठ गया। भगवान विष्णु जब देवताओं को अमृत प्रदान करने लगे तो मोहनी रूपी स्वर्भानु दैत्य भी अमृत पाने में सफल हो गया, वह अमृत पी भी गया लेकिन अमृत उसके गले के नीचे उतरता उससे पहले सूर्य और चंद्र ने भगवान विष्णु को यह बता दिया कि वह देव नहीं दैत्य है।
सूर्य और चंद्र ने देव रुप धारण किए स्वर्भानु को पहचान लिया था और विष्णु भगवान को जब ये पता चला उन्होंने सुदर्शन चक्र से स्वर्भानु के गले को काट दिया ताकि अमृत गले के नीचे न जाने पाए, क्योंकि सिर ने अमृतपान कर लिया था इसलिए उसका सिर अमर हो गया।
इसलिए राहु-केतु हो गए नाराज
सूर्य और चंद्र ने ही भगवान विष्णु को दैत्य स्वर्भानु के मोहनी बन कर अमृत पीने की जानकारी दी थी। इस कारण राहु और केतु दोनों ही सूर्य और चंद्र से नाराज हो गए। यही कारण है कि पूर्णिमा पर चंद्र को और अमावस्या पर सूर्य को राहु और केतु ग्रस लेते हैं।
कहां-कहां देखा जा सकेगा चंद्रग्रहण-
भारत के अलावा ये ग्रहण यूरोप, एशिया, अफ्रीका और आस्ट्रेलिया महाद्वीपों में भी देखा जा सकेगा। गौरतलब है कि इस बार चंद्र ग्रहण के दौरान चंद्रमा मिथुन राशि में विराजमान रहेगा।
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