उगते हुए सूर्य को जल तो हर कोई देता है और सूर्य देव की इस उपासना के बहुत पुण्य लाभ मिलते हैं, लेकिन डूबते हुए सूर्य को जल केवल छठ महापर्व में ही दिया जाता है। इस कारण इसका महत्व समझा जा सकता है कि आखिर ऐसा केवल छठ में ही क्यों होता है। अस्तगामी सूर्य को जल देने का केवल धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक तर्क भी इसके साथ जुड़ा है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का समय केवल शाम ही नहीं होता बल्कि इस तीन पहर सूर्य को जल दिया जाता है।
तीनों पहर अर्घ्य देने का अलग-अलग लाभ और पुण्य मिलता है। वहीं डूबते सूर्य को जल देने से क्या मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इतना ही नहीं जल का रंग भी मनोकामनाओं को पूरा करने का बल देता है। तो आइए जानें ये पूरी बातें विस्तार से।
ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य देने से आपकी कई कामनाएं पूरी हो सकती हैं। याद रखें साथ में उगते सूर्य को भी जल जरूर देना होगा।
जानें ये महत्व भी
अस्तांचल और उदित सूर्य दोनों की पूजा छठ में होती है। उदित सूर्य एक नए सवेरा का प्रतीक है। अस्त होता हुआ सूर्य केवल विश्राम का प्रतीक है इसलिए छठ पूजा के पहले दिन अस्त होते हुए सूर्य को पहला अर्घ्य देते हैं। अस्त होता हुआ सूर्य भी पूज्यनीय है। केवल छठ के समय ही अस्त सूर्य की पूजा होती है। प्रायः लोग प्रातः उठकर उदित सूर्य को जल चढ़ाते हैं। नदी के तट पर अस्त सूर्य को प्रणाम करना यह प्रदर्शित करता है कि कल फिर से सुबह होगी और नया दिन आएगा।
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