इसे कहते हैं जज्बा और लगन, खिलाड़ी ने सब्जी बेचने से लेकर राष्ट्रीय तीरंदाजी टीम तक का सफर तय किया

स्पोर्ट्स
भाषा
Updated Mar 29, 2022 | 19:35 IST

Neeraj Chauhan gets place in National Archery Team: मेहनत और जज्बा हो तो कुछ भी मुमकिन है। भारतीय खिलाड़ी नीरज चौहान ने सब्जी बेचने से लेकर राष्ट्रीय तीरंदाजी टीम तक का सफर तय किया।

Neeraj Chauhan
नीरज चौहान  |  तस्वीर साभार: Twitter
मुख्य बातें
  • भारतीय खेल जगत से प्रेरित करने वाली कहानी
  • नीरज चौहान ने किया कमाल, मेहनत रंग लाई
  • सब्जी बेचने से लेकर राष्ट्रीय तीरंदाजी टीम तक का सफर तय किया

भारतीय तीरंदाजी टीम में पहली बार चुने गये 19 साल के तीरंदाज नीरज चौहान को कोविड-19 महामारी के दौरान आर्थिक तंगी से निपटने के लिए सब्जी बेचने का सहारा लेना पड़ा था। इस दौरान उन्होंने खेल को अलविदा कहने का मन भी बनाया लेकिन तीरंदाजी से लगाव के कारण वह इससे जुड़े रहे और अब देश के प्रतिनिधित्व का मौका हासिल कर काफी उत्साहित है।

चौहान ने सोनीपत से पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘सब्जी बेचते समय तीरंदाजी से काफी दूर चला गया था लेकिन शुक्र है कि मुझे  खेल मंत्रालय से मदद मिली और तीरंदाजी में वापस आ गया।’’ चौहान कैलाश प्रकाश स्टेडियम के पास पले-बढ़े थे, जहां उनके पिता अक्षय लाल चौहान  30 साल तक मेस में रसोइए के रूप में काम किया था। उन्होंने 2013 में अकादमी द्वारा चुने जाने के बाद तीरंदाजी को अपनाया और राष्ट्रीय स्तर पर कुछ पदक जीते। उनके बड़े भाई मुक्केबाज है और उन्हें भी  कोरोना वायरस महामारी के दौर में सब्जी बेचने को मजबूर होना पड़ा।

उन्होंने कहा, ‘‘मजबूरी थी, पिताजी  लगभग सात-आठ हजार रुपये कमाते थे और लॉकडाउन के बाद सब कुछ बंद हो गया था, इसलिए यह सब के सामने  जीवित रहने की चुनौती थी।  तीरंदाजी और मुक्केबाजी काफी पीछे छूट गया था।’’ उनकी दुर्दशा के बारे में पता चलने के बाद भारतीय तीरंदाजी संघ (एएआई) के अध्यक्ष अर्जुन मुंडा ने तत्कालीन केंद्रीय खेल मंत्री किरेन रीजीजू से मदद की गुहार लगाई थी।

रीजीजू के विभाग ने स्थिति का जायजा लिया। इसके बाद  चौहान तथा उनके भाई सुनील को मंत्रालय के पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय कल्याण कोष के तहत पांच-पांच लाख रुपये की वित्तीय सहायता मंजूर की। तब से वह भारतीय खेल प्राधिकरण में शामिल हो गए जहां उन्होंने कोच जितेंद्र चौहान के देख रेख में अभ्यास शुरू किया।

बचपन में सात पत्थर पर निशाना लगाने वाला खेल ‘सतोलिया’ या ‘लागोरी’ खेलते थे जिससे उनका निशाना सटीक बना। उन्होंने कहा, ‘‘ मुझे निशाना साधने वाले खेल पसंद थे, इसलिए तीरंदाजी स्वाभाविक रूप से मेरा पहला प्यार बन गया।’’ सीनियर स्तर पर हालांकि यह एक तरह का खेल था। सीनियर स्तर पर उन्हें दो बार निराशा हाथ लगी और उन्होंने अपनी हालिया सफलता का श्रेय कोच को दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे पता था कि कुछ कमी है और मैं सही नहीं था।  कोच पहले दिन से हर समय मुझ पर काम कर रहे थे। मैं उन्हें अपने कोच के रूप में पाकर धन्य हूं।’’ एशियाई खेलों और आगामी विश्व कप के लिए ष्ट्रीय महासंघ का तीन सप्ताह का लंबा ट्रायल रखा था। चौहान ने इसमें  अतनु दास, प्रवीण जाधव जैसे दिग्गज को पछाड़ कर तरुणदीप राय, जयंत तालुकदार और सचिन गुप्ता के साथ चार सदस्यीय टीम में जगह बनायी।

अगली खबर