Tokyo Olympics: भारत की झोली में एक और पदक, रवि दहिया ने जीता सिल्वर मेडल

टोक्यो ओलंपिक में भारतीय पहलवान रवि दहिया रेसलिंग में सिल्वर मेडल जीता। फाइनल में मौजूदा विश्व चैम्पियन रूस के जावुर युगुएव से मुकाबला हुआ।

Tokyo Olympics: Wrestler Ravi Dahiya created history, won medal in wrestling
रवि कुमार दाहिया 
मुख्य बातें
  • रवि दहिया ने टोक्यो ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीता।
  • के डी जाधव भारत को कुश्ती में पदक दिलाने वाले पहले पहलवान थे।
  • के डी जाधव ने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था।

चीबा (जापान) : टोक्यो ओलंपिक में भारतीय पहलवान रवि दहिया ने सिल्वर मेडल जीता। कुश्ती में पुरुषों के 57 किग्रा भार वर्ग के फाइनल मुकाबले में उनका सामना मौजूदा विश्व चैम्पियन रूस के जावुर युगुएव से हुआ। हालांकि वे कड़े मुकाबले में गोल्ड जीतने मे असफल रहे। युगुएव ने शुरुआती अंक हासिल किया लेकिन रवि ने जल्द ही स्कोर 2-2 कर दिया। रूसी खिलाड़ी ने फिर से बढ़त बना ली। रवि पहले राउंड के बाद 2-4 से पीछे थे। दूसरे राउंड में भी युगुएव ने 1 अंक बनाकर अपनी बढ़त मजबूत की। रवि दूसरे राउंड में भी दो अंक ही जुटा सके। इस तरह वे 4-7 से हार गए।

रवि दहिया कजाखस्तान के नूरइस्लाम सानायेव को हराकर फाइनल में पहुंचने में पहुंचे थे। रवि दहिया नूर सुल्तान में 2019 विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीतकर टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने के बाद वह सुर्खियों में आए थे। हरियाणा के एक किसान के बेटे दहिया से पहले सुशील कुमार ओलंपिक कुश्ती के फाइनल में पहुंचने वाले अकेले भारतीय थे जिन्होंने 2012 लंदन ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीता था।

रवि से पहले भारत के इन पहलवानों ओलंपिक में दिखाया दम

रवि दहिया से पहले सुशील कुमार ने 2012 लंदन ओलंपिक में फाइनल में जगह बनाकर सिल्वर मेडल जीता था। के डी जाधव भारत को कुश्ती में पदक दिलाने वाले पहले पहलवान थे जिन्होंने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था। उसके बाद सुशील ने बीजिंग में कांस्य और लंदन में सिल्वर हासिल किया। सुशील ओलंपिक में दो व्यक्तिगत स्पर्धा के पदक जीतने वाले अकेले भारतीय थे लेकिन बैडमिंटन खिलाड़ी पी वी सिंधू ने कांस्य जीतकर बराबरी की। लंदन ओलंपिक में योगेश्वर दत्त ने भी कांस्य पदक जीता था। वहीं साक्षी मलिक ने रियो ओलंपिक 2016 में कांस्य पदक हासिल किया था।

ऐसे हैं रवि कुमार दहिया

हरियाणा के सोनीपत के रहने वाले रवि दहिया के बारे में कहा जाता है कि वह जीत या हार के लिए कोई भावनाएं व्यक्त नहीं करते, कभी कभी तो संदेह होने लगता है कि उनमें कोई भावना है भी या नहीं। बुधवार को वह ओलंपिक फाइनल में पहुंचकर भारतीय कुश्ती के नए पोस्टर बॉय बन गए और इस पर उनकी पहली प्रतिक्रिया थी, ‘हां, ठीक ही है भाईसाहब’। अगर वह जीत जाते हैं तो वह खुशी से उछलते नहीं बस मुस्कुरा देते हैं। अगर वह हारते हैं तो वह शांत हो जाते हैं। लेकिन जैसे ही वह कुश्ती के मैट पर पहुंचते हैं, वह खुद को बेहतर ढंग से व्यक्त करने लगते हैं। वह आक्रामक बन जाते हैं।

उनके मजबूत हाथों की ताकत और तकनीकी दक्षता के साथ उनका स्टैमिना उन्हें अजेय प्रतिद्वंद्वी बना देता है। उनके रक्षण को तोड़ना और पकड़ को रोकना मुश्किल हो जाता है। और यह सब इसलिये है क्योंकि उन्हें कुश्ती के अलावा किसी अन्य चीज में कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्हें नये कपड़े या जूते खरीदने में कोई रूचि नहीं होती, उनके अंकल अनिल ने हरियाणा के सोनीपत जिले के नाहरी गांव में दौरे के दौरान पीटीआई को इसके बारे में बताया था। वह अगर बात करते हैं तो बस कुश्ती की। उन्हें स्टार पहलवान की तरह दावेदार नहीं माना गया था लेकिन 23 साल के दहिया ने खुद को साबित कर दिया।

पिता ने निभाई अहम भूमिका

दहिया दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में ट्रेनिंग लेते हैं जहां से पहले ही भारत को दो ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त से मिल चुके हैं। उनके पिता राकेश कुमार ने उन्हें 12 साल की उम्र में छत्रसाल स्टेडियम भेजा था, तब से वह महाबली सतपाल और कोच वीरेंद्र के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग करते रहे हैं। उनके पिता ने कभी भी अपनी परेशानियों को दहिया की ट्रेनिंग का रोड़ा नहीं बनने दिया। वह रोज खुद छत्रसाल स्टेडियम तक दूध और मक्खन लेकर पहुंचते जो उनके घर से 60 किलोमीटर दूर था। वह सुबह साढ़े 3 बजे उठते, 5 किलोमीटर चलकर नजदीक के रेलवे स्टेशन पहुंचते। रेल से आजादपुर उतरते और फिर दो किलोमीटर चलकर छत्रसाल स्टेडियम पहुंचते। फिर घर पहुंचकर खेतों में काम करते और यह सिलसिला 12 साल तक चला। कोविड-19 के कारण लॉकडाउन से इसमें बाधा आई। 

रवि दहिया का सफर 

दहिया ने 2015 में अंडर-23 विश्व चैम्पियनशिप में सिल्वर मेडल जीता था जिससे उनकी प्रतिभा की झलक दिखी थी। उन्होंने प्रो कुश्ती लीग में अंडर-23 यूरोपीय चैंपियन और संदीप तोमर को हराकर खुद को साबित किया। दहिया के आने से पहले तोमर का 57 किग्रा वर्ग में दबदबा था। लेकिन कईयों ने कहा कि कुश्ती लीग प्रदर्शन आंकने का मंच नहीं है। इसके बाद 2019 विश्व चैम्पियनशिप में उन्होंने सभी आलोचकों को चुप कर दिया। उन्होंने 2020 में दिल्ली में एशियाई चैम्पियनशिप जीती और अलमाटी में इसी साल खिताब का बचाव किया। उन्होंने पोलैंड ओपन में हिस्सा लिया और केवल एक मुकाबला गंवाया।

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