Rakshabandhan: रक्षाबन्धन के पावन मौके "बहन-भाई" के प्रेम को समर्पित, पढ़ें ये सारगर्भित "कविता"

Succinct Poem on Raksha Bandhan: राखी का पर्व या रक्षाबंधन देश-दुनिया में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है, इस मौके पर आप पढ़ें ये सारगर्भित कविता....

 A succinct poem on Rakshabandhan festival by Dr Shyam Sundar Pathak Anant
रक्षाबंधन पर सारगर्भित कविता 

नई दिल्ली: भाई-बहन के प्रेम का त्योहार रक्षाबंधन पूरे देश में मनाया जा रहा है, इस दिन बहन अपने भाई को राखी (Rakhi) बांधती है और भाई जीवनभर बहन की रक्षा का वचन देता है। कहते हैं भाई-बहन का रिश्ता बेहद अनमोल होता है और ये प्यार की डोर से बंधा होता है और रक्षाबंधन (Rakshabandhan) का मौका ऐसा होता है जब इसपर ये प्यार दर्शाया जाता है।

कई बार दूरियों की वजह से बहनें भाई को राखी बांधने नहीं जा पाती हैं इसकी टीस उनके मन में रहती है, लेकिन वो दूर से ही सही अपने भाई की मंगलकामना करती हैं और अपना प्यार प्रेषित करती हैं। 

रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर भाई-बहन के प्यार को झलकाती एक सारगर्भित कविता-

ना टूटेगा ये, बन्धन कभी

“ हाँ,

कभी ना टूटेगा ये बन्धन ,

जो जुड़ा है,

यूँ तो , रेशम के महज एक धागे से,

लेकिन कितनी शक्ति है,

इस धागे में,

शायद कोई सोच भी नहीं सकता,

जो जानता नहीं,

इस देश की महान,

सनातन संस्कृति को,

ये बन्धन सिर्फ

भाई का बहिन की रक्षा का वचन नहीं,

बल्कि समर्पण है ,

बहिन के प्रेम का भी,

अक्षुण्ण प्रेम का प्रतीक है ये धागा,

इसलिए सिर्फ रिश्तों को ही नहीं,

जोड़ा है,

इस धागे ने,

लाखों वीर बलिदानियों को ,

अपनी मातृभूमि की रक्षा से,

राष्ट्र के लिए समर्पित,

प्रत्येक राष्ट्रभक्त को,

ध्वज से,

जोड़ता है ये नाजुक सा-

कभी ना टूट सकने वाला धागा,

ये सिर्फ एक त्यौहार नहीं,

संकल्प दिवस भी है,

अपनी मातृशक्ति की रक्षा का,

अपनी मातृभूमि के लिए,

शीश कटा सकने के संकल्प का,

अपनी सनातन संस्कृति की,

रक्षा का संकल्प दोहराना होगा हमें,

वरना ये त्यौहार जो,

प्रतीक है,

हमारी संस्कृति के अक्षत , अविचल होने का,

रह जाएगा,

महज एक रस्म- अदायगी,

आईये, दृढ़संकल्प हो रक्षा करें,

अपनी परम्पराओं की,

अपनी महानतम संस्कृति की,

मातृशक्ति की, और

इस राष्ट्र की,

जो सिर्फ एक जमीन का टुकड़ा नहीं,

देवभूमि है,

जहाँ अवतार लेने को,

ईश्वर भी रहता है लालायित,

जिसकी मिट्टी में लोटने को,

आता है वह बार- बार,

आईये, इस धागे से,

बाँध ले हम भी ,

अपने प्रेम की,

कभी ना टूट सकने वाली डोर

रक्षा के पवित्र बन्धन से ’’

 डॉ. श्याम सुन्दर पाठक ‘अनन्त’
( लेखक उत्तर प्रदेश राज्य कर विभाग में असिस्टेंट कमिश्नर पद पर नोएडा में कार्यरत हैं )

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