नई दिल्ली: दुनिया में मुसलमान ईद-उल फितर का त्यौहार मनाने को तैयार हैं। रमजान का पवित्र महीने खत्म होते ही अगले दिन ईद-उल फितर मनाई जाती है। ईद-उल-फितर इस्लाम के दो मुख्य त्यौहारों में से एक है। इसके अलावा दूसरा अहम त्यौहार बकरा ईद है। इन दोनों ईदों का दिन चांद के दीदार से तय होता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार मनाए जाने वाले दोनों त्यौहार मुसलमान बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। ईद के मौके पर मस्जिदों को सजाया जाता है। लोग नए कपड़े पहनते हैं। घरों में तरह-तरह के पकवान बनते हैं और साध ही छोट बच्चों को ईदी दी जाती है। हालांकि, इस साल लॉकडाउन के कारण सभी लोग अपने-अपने घरों में ही ईद-उल फितर मनाएंगे।
मीठी ईठ क्यों कहा जाता है?
इस्लाम के पांच सिद्धांत हैं जिनमें रोजे भी शामिल हैं। रमजान में मुसलमान 30 दिन उपवास रखते हैं। इन्हें रोजे कहा जाता है। मुस्लिम सुबह से शाम तक भूखे-प्यासे रहकर रोजे रखते हैं। इस्लामी मान्यता के मुताबिक, जो लोग रमजान में नेक काम करते हैं, अल्लाह ने उन्हें नेकियों से मालामाल कर देता है। ईद-उल फितर रमजान माह की समाप्ति के बाद रोजा खत्म होने के त्यौहार के रूप में मनाई जाती है। यह ईद उन लोगों के लिए इनाम होती है जिन्होंने पूरे महीन रोजे रखे थे। इस दिन घरों में मीठे पकवान, खासतौर पर सेवई पकाई जाती। यही सेवई एक-दूसरे को भेंट भी की जाती हैं। इसलिए इस ईद को मीठी ईद या फिर सेवइयों सेवइयों वाली ईद भी कहते हैं।
बकरा ईद का महत्व क्या है?
मीठी ईद के करीब 70 दिन बाद बकरा ईद मनाई जाती है। बकरा ईद को ईद-उल-अजहा या ईद-उल-जुहा भी कहा जाता है। बकरा ईद लोगों को सच्चाई की राह में अपना सबकुछ कुर्बान कर देने का संदेश देती है। ईद-उल-अजहा को हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है। हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे। जब हजरत इब्राहिम अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए आगे बढ़े तो खुदा ने उनकी निष्ठा को देखते हुए इस्माइन की कुर्बानी को दुंबे की कुर्बानी में परिवर्तित कर दिया।
इसलिए मुसलमान ईद-उल-अजहा पर बकरे या दुंबे-भेड़ की कूर्बानी करते हैं। उपमहाद्वीप के अलावा ईद-उल-अजहा को कहीं भी बकरा ईद नहीं कहा जाता। ईद-उल-अजहा का यह नाम बकरों की कुर्बानी करने की वजह से पड़ गया। बकरा ईद के अवसर पर सबसे पहले नमाज अदा की जाती है। इसके बाद बकरे या दुंबे-भेड़ की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। इसमें से एक हिस्सा गरीबों को जबकि दूसरा हिस्सा दोस्तों और सगे संबंधियों को दिया जाता है। वहीं, तीसरे हिस्सा अपने परिवार के लिए रखा जाता है।
पहली बार कब मनाई गई ईद-उल फितर?
इस्लामी तारीख के मुताबिक ईद-उल-फितर की शुरुआत जंग-ए-बदर के बाद हुई थी। पैगंबर मुहम्मद ने सबसे पहले ईद-उल-फितर सन् 624 ई. में मनाई थी। पैंगबर मोहम्मद ने जंग-ए-बदर में विजय प्राप्त की थी, इस खुशी में ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया गया। ईद के दिन सुबह मस्जिदों में नमाज अदा की जाती है। इसके अलावा ईद पर सभी मुसलमान एक खास रकम गरीब और जरूरतमंद लोगों की मददे के लिए निकालते हैं, जिससे उनकी मदद की जा सके। इसे फितरा कहा जाता है। फितरा ईद-उल-फितर की नमाज पढ़ने से पहले निकालना जरूरी है।