120 साल पहले जर्मन सैनिक ने कबूतर से भेजा था संदेश, अब मिला डिस्‍पैच, हर कोई हैरान

जर्मन सैनिक ने एक संदेश कबूतर के माध्‍यम से भेजा था, जो करीब 120 साल बाद मिला है। विशेषज्ञ इस पर हैरानी जता रहे हैं। यह पत्र छोटे से एल्‍यूमीनियम कैप्‍सूल में मिला था।

120 साल पहले जर्मन सैनिक ने कबूतर से भेजा था संदेश, अब मिला डिस्‍पैच, हर कोई हैरान
120 साल पहले जर्मन सैनिक ने कबूतर से भेजा था संदेश, अब मिला डिस्‍पैच, हर कोई हैरान  |  तस्वीर साभार: BCCL
मुख्य बातें
  • जर्मन सैनिक ने करीब 120 साल पहले एक संदेश कबूतर के माध्‍यम से भेजा था
  • यह पूर्वी फ्रांस के एल्सास क्षेत्र में एक छोटे से एल्यूमीनियम कैप्सूल में बंद मिला
  • इसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं, यह ट्रेसिंग पेपर पर जर्मन में लिखा है

पेरिस : आज ई-मेल, व्‍हाट्स एप का जमाना है, जब लोग अपने मनोभावों को व्‍यक्‍त करने के लिए इंतजार नहीं करते। ऐसे अन्‍य इलेक्‍ट्रॉनिक माध्‍यमों से लोग जल्‍द से जल्‍द अपना संदेश दूसरों तक पहुंचा देते हैं। लेकिन एक वक्‍त ऐसा भी था, जब लोग संदेश भेजने के लिए कबूतरों का इस्‍तेमाल करते थे। ऐसा ही एक संदेश तकरीबन 100 साल से भी अधिक समय बाद मिला है, जिसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।

यह संदेश किसी जर्मन सैनिक द्वारा भेजे जाने का अनुमान जताया जा रहा है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक दंपति को सितंबर माह में पूर्वी फ्रांस के एल्सास क्षेत्र में टहलने के दौरान एक छोटा सा एल्यूमीनियम कैप्सूल मिला था, जिसे खोलने पर उन्‍होंने पाया कि ट्रेसिंग पेपर पर जर्मन में कुछ लिखा गया है, जिसे पढ़ना बहुत मुश्किल है।

लिंज म्‍यूजियम के क्‍यूरेटर ली पेरिसियन डोमिनिक जार्डी के अनुसार, इसे संभवत: 1910 में भेजा गया। इस पत्र को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि आखिर चीजें कहां गलत हो गईं? क्‍या कबूतर के साथ कुछ अप्रत्याशित हो गया या फिर जो संदेश भेजा गया था, वह अपने गंतव्‍य तक पहुंच गया था? ऐसे कई दिलचस्‍प सवाल इसे लेकर किए जा रहे हैं।

जार्डी इसे एक तरह की दुर्लभ खोज मानते हैं, जिनका कहना है कि संभव है कि यह कैप्सूल प्रथम विश्व युद्ध के अन्य अवशेषों की तरह ही मिट्टी की सतह पर आया हो। इस 100 साल से भी पुराने पत्र को जिस जर्मन सैनिक द्वारा लिखे जाने की बात कही जा रही है, उसकी तैनाती इंगर्सहैम में थी, जो अब फ्रांस में है, लेकिन तब जर्मनी में था।

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