New Year 2022: साल 2021 का आज आखिरी दिन है। चंद घंटों बाद हम सब एक नए साल में होंगे। नए साल का आगाज हमेशा नई उम्मीदों, नए जोश, नए संकल्पों के साथ होता है। इस बार भी इसमें कोई कमी नहीं है। लेकिन कोविड के बढ़ते मामलों ने जश्न की तैयारियों के उत्साह को फीका जरूर किया है, जब संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच कई जगह पाबंदियों का ऐलान किया गया है। यह साल (2021) कई लोगों के लिए खुशियों की सौगात लेकर आया तो कई को अनगिनत घाव दे गया। लेकिन 2022 के बेहतर होने की उम्मीद के साथ हम सब एक बार फिर नए साल के आगाज के लिए तैयार हैं। इस मौके पर पढ़िये ये शानदार कविता और कीजिये नए साल का नए अंदाज में स्वागत।
क्या कहूँ,
ऐ ! बीते वर्ष ,
देकर अनगिनत घाव,
अब जब जा रहे हो तुम,
तो बस बची हैं बहुत सारी सीखें,
दिए हैं तुमने इंतिहा के दर्द,
फिर भी उम्मीदों के,
दीये जलाकर रखें हैं मैंने,
कि शायद ना छिने चिराग,
किसी के घर का,
इन्सानों की अन्तहीन ख्वाहिशों का ही ,
प्रतिफल है ये अदृश्य शत्रु,
कुदरत को अपना गुलाम समझने की भूल,
प्राणदायिनी वायु की कमी के लिए,
क्या हम ने उगाए वृक्ष?
इन्सान की लाशों पर होते देखे सौदे ,
चिता जलाने को भी पड़ गई जमीन कम,
तो किस बात का अहन्कार?
पैसों के लिए भगवान कहलाने वालों को भी,
देखा हैवान बनते,
इन्सान को इतना लाचार,
नहीं देखा कभी पहले,
मौत का खुला तांडव,
आखिर कब जागेंगे हम?
ये व्यक्तिगत लड़ाई नहीं,
बल्कि हम सब मिलकर ही लड़ पाएंगे,
तमाम मतभेदों को दरकिनार कर,
प्रकृति को अपनी सहचरी बना,
करें उसका सरंक्षण, संवर्द्धन,
बढ़ाएं अपनी भी प्रतिरोधक क्षमता,
और लें योग का सहारा,
और करें मदद हरसम्भव,
ताकि किसी भी आपदा से कर सकें,
सामना निडर, निर्भीक,
हे आने वाले वर्ष,
तुम्हारा स्वागत,
आशाओं के दीप जलाना,
हम कभी छोडेंगे नहीं,
और नहीं छोडेंगे कभी संघर्ष करना,
आईये,
इस वसुन्धरा को फिर से,
स्वर्ग बनाने का लें हम,
दृढ़ संकल्प
और करें सहयोग,
जिस तरह बन पडे,
मानव होकर भी यदि,
नहीं की मानव की मदद,
तो नहीं है अधिकार, मानव कहलाने का,
तो क्या हम मानव बनकर भी नहीं रह सकते?
-डॉ. श्याम 'अनन्त'
(कवि राज्य वस्तु एवं सेवा कर में सहायक आयुक्त के पद पर कार्यरत हैं और एक प्रसिद्ध लेखक व मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं)