मनाली : पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत-चीन तनाव के बीच तिब्बियों में भी गहरा रोष है, जिनका मानना है कि बीजिंग ने जबरन उनकी भूमि पर कब्जा कर लिया। तिब्बत के ऐसे लोगों की एक बड़ी संख्या है, जो भारत में 1959 से ही निर्वासित जीवन बिता रहे हैं। उनकी निष्ठा दलाई लामा के प्रति रही है, जो उस समय चीन के खिलाफ हुए एक विफल विद्रोह के बाद से ही भारत में रह रहे हैं।
तब तिब्बत में चीन की 'विस्तारवादी' नीति के खिलाफ बड़ा विद्रोह हुआ था, जिसे कम्युनिस्ट शासन ने बुरी तरह कुचल दिया था। उसी विफल बगावत के बाद दलाई लामा को तिब्बत छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी थी। उनके साथ बड़ी संख्या में तिब्बती यहां आए और उन्होंने यहां निर्वासित सरकार का गठन किया। तिब्बतियों का वह समूह अब चीन के साथ झड़प के बीच भारतीय सैनिकों का हौसला बढ़ा रहा है।
निर्वासित तिब्बतियों की एक बड़ी संख्या हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला और अन्य स्थानों पर रहती है, जो चीन के साथ तनाव के बीच भारत का समर्थन कर रहे हैं। तिब्बती समुदाय के बहुत से लोगों ने मनाली में जिस तरह सैन्य वाहनों का गर्मजोशीपूर्वक स्वागत किया, वह उनके इसी समर्थन को दर्शाता है। भारतीय सेना के वाहन शनिवार को लद्दाख में सीमा क्षेत्रों की ओर कूच कर रहे थे, जब तिब्बती समुदाय के लोगों ने उनका हौसला बढ़ाया।
यहां उल्लेखनीय है कि भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव की स्थिति अप्रैल माह के आखिर से ही बनी हुई है। मई और जून माह में एलएसी पर तैनात दोनों देशों के सैनिकों के बीच कई झड़पें भी हुईं, लेकिन 15 जून को स्थिति भयावह हो गई, जब खूनी संघर्ष में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए। इस झड़प में 40 से अधिक चीनी सैनिकों के भी हताहत होने की रिपोर्ट है, जिस पर अब तक चीन ने कुछ नहीं कहा है।