भारत में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की एक बड़ी वजह है हेलमेट ना पहनना। 2014 में अपने जिगरी दोस्त को बाइक हादसे में खो देने वाले बिहार के कैमूर के रहने वाले राघवेंद्र कुमार अब लोगों को जगह-जगह सड़कों पर फ्री हेलमेट बांटने का काम करते हैं। मकसद सिर्फ इतना है कि उनके दोस्त की तरह किसी अन्य कि जान बिना हेलमेट के न जाए। राघवेंद्र कुमार, एक ऐसा नाम है जो इंसानी जज्बे और जुनून की मिसाल है। ऐसा हम इसलिये कह रहे हैं क्योंकि उन्होंने सड़क सुरक्षा अभियान को मजबूती देने के लिये अपनी नौकरी छोड़ दी और जीवन भर इसी कार्य को करने का मिशन बना लिया।
हेलमेट बांटने की वजह से लोग इन्हें प्यार से 'हेलमेट मैन' कह कर बुलाते हैं। राघवेंद्र न सिर्फ हेलमेट बांटते हैं बल्कि लोगों से उनकी पुरानी किताबें लेकर गरीब विद्यार्थियों को निशुल्क देते भी हैं। गर्व की बात तो यह है कि इनकी दी हुई किताबों से कई बच्चों ने अपनी कक्षा में टॉप तक किया है। यहां जानें हेलमेट मैन के इस नेक काम के बारे में थोड़ा विस्तार से...
पुरानी यादों को ताजा करते हुए राघवेंद्र कुमार ने बताया कि दिल्ली में एलएलबी की पढ़ाई के दौरान उनकी कृष्ण कुमार से मुलाकात हुई। दोनों हास्टल के एक ही कमरे में रहा करते थे और कुछ ही दिनों में दोनों के बीच भाई का रिश्ता बन गया। साल 2014 में ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस वे पर बिना हेलमेट के बाइक चलाने की वजह से कृष्ण कुमार के सिर में चोट लगने से मौत हो गई। हेलमेट न होने के कारण किसी मां का बेटा न खोए इसके लिए राघवेंद्र ने लोगों को हेलमेट के प्रति जागरूक करना शुरू कर दिया।
राघवेंद्र कुमार अलग अलग शहरों में अब तक 25 हजार से ज्यादा हेलमेट बांट कर लोगों को जागरूक कर चुके हैं। हाईवे पर बिना हेलमेट किसी कि दुर्घटना न हो इसके लिये हेलमेट मैन ने भारत सरकार से यह नियम लागू करने की अपील की है कि किसी भी राज्य में टोल टैक्स पर बिना हेलमेट यात्रा न करने दी जाए।
भारत सरकार ने इसी साल से दुपहिया वाहन पर बैठ कर जाने वाले 4 साल से अधिक उम्र के बच्चों के लिए हेलमेट अनिवार्य कर दिया है। मगर राघवेंद्र पिछले पांच साल से न सिर्फ बड़ों को बल्कि बच्चों को भी हेलमेट बांट रहे हैं। वह स्कूल के समाने खड़े हो कर बच्चों को हेलमेट बांटते हैं। उनका मानना है कि किसी मां बाप के घर का चिराग न बुझे इसलिये उनकी जागरुकता के लिये बच्चों को हेलमेट देते हैं।
यकीन मानिये राघवेंद्र के लिये इस मिशन को पूरा करना बिल्कुल भी आसान नहीं था। नौकरी छोड़ देने के बाद जब हेलमेट खरीदने के लिये उन्हें अधिक पैसों की जरूरत पड़ी तो उन्होंने अपना मकान तक बेच डाला। उस वक्त उनका क्रेडिट-डेबिट कार्ड सब कुछ माइनस में चला गया। यही नहीं इस मिशन में उनकी पत्नी ने उनका साथ देते हुए अपने कीमती गहने भी बेच दिये।
हेलमेट बांटने के अलावा हेलमेट मैन देश को 100 प्रतिशत साक्षर करने के मिशन में भी जुटा हुआ है। राघवेंद्र अबतक 2 लाख से ज्यादा गरीब, मेधावी छात्रों के बीच पुस्तकों का वितरण कर चुके हैं। उनका कहना है कि हमारे देश में कोई भी योजना इसलिये सफल नहीं हो पाती क्योंकि बहुत से लोग साक्षर नहीं है। राघवेंद्र ने दिल्ली, नॉएडा, कोलकाता, लखनऊ, वाराणसी और पटना समेत बिहार के कई जिलों में बुक-बैंक खोले हैं ताकि लोग उसमें अपनी पुरानी पढ़ी हुई किताबें डाल सकें। उनके इस बुक बैंक से न सिर्फ बच्चे बल्कि 80 साल के बुजुर्ग जिन्हें किताबों में रुची है वह भी बुक लेकर जाते हैं। अपनी पुरानी किताबें देने वालों को राघवेंद्र खाली हाथ नहीं जाने देते बल्कि वह उन्हें नया हेलमेट पहना कर विदा करते हैं।
बिहार के परिवहन मंत्री संतोष कुमार निराला राघवेंद्र को उनके इस काम के लिए सम्मानित भी कर चुके हैं। मगर लंबे समय से इस नेक काम को करने के बाद भी राघवेंद्र को किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिल सकी है। देश के हर कोने में हेलमेट मैन की आवाज पहुंचे इसके लिये आप भी हेलमेट मैन की इस अभियान में सहायता कर सकते हैं। आप उन्हें ट्विटर या फेसबुक पर संपर्क कर सकते हैं।