नई दिल्ली: मदर्स डे इस वर्ष 9 मई को मनाया जाएगा। यह एक ऐसा दिन होता है जो मां के सम्मान और उसके प्रति प्रेम का है। मां को लेकर हिंदी और अंग्रेजी दोनों साहित्य बेहद समृद्ध है। मां को लेकर शायरों ने शायरियां लिखी है।
दूसरी तरफ कवियों ने मां के प्रेम और सम्मान को कविताओं के माध्यम से शब्दों में पिरोया है। देश के कई नामचीन कवियों ने मां को लेकर कई कविताएं लिखी है। आप मदर्स डे पर इन कविताओं के जरिए भी मां के प्रति अपने सम्मान को व्यक्त कर सकते हैं, प्रेम दर्शा सकते हैं।
मदर्स डे कविता
1-चांदनी का शहर, तारों की हर गली,
मां की गोदी में हम घूम आए।
नीला-नीला गगन चूम आए।
पंछियों की तरह पंख अपने न थे,
ऊँचे उड़ने के भी कोई सपने न थे,
मां का आँचल मिला हमको जबसे मगर
हर जलन, हर तपन भूल आए।
दूसरों के लिए सारा संसार था,
पर हमारे लिए मां का ही प्यार था,
सारे नाते हमारे थे मां से जुड़े,
मां जो रूठे तो जग रूठ जाए।
( रमेश तैलंग)
मदर्स डे पर कविता
2-मेरी ही यादों में खोई
अक्सर तुम पागल होती हो
मां तुम गंगा-जल होती हो!
मां तुम गंगा-जल होती हो!
जीवन भर दुःख के पहाड़ पर
तुम पीती आंसू के सागर
फिर भी महकाती फूलों-सा
मन का सूना संवत्सर
जब-जब हम लय गति से भटकें
तब-तब तुम मादल होती हो।
व्रत, उत्सव, मेले की गणना
कभी न तुम भूला करती हो
सम्बन्धों की डोर पकड कर
आजीवन झूला करती हो
तुम कार्तिक की धुली चाँदनी से
ज्यादा निर्मल होती हो।
पल-पल जगती-सी आंखों में
मेरी खातिर स्वप्न सजाती
अपनी उमर हमें देने को
मंदिर में घंटियाँ बजाती
जब-जब ये आँखें धुंधलाती
तब-तब तुम काजल होती हो।
हम तो नहीं भगीरथ जैसे
कैसे सिर से कर्ज उतारें
तुम तो खुद ही गंगाजल हो
तुमको हम किस जल से तारें।
तुझ पर फूल चढ़ाएं कैसे
तुम तो स्वयं कमल होती हो।
(जयकृष्ण राय तुषार)
मदर्स डे कविता इन हिंदी
3-हम हर रात
पैर धोकर सोते है
करवट होकर।
छाती पर हाथ बाँधकर
चित्त
हम कभी नहीं सोते।
सोने से पहले
मां
टुइयां के तकिये के नीचे
सरौता रख देती है
बिना नागा।
मां कहती है
डरावने सपने इससे
डर जाते है।
दिन-भर
फिरकनी-सी खटती
मां
हमारे सपनों के लिए
कितनी चिन्तित है!
(राजेश जोशी)
मदर्स डे पर हिंदी में कविताएं
4-मम्मी मां मम्मा अम्मा, मइया माई
जब जैसे पुकारा, मां अवश्य आई
कहा सब ने मां ऐसी होती है मां वैसी होती है
पर सच में, मां कैसी होती है
सुबह सवेरे, नहा धोकर, ठाकुर को दिया जलातीं
हमारी शरारतों पर भी थोड़ा मुस्काती
फिर से झुक कर पाठ के श्लोक उच्चारती
मां की यह तस्वीर कितनी पवित्र होती है
शाम ढले, चूल्हा की लपकती कौंध से जगमगाता मुखड़ा
सने हाथों से अगली रोटी के, आटे का टुकड़ा
गीली हथेली की पीठ से, उलझे बालों की लट को सरकाती
मां की यह भंगिमा क्या गरीब होती है?
रोज-रोज, पहले मिनिट में परांठा सेंकती
दूसरे क्षण, नाश्ते की तश्तरी भरती
तेज क़दमों से, सारे घर में, फिरकनी सी घूमती
साथ-साथ, अधखाई रोटी, जल्दी-जल्दी अपने मुंह में ठूसती
मां की यह तस्वीर क्या इतनी व्यस्त होती है?
इन सब से परे, हमारे मानस में रची बसी
सभी संवेदनाओं के कण-कण में घुली मिली
हमारे व्यक्तित्व के रेशे से हर पल झाँकती
हम सब की मां, कुछ कुछ ऐसी ही होती है।
(इला कुमार)
मदर्स डे पर कविताएं
5-बंदूक की गोली से भी
ऊंची भरी उड़ान
पक्षी ने
देर तक
उड़ता रहा आसमान में
सुनता रहा बादलों को
देखता रहा
चमकती बिजलियाँ
उस समय
घूम रही थी पृथ्वी
घूम रहा था समय
ठीक उसी समय टूटी
बूढ़ी मां की नींद
क्यों टूटी
बूढ़ी माँ की नींद?
( प्रदीपचन्द्र पांडे)
मदर्स डे की कविता
(कविताएं साभार- कविता कोश)
6-पहली धड़कन भी मेरी धडकी थी तेरे भीतर ही,
जमी को तेरी छोड़ कर बता फिर मैं जाऊं कहां।
आंखें खुली जब पहली दफा तेरा चेहरा ही दिखा,
जिंदगी का हर लम्हा जीना तुझसे ही सीखा।
खामोशी मेरी जुबान को सुर भी तूने ही दिया,
स्वेत पड़ी मेरी अभिलाषाओं को रंगों से तुमने भर दिया।
अपना निवाला छोड़कर मेरी खातिर तुमने भंडार भरे,
मैं भले नाकामयाब रही फिर भी मेरे होने का तुमने अहंकार भरा।
वह रात छिपकर जब तू अकेले में रोया करती थी,
दर्द होता था मुझे भी, सिसकियां मैंने भी सुनी थी।
ना समझ थी मैं इतनी खुद का भी मुझे इतना ध्यान नहीं था,
तू ही बस वो एक थी, जिसको मेरी भूख प्यार का पता था।
पहले जब मैं बेतहाशा धूल मैं खेला करती थी,
तेरी चूड़ियों तेरे पायल की आवाज से डर लगता था।
लगता था तू आएगी बहुत डाटेंगी और कान पकड़कर मुझे ले जाएगी,
माँ आज भी मुझे किसी दिन धूल धूल सा लगता है।
चूड़ियों के बीच तेरी गुस्से भरी आवाज सुनने का मन करता है,
मन करता है तू आ जाए बहुत डांटे और कान पकड़कर मुझे ले जाए।
जाना चाहती हूं उस बचपन में फिर से जहां तेरी गोद में सोया करती थी,
जब काम में हो कोई मेरे मन का तुम बात-बात पर रोया करती थी।
जब तेरे बिना लोरियों कहानियों यह पलके सोया नहीं करती थी,
माथे पर बिना तेरे स्पर्श के ये आंखें जगा नहीं करती थी।
अब और नहीं घिसने देना चाहती तेरे ही मुलायम हाथों को,
चाहती हूं पूरा करना तेरे सपनों में देखी हर बातों को।
खुश होगी माँ एक दिन तू भी,
जब लोग मुझे तेरी बेटी कहेंगे।
मदर्स डे की कविताएं
7- मेरी आंखों का तारा ही, मुझे आंखें दिखाता है।
जिसे हर एक खुशी दे दी, वो हर गम से मिलाता है।
जुबा से कुछ कहूं कैसे कहूं किससे कहूं माँ हूं
सिखाया बोलना जिसको, वो चुप रहना सिखाता है।
सुला कर सोती थी जिसको वह अब सभर जगाता है।
सुनाई लोरिया जिसको, वो अब ताने सुनाता है।
सिखाने में क्या कमी रही मैं यह सोचूं,
जिसे गिनती सिखाई गलतियां मेरी गिनाता है।
-दिनेश रघुवंशी
मदर्स डे की कविता
8- तुम एक गहरी छाव है अगर तो जिंदगी धूप है माँ
धरा पर कब कहां तुझसा कोई स्वरूप है माँ
अगर ईश्वर कहीं पर है उसे देखा कहां किसने
धरा पर तो तू ही ईश्वर का रूप है माँ, ईश्वर का कोई रुप है माँ
नई ऊंचाई सच्ची है नए आधार सच्चा है
कोई चीज ना है सच्ची ना यह संसार सच्चा है
मगर धरती से अंबर तक युगो से लोग कहते हैं
अगर सच्चा है कुछ जग में तो माँ का प्यार सच्चा है
जरा सी देर होने पर सब से पूछती माँ,
पलक झपके बिना घर का दरवाजा ताकती माँ
हर एक आहट पर उसका चौक पड़ना, फिर दुआ देना
मेरे घर लौट आने तक, बराबर जागती है माँ
सुलाने के लिए मुझको, तो खुद ही जागती रही माँ
सहराने देर तक अक्सर, मेरे बैठी रही माँ
मेरे सपनों में परिया फूल तितली भी तभी तक थे।
मुझे आंचल में लेकर अपने लेटी रही माँ।
बड़ी छोटी रकम से घर चलाना जानती थी माँ
कमी थी बड़ी पर खुशियाँ जुटाना जानती थी माँ।
मै खुशहाली में भी रिश्तो में दुरी बना पाया।
गरीबी में भी हर रिश्ता निभाना जानती थी माँ।
दिनेश रघुवंशी
9-हम एक शब्द हैं तो वह पूरी भाषा है
हम कुंठित हैं तो वह एक अभिलाषा है
बस यही माँ की परिभाषा है।
हम समुंदर का है तेज तो वह झरनों का निर्मल स्वर है
हम एक शूल है तो वह सहस्त्र ढाल प्रखर
हम दुनिया के हैं अंग, वह उसकी अनुक्रमणिका है
हम पत्थर की हैं संग वह कंचन की कृनीका है
हम बकवास हैं वह भाषण हैं हम सरकार हैं वह शासन हैं
हम लव कुश है वह सीता है, हम छंद हैं वह कविता है।
हम राजा हैं वह राज है, हम मस्तक हैं वह ताज है
वही सरस्वती का उद्गम है रणचंडी और नासा है।
हम एक शब्द हैं तो वह पूरी भाषा है।
बस यही माँ की परिभाषा है।
मद्रस डे के लिए स्पेशल कविता
शैलेश लोढ़ा
10-प्यारी जग से न्यारी माँ,
खुशियां देती सारी माँ।
चलना हमें सिखाती माँ,
मंजिल हमें दिखाती माँ।
सबसे मीठा बोल है माँ,
दुनिया में अनमोल है माँ।
खाना हमें खिलाती है माँ,
लोरी गाकर सुलाती है माँ।
प्यारी जग से न्यारी माँ,
खुशियां देती सारी माँ।
बड़ी ही जतन से पाला है माँ ने
हर एक मुश्किल को टाला है माँ ने।
उंगली पकड़कर चलना सिखाया,
जब भी गिरे तो संभाला है माँ ने।
चारों तरफ से हमको थे घेरे,
जालिम बड़े थे मन के अंधेरे।
बैठे हुए थे सब मुंह फेरे,
एक माँ ही थी दीपक मेरे जीवन में।
अंधकार में डूबे हुए थे हम,
किया ऐसे में उजाला है माँ ने।
मिलेगा ना दुनिया में माँ सा कोई,
मेरी आंखें बड़ी तो वो साथ रोई।
बिना उसकी लोरी के न आती थी निंदिया,
जादू सा कर डाला है माँ ने।
बड़ी ही जतन से पाला है माँ ने
हर एक मुश्किल को टाला है माँ ने।
11-ओ मेरी प्यारी माँ,
सारे जग से न्यारी माँ।
मेरी माँ प्यारी माँ,
सुन लो मेरी वाणी माँ।
तुमने मुझको जन्म दिया,
मुझ पर इतना उपकार किया।
धन्य हुई मैं मेरी माँ,
ओ मेरी प्यारी माँ।
अच्छे बुरे में फर्क बताया,
तुमने अपना कर्तव्य निभाया।
अच्छी बेटी बनूंगी माँ,
ओ मेरी प्यारी माँ।
करूंगी तेरा मैं गुणगान,
करूंगी तेरा मैं सम्मान।
शब्द भी पड़ गए थोड़े तेरे गुणगान के लिए माँ,
ओ मेरी प्यारी माँ।
गुल ने गुलशन से गुलफाम भेजा है,
सितारों ने गगन से माँ के लिए सलाम भेजा है।
संवेदना है, भावना है, एहसास है माँ,
जीवन के फूलों में खुशबू का आभास है माँ।
पूजा की थाली है माँ मंत्रों का जाप है माँ,
माँ मरुस्थल में बहता मीठा सा झरना है।
माँ त्याग है तपस्या है सेवा है माँ,
जिंदगी की कड़वाहट है अमृत का प्याला है माँ।
पृथ्वी है जगत है धूरी है,
माँ बिना इस सृष्टि की कल्पना अधूरी है।
माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,
माँ का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता।
और माँ जैसा दुनिया में कोई हो नहीं सकता,
और माँ जैसा दुनिया में कोई हो नहीं सकता।
12- तू धरती पर ख़ुदा है माँ,
पंछी को छाया देती पेड़ों की डाली है तू माँ।
सूरज से रोशन होते चेहरे की लाली है तू,
पौधों को जीवन देती है मिट्टी की क्यारी है तू।
सबसे अलग सबसे जुदा,
माँ सबसे न्यारी है तू।
तू रोशनी का खुदा है माँ,
बंजर धरा पर बारिश की बौछार है तू माँ।
जीवन के सूने उपवन में कलियों की बहार है तू,
ईश्वर का सबसे प्यारा और सुंदर अवतार है तू माँ।
तू फरिश्तों की दुआ है माँ,
तू धरती पर ख़ुदा है माँ।
13- माँ की ममता करुणा न्यारी,
जैसे दया की चादर।
शक्ति देती नित हम सबको,
बन अमृत की गागर।
साया बनकर साथ निभाती,
चोट न लगने देती।
पीड़ा अपने ऊपर ले लेती,
सदा सदा सुख देती।
माँ का आंचल सब खुशियों की रंगारंग फुलवारी,
इसके चरणों में जन्नत है आनंद की किलकारी।
अद्भुत माँ का रूप सलोना बिल्कुल रब के जैसा,
प्रेम की सागर से लहराता इसका अपनापन ऐसा।
मैंने माँ को है जाना, जब से दुनिया है देखी
प्यार माँ का पहचाना, जब से उंगली है थामी।
त्याग की भावना जो है माँ के भीतर,
प्यार उससे भी गहरा जितना गहरा समंदर।
अटल विश्वास माँ का, माँ की ममता डोरी
माँ के आंचल की छांव, माँ की मुस्कान प्यारी।
माँ ही है इस जहां में जो सबसे न्यारी,
सीचती है जो हमारे जीवन की क्यारी।
माँ की आंखों में देखें सपने हजार हमारे वास्ते,
मंजिलें बनाई ने अपनी न माँ ने चूने अपने रास्ते।
डगमगाए कदम जो तो है थाम लेती,
गर हो जाऊं उदास तो माँ प्यार देती।
मेरे लिए वह करती अपनी खुशियां कुर्बान,
गम के सैलाब में भी बिखेरती है मुस्कान।
वो सिमटी थी घर तक रखती थी सब का मान,
हर कमी को पूरा करने में जिसने लगा रखी है जान।
वजूद माँ का और माँ की पहचान,
रखना माँ के लिए सदा ह्रदय में सम्मान।
14- बहुत याद आती है माँ,
मैं हूं कौन बताया था माँ ने।
मुझे पहला कलमा पढ़ाया था माँ ने।
वो यह चाहती थी कि मै सिख जाऊ।
वो हाथो से खिलाती थी मुझ को,
कभी लोरिया भी सुनाती थी मुझ को।
वह नन्हे से पैर चलाती थी मुझको,
कभी दूर जाकर बुलाती थी मुझको।
मेरा लड़खड़ाकर पहलू में गिरना,
उठाकर गले से लगाती थी मुझको।
कि चलना सिखाती है माँ,
बहुत याद आती है माँ।