Happy Mother's Day: डॉ. श्याम अनन्त| माँ, एक ऐसा शब्द जिसके मायने तब समझ नहीं आते , जब हम उसके आँचल में होते हैं या दुनिया के झंझावातों को नहीं झेले होते हैं । भारत की पितृ- सत्तात्मक सत्ता में माँ वैसे भी पार्श्व में खड़ी उस ईश्वरीय प्रतिरूप की तरह होती है जो होती तो है , लेकिन जिसके होने का अहसास नहीं होता। संस्कारों के बीजारोपण से लेकर बच्चे के हर सुख- दुःख से यदि कोई एक व्यक्ति वाकिफ़ होता है तो वो सिर्फ़ माँ है । माँ के प्यार की सबसे कमाल बात पता है क्या है ? दुनिया उसको सबसे अधिक प्यार व सम्मान देती है जो लायक होता है , होनहार होता है , जिसके पास पद, पैसा , प्रतिष्ठा हो , लेकिन माँ का प्यार सबसे ज्यादा उस पर होता है जो इन सबसे वंचित हो। अपने स्नेह के आँचल में वो उसे ऐसे छिपा लेती है कि उसका बस चले तो एक भी आँच ना आने दे और सच कहूँ तो आने भी नहीं देती।
मेरी ही नहीं , बल्कि सारी माँयें ही ऐसी होती हैं कि वो खुद गीले में सो लेंगी , लेकिन अपने बच्चे को सूखे में ही सुलायेंगी। क्या दुनिया में कोई दूसरा ऐसा कर सकता है , यहाँ तक कि पिता भी ? जवाब आपका भी वही होगा जो मेरा है, - नहीं। बचपन मुफ़लिसी में बीता, फिर भी ध्यान नहीं आता कि माँ ने कभी भूखा सोने दिया हो, खुद खाया कि नहीं, ये तो हमने कभी जानने- बूझने की कोशिश ही नहीं की। यही तो खूबी है माँ के प्यार की। वो अपने कष्ट इतनी बखूबी छिपा जाती है कि पता ही नही चलता कि उसे भी कोई कष्ट है। इस बात का अहसास तब होता है जब हम खुद उस भूमिका में आते हैं।
कभी कोई ऐसा गुण भी माँ में नहीं दिखा कि जिसको उस समय कभी गौर किया हो लेकिन अब समझ आता है कि कौन सा ऐसा गुण नहीं था माँ में, जो उनमें सम्पूर्णता में ना हो। दया, ममता, क्षमा, करुणा, संभाल, समर्पण- सब तो थे लेकिन आश्चर्य की बात तो ये है कि कभी उन्होंने ना ये गुण प्रदर्शित किये और ना हमने ही देखे । यही तो खूबी है माँ की। ईश्वर की तरह वो हमारे सतत निर्माण में , पुष्पन- पल्लवन में लगी रहती है लेकिन कभी दिखाई नहीं देती। पिता के मुँह से तो जाने कितने बार सुना कि - तुमको पता है कि तुमको कैसे- कैसे करके पाला है , यहाँ तक पहुँचाया है ? लेकिन कभी माँ के मुँह से ये शब्द एक बार भी नहीं सुने। बल्कि पिता की हर डाँट या पिटाई के बाद माँ ही थी, जो अपने आँचल में छिपा लेती थी, बल्कि कभी- कभी क्या हमेशा ही , वो ही पिता के कोप से बचाती थीं। पिता का सृजन तो हथौड़ी- छैनी वाला था, ना सुने तो चला दो , लेकिन माँ।
माँ के सृजन का, गढ़ने का तरीका भी गज़ब था, कभी महसूस भी नहीं होने दिया कि सृजन चल रहा है, एक अनगढ़ मिट्टी को संस्कार व ज्ञान से भरने लायक बनाया जा रहा है । आज जब उम्र के उस दौर में हूँ जब अपने बच्चों को गढ़ने की कोशिश करता हूँ तो लगता है कि शायद ये दुनिया का सबसे कठिन काम है , जो मेरी माँ ने कब कर दिया पता ही नहीं चला। हाँ, ये बात आज मुझे कहने में कोई संकोच नहीं कि हम कभी माँ के प्यार को समझ नहीं पाते और समझ भी नहीं सकते । कारण जानते हैं क्यों ? क्योंकि कौन ऐसा होगा जो कोई काम करे और उसका श्रेय ना ले , लेकिन माँ कभी श्रेय नहीं लेती। बस अब अफसोस होता है, काश ! मैं तब ये बात समझ पाता , तो शायद उनसे कुछ और सीख सकता कि कैसे अपने गुणों को बिना दिखाये, बिना महान बने – सृजन किया जाता है ? हाँ, आज जो कुछ भी संसार को मुझ में गुण दिखाई देते हैं, तो महसूस होता है कि वो सब तो तेरे गुणों की ठीक से परछाई भी नहीं । आपने तो मुझ जैसे अप्रहत में संस्कारों की फसल ही बोई थी लेकिन कुसंस्कारों, अवगुणों की खरपतवार उगती चली गई, जिसे दूर करने का सच कहूँ तो मैंने ही कभी ईमानदारी से प्रयास नहीं किया । आज तुम होती तो शायद ये खरपतवार भी ना होती । माँ सच में ही ऐसी होती है । वो अपने बच्चे में कोई कमी नहीं छोड़ने देना चाहती, लेकिन बस एक हम ही हैं जो कभी सुधरने का प्रयास नहीं करते।
बस एक ही चीज़ का जिन्दगी भर मलाल रहेगा कि जब मैं आपकी सेवा करने लायक हुआ , आप चली गईं। आज लगता है कि वो लोग भाग्यशाली होते हैं जिन्हें माँ की सेवा का अवसर मिलता है । मुझे कहने में कोई संकोच नही कि मैँ आज जहाँ हूँ, वो आपके आशीर्वाद से हूँ। आप आज भी मेरी ऐसी ही देखभाल करती हो, हर संकट से आज भी बचा लेती हो , तभी तो कहता हूँ कि माँ को समझ पाना असम्भव है । काश ! मुझे भी आपके पास फुरसत से बैठ पाने का अवसर मिलता। आपके गुणों को और करीब से देख पाने का मौका मिलता, जो मैं बचपन की खुमारी में कभी देख ही नहीं पाया । लेकिन अफसोस के अलावा कुछ और नहीं बचा इस जीवन में । आज आँखें नम हैं – आपको याद करके और रंज है अपनी किस्मत पर कि, आपको तब खोया जब आपके लिये कुछ करने लायक बन पाया । क्या श्रेय ना लेने की इतनी जल्दी थी आपको कि कहीं मैं आपको अपनी सफलता का श्रेय आपको न दे दूँ, आप चली गईं । माँ, ऐसी क्यों होती है ? काश ! कि…आपके आँचल में सिर रखकर रो सकता कि माँ- आज समझ आया कि सच्चा प्यार इस दुनिया में कोई करता है तो वो आप हो, वरना तो हर जगह केवल सौदा है । एक हाथ खुशियाँ दो, दूसरे हाथ प्यार लो। लेकिन आप। आपने तो कभी खुशियाँ चाही ही नहीं । पता नहीं , हर माँ अपने बच्चों से खुशियाँ पाने से बचती क्यों हैं ? शायद वो अपने प्यार के बदले कुछ नहीं चाहतीं, और शायद इसलिए ही माँ, ईश्वर से ऊपर है।
काश कि आप होतीं तो मैं आपको बता पाता कि दुनिया में हर किसी के चेहरे के पीछे दो नहीं, तीन नहीं, जाने कितने- कितने चेहरे हैं और कुछ तो इतने घृणित हैं कि इंसानियत से ही भरोसा उठ जाये लेकिन आपका सिर्फ एक ही चेहरा देखा- अपनत्व का, प्रेम से भरा जिसमें सिर्फ और सिर्फ प्यार ही देखा । काश ! कि… वो ईश्वर , माँ को समझ पाने की कोई अलग आँख देता , तो शायद समझ पाता कि वो खुद माँ का प्यार पाने के लिये लालायित रहता है क्योंकि वो खुद भी ऐसा प्यार दे पाने में असमर्थ है । आँखों में जो अश्रु आज आपको याद करके भर आये हैं , उसने मन को इतना बोझिल कर दिया है कि कुछ समझ ही नहीं आ रहा कि आपके लिये क्या लिखूँ, शब्द जैसे हवा में तिरोहित हो गये हैं । शब्दों को इतना असमर्थ मैंने पहले कभी नहीं पाया । माँ की प्रंशसा में , उसके वर्णन में , मैं ही क्या शायद वो भगवान भी असमर्थ है इसलिए आज अपने भावों को अभिव्यक्त ना कर पाने की नाकामी को मैं स्वीकार करते हुए बस अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि देते हुए सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा कि यदि आपके पास माँ है तो आप दुनिया के सबसे भाग्यशाली व्यक्ति हैं और इसके बावजूद भी यदि आपने अपनी माँ के गुणों को आत्मसात नहीं किया है और उनकी सेवा नहीं की है तो आप एक दिन इसी तरह अपने सौभाग्य को कोसेगें कि काश ! मैंने अपनी माँ को समझा होता , काश उनकी सेवा की होती तो शायद मैं भी एक अच्छा इंसान बन पाता । एक ऐसा इंसान जिस पर हर माँ गर्व करती ।
( लेखक एक प्रसिद्ध मोटीवेशनल स्पीकर, कवि, कैरियर व लाइफ कोच हैं तथा उत्तर प्रदेश में वस्तु एवं सेवा कर में असिस्टेंट कमिश्नर के पद पर कार्यरत हैं । )